कुंदन कुमार

किसी शुभ अवसर पर अगर किसी के यहां जाना हो, तो हमारा प्रयास होता है कि उपहार में उसको किताबें दें। किताब उपहार में देने से फायदा यह होता है कि सामने वाला भले पढ़ा-लिखा न हो, फिर भी उसे शिक्षा का महत्त्व पता चलता है और इससे प्रेरित होकर वह औरों को शिक्षा की जोत जलाने को प्रेरित करता है। वहीं पढ़ा-लिखा आदमी उपहार में मिली किताबों को सहेज कर रखता है। उसे किताब उपहार में देने वाला आदमी हमेशा याद रहता है। एक सफर के दौरान कहीं लिखा हुआ देखा था- ‘किताब विहीन घर चरित्रहीन घर जैसा है’। वास्तविकता भी यही है।

पुस्तक विहीन घर कितना ही सजा-धजा क्यों न हो, पुस्तकों के बिना उसकी साज-सज्जा का कोई महत्त्व नहीं। पुस्तकें घर के जिस कोने में रखी होती हैं, महज वह एक कोना नहीं, बल्कि विचारों, सिद्धांतों और अवधारणाओं का संगम होता है। इधर-उधर समय व्यर्थ करने से बेहतर है कि हम किताबों के सान्निध्य में समय व्यतीत करें, क्योंकि किताबों के साथ बिताया गया हर पल हमारे जीवन में इतना महत्त्वपूर्ण है कि उसका कोई मोल नहीं।

पुस्तकों को सिर्फ ज्ञान के असीमित भंडार तक सीमित नहीं किया जा सकता। पुस्तकें हमारे अकेलेपन का साथी भी हैं। इन्हें भविष्य की धरोहर के रूप में भी देखा जाता है। बचपन में मैं अपने पिता की किताबें देखना चाहता था। देखना चाहता था कि उनके समय में कैसी किताबें आती थीं। यही जिज्ञासा आने वाली पीढ़ी की भी हो सकती है, इसलिए पुस्तकों को संरक्षित करके रखना बेहद जरूरी है। किताबों का रंग-बिरंगा कवर किताबों के वस्त्र के समान है। किताबों के कवर पेज को लाल, पीला, नीला, हरा, काला, उजला- अनेक रंगों से बेहद खूबसूरती से सजाया जाता है, ताकि लोगों का किताबों के प्रति प्रेम बढ़े और लोग ज्यादा से ज्यादा उन्हें खरीद कर पढ़ें, घर में सजा कर रखें।

बच्चों को किताबें खिलौने जैसी दिखें और वे खेल-खेल में नई-नई चीजें सीखें, इसके लिए सामान्यतया बच्चों की किताबों में खूबसूरत चित्रों को भी जगह दी जाती है, ताकि उन्हें किताबों से लगाव हो और वे पढ़ाई-लिखाई को बोझिल न समझें। बचपन में पिताजी जब हमारे लिए कोई किताब लाते, तो मैं सबसे पहले उलट-पलट कर उसमें बने चित्रों को ध्यान से देखता था। किताबों के चित्र निहारने की आदत अब भी गई नहीं। आज भी किताबों के चित्र निहारना किताब पढ़ने से ज्यादा पसंद है।

किताबें भले निर्जीव हैं, पर संवेदना, भावना, सुख-दुख, अच्छा-बुरा जैसे शब्दों से हमारा परिचय उन्हीं के जरिए होता है। सोचकर देखिए, कोई हमारा कपड़ा फाड़े तो हमें कैसा लगेगा? ठीक वैसे ही किताबों को नुकसान पहुंचाने पर किताब को दुख होता होगा। किताबों को सहेज कर रखना चाहिए, ताकि वे यादों को हमेशा जीवंत रख सकें।

आधुनिक समाज की एक विसंगति उभर कर रोज अखबारों में खबर के रूप में आती है। आजकल के अभिभावक बच्चों के हाथों में कच्ची उम्र में ही मोबाइल थमा देते हैं, जो उनके स्वास्थ्य के साथ-साथ उनकी जीवन शैली को भी बुरे तरीके से प्रभावित कर रहा है। अध्ययन में यह बात सामने आई है कि बच्चे वीडियो गेम देख कर हिंसक बनते जा रहे हैं। बुरी आदतें लग रही हैं। बचपन में जो आदत लग जाती है, वह या तो पीछा नहीं छोड़ती या बहुत मुश्किल से उससे पीछा छुड़ाया जाता है। इसलिए बच्चों को छोटी उम्र में ही अच्छी आदतें और संस्कार सिखाने की वकालत लोग करते हैं। कच्ची उम्र में बच्चों की दोस्ती इलेक्ट्रानिक उपकरणों की जगह किताबों से कराई जाए, ताकि उनका कोमल हृदय हिंसक न बन सके और वे भयानक विसंगतियों के चंगुल में आने से बच सकें। पुस्तकों के सान्निध्य में रह कर बच्चे विचारवान बनेंगे। उनके सोचने-समझने की क्षमता विकसित होगी।

तकनीक के इस युग में पुस्तकें कम्प्यूटर, लैपटाप और मोबाइल की फाइल के रूप में परिवर्तित होती जा रही हैं। किताबों के प्रति लोगों का नजरिया बदला है, लेकिन किताबों की उपयोगिता आज भी बरकरार है। दिल्ली में होने वाले पुस्तक मेले में पुस्तक प्रेमियों का हुजूम उमड़ता है। दूर-दराज के ग्रामीण इलाकों से लोग पुस्तक खरीदने मेले में पहुंचते और मनपसंद किताबें खरीद कर अपने साथ ले जाते हैं। किताबों के साथ वे उन किताबों को भी कैमरे में कैद करके अपने साथ ले जाते हैं, जिन्हें वे ताउम्र अपने घर के कोने में सजा कर रखना चाहते हैं। घर की रौनक हमेशा विद्यमान रहे, इसके लिए जरूरी है कि आधुनिकता के इस दौर में हम किताबों को घर के एक कोने में सजा कर रखने को एक परंपरा का रूप दें। पूजा घर या इबादतखाने की तरह हमारे घर में एक किताब-घर भी होना चाहिए, जिससे ज्ञान का प्रकाश घर के साथ-साथ आस-पड़ोस में भी हो।