हम न्याय दर्शन के एक सूत्र के मुताबिक समझने की कोशिश करें तो देख सकते हैं कि बिना कारण यानी उद्देश्य के कोई भी काम नहीं होता। यानी कि बिना किसी कारण के न हम सांस लेते हैं, न कोई काम करते हैं, न खुद हंसते हैं, न किसी और पर हंसते हैं। कोई न कोई कारण या प्रयोजन और उद्देश्य होता है, जिससे हमारा व्यवहार संचालित होता है। हमारा हर वक्तव्य, गति और व्यवहार हमारे उद्देश्य की पूर्ति से प्रभावित और असर के घेरे में होते हैं। बिना मकसद और औचित्य के हम कुछ भी नहीं करते हैं। हमारे जीवन की असफलता का राज ही यही है कि हम अपने रोज के जीवन में कई काम बिना उद्देश्य के करते हैं। अगर उद्देश्य हो तो शायद हम कई कामों को न करने की सूची में डाल दें। लेकिन दिक्कत यहीं आती है कि हम कई बार यह तय नहीं कर पाते कि कौन-सा काम और कदम हमारे लिए जरूरी है और किस काम को हम नजरअंदाज कर सकते हैं। हम अपने उद्देश्य के निर्धारण में इतने उतावले और अधीर होते हैं कि तात्कालिक उद्देश्य को पाने में अपनी पूरी ताकत लगा देते हैं। होता यह है कि जिसमें हमें पूरी क्षमता लगानी थी, वह अधूरी रह गई और विफलता हमारे हाथ आती है और शुरू होता है शिकायतों और आरोपों का खेल।
हमारे उद्देश्य कई बार हम नहीं, बल्कि हमारे अग्रज तय करते हैं। मां-बाप, यार-दोस्त और कई बार हमारे गुरु। होता यह है कि अगर कोई पूछ बैठे कि क्यों कर रहे हो, क्यों बीए कर रहे हो, क्यों डॉक्टर बनना चाहते हो आदि, तो हमारा जवाब होता है कि पिता ऐसा चाहते थे, चाचा या बुआ ने बताया था या फिर सारे दोस्तों ने उसी कोर्स के लिए फार्म भरे थे, सो मैंने भी भर दिया। यानी एक बात साफ है कि आपके उद्देश्य कोई और तय कर रहे थे। वर्षों गुजारने के बाद महसूस होता है कि मैं यह नहीं बनना चाहता था, यह तो उनकी इच्छा थी। तो आप क्या चाहते थे, यह सवाल आपको परेशान करना चाहिए!
एक शोध हुआ था, जिसमें मनोवैज्ञानिक ने विश्व के तकरीबन चार हजार ऐसे लोगों से साक्षात्कार किया, जो अपने जीवन और कार्य में सफल माने गए। भारत से गांधीजी को शामिल किया गया था। इस शोध में खिलाड़ी, संगीतकार, कलाकार, पत्रकार, मजदूर आदि शामिल थे। कोशिश यह की गई थी कि समाज के सभी क्षेत्रों के प्रतिनिधियों को इस अध्ययन का हिस्सा बनाया जाए। लेखिका और शोधकर्ता ने बताया कि अधिकतर लोगों की जिंदगी के उद्देश्य किसी और ने तय किए थे, लेकिन अपने जीवन और क्षमता को पहचान कर उन लोगों ने अपने लक्ष्य और उद्देश्य को दुबारा लिखा और जीया। एक बड़ा संगीतकार, गिटारवादक आगे चल कर एक रसोइया बना। उस काम में उसे ऐसी प्रसिद्धि मिली कि अमेरिका के उच्च सदन में उसे सम्मानित किया गया। उसने बताया कि हम अपनी रुचि और ताकत को पहचाने बगैर पूरी जिंदगी दूसरों के उद्देश्यों पूरा करने में लगा देते हैं। मैंने एक दिन महसूस किया कि मुझे खाना बनाने में आनंद आता है। रुचि भी जगी और संगीत गिटार छोड़ कर खाना बनाने के काम में आ गया। ऐसे कई लोगों के उदाहरण मिलेंगे, जिन्होंने पूरी जिंदगी किसी काम में गुजार दिया, लेकिन वे कुछ और करना चाहते थे।
हमारे जीवन की कथा यही है कि हम जाना कहीं और चाहते हैं, लेकिन रेलगाड़ी कोई दूसरी दिशा पकड़ लेती है। आमतौर पर हम अपनी गलती के लिए दोषी किसी और परिस्थिति को ठहरा देते हैं। अगर हमारा उद्देश्य स्पष्ट होता तो कोई वजह नहीं कि हम सफल नहीं होते। इसे ऐसे भी समझ सकते हैं जब हमारे जीवन का लक्ष्य किसी और के प्रभाव और आकर्षण से निर्धारित होते हैं तो ऐसे में शायद हम अपने लक्ष्य और उद्देश्य से मुहब्बत भी नहीं कर पाते। बिना रुचि और उत्साह के हम जिस काम को कर रहे होते हैं, उसमें सफलता पर संदेह रहेगा।
यों कोई भी सफल व्यक्ति और प्रोजेक्ट तभी कामयाब और मुकम्मल होता है, जब हम शुरू में अनुमानित संकटों और अवरोधों का आकलन कर उससे निपटने की योजना भी बना लेते हैं। हमेशा बल्कि समय-समय पर उद्देश्य हासिल करने के रास्ते और रणनीति का मूल्यांकन और पुनर्मूल्यांकन करते रहते हैं। अपने जिस लक्ष्य को हम पाना चाहते हैं, उसे हासिल करने के लिए उसके अनुरूप रणनीति और कार्ययोजना बेहद जरूरी है। इसके बगैर हम अपने उद्देश्य से काफी दूर रहेंगे। हमेशा हमें अपने जीवन से शिकायत रहेगी। दरअसल, हम अपने जीवन में कई काम सिर्फ दूसरों को दिखाने और खुश करने के लिए करते हैं। इसमें हमारा अधिकारी, अभिभावक, परिवेश सभी शामिल हैं। इसमें हमारी अपनी खुशी और इच्छा कहीं पीछे छूट जाती है।