मुकेश पोपली
बहुत छोटी उम्र में यह तो मालूम हो ही गया था कि चुनाव के दौरान खड़े होने वाले उम्मीदवारों में बड़ी पार्टी हो या छोटी, टिकट उसी को मिलता है जो चुनाव जीतने का दम रखता हो। बीकानेर में स्टेशन रोड पर स्थित हमारी दुकान पर स्कूल से आते-जाते मैं अक्सर कुछ देर के लिए रुक जाता था। चुनावों के दिनों में बाजार में बड़ी गहमा-गहमी रहती थी और शोर-शराबा भी बहुत होता था। लाउडस्पीकर लगे हुए तांगों पर उद्घोषक महोदय को ‘कूड़ो-कूड़ो’ कह कर लोग छेड़ते भी थे। दुकान के ठीक सामने ऊपर वाली इमारत में एक चुनाव कार्यालय भी खुला हुआ रहता था। ‘भाइयों और बहनों, गरीबी और महंगाई से लड़ने के लिए, पानी, बिजली, सड़कों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए, देश की अमन-शांति के लिए आप अपना कीमती वोट जनाब फलां साहब को दीजिए। जी हां, आप सबके सुख-दुख में साथ निभाने वाले, ईमानदार, कर्मठ, सुयोग्य और आप सबके चहेते उम्मीदवार का चुनाव चिह्न है- घोड़ा। घोड़े पर अपनी मुहर लगा कर भारी मतों से इन्हें विजयी बनाएं। याद रखिए- घोड़ा… घोड़ा… घोड़ा!’ यों हर नेता कहने को आपके सुख-दुख में साथ निभाने वाला ही होता है। यह बात अलग है कि अधिकतर नेता पांच साल में केवल दो बार अपनी शक्ल दिखाते हैं। एक बार तब, जब वोट चाहिए और दूसरी बार जब चुनाव जीत लिया जाता है, चाहे जैसे भी। इसलिए मेरा यह मानना है कि वोट डालने और नहीं डालने से मतदाता को न कोई लाभ है और न हानि। लेकिन केवल हानि-लाभ की गणना करने से देश नहीं चल सकता, क्योंकि हमारा यह देश कोई दुकान नहीं है।
हमारे देश में बहुत-सी सरकारें, संस्थाएं, व्यापारिक प्रतिष्ठान, सरकारी कार्यालय, अस्पताल, विद्यालय आदि जगहों पर कुछ लोग वास्तव में ईमानदार हैं, जो जी-जान लगा कर अपना काम करते हैं और देश के प्रति अपने दायित्व निभाते हैं। इनके पास ‘ऊपर की कमाई’ नहीं होती। इनका हृदय कभी इस बात के लिए नहीं मानता कि काम करने के बदले में किसी से रिश्वत मांगी जाए। हां, इन ईमानदारों के नाम पर कुछ बेईमान लोग रिश्वत जरूर मांग लेते हैं, यह कह कर कि ऊपर भी देना होता है।
जब वोट डालने की उम्र आई तो खुद पर गर्व हुआ कि अब हम भी अपनी पसंद का नेता चुन सकेंगे। हाथ जोड़ते हुए उम्मीदवारों ने कहा भी- ‘आप तो युवा हैं, आपके कई सपने हैं, आपके सपनों को हम पूरा करेंगे। हम जानते हैं कि आपने कितनी मेहनत से शिक्षा प्राप्त की है, हम आपसे वादा करते हैं कि रोजगार दिलवाने में हम आपकी पूरी सहायता करेंगे। जहां भी हमारी सिफारिश की आवश्यकता हो, हमें बताइएगा। हमारी सरकार, हमारी पार्टी के सभी नेता आप जैसे युवाओं के सहारे इस देश को आगे ले जाने की कसम खा चुके हैं। आपके एक वोट से ईमानदारी की मिसाल कायम होती है। हमें पूरी उम्मीद है कि आपका वोट हमारे कर्मठ, ईमानदार, आप सभी के प्रिय साथी और हमारी पार्टी के उम्मीदवार श्री श्री को ही मिलेगा। जय भारत, जय हिंद।’
खैर, वक्त गुजरता गया, नेता बदलते गए, सरकारें बदलती गर्इं। लेकिन अभी भी झूठ बोल-बोल कर उन्हें शांति नहीं मिली है और न ही हमें सुकून। वे सत्ता के भूखे हैं और हम अभी भी अपने कामों को पूरा कराने के लिए उन पर पूरी तरह से निर्भर। अफसोस इस बात का है कि ईमानदारी से भरपूर नेताओं की आज भी कमी है। ऐसे में सभी पार्टियां और नेतागण ईमानदारी की दुहाई दे रहे हैं। वे दिखावे के लिए यह तो कहते घूमते हैं कि जनता से पूछ कर जनता के लिए योजनाएं बनाई जाएंगी, लेकिन जनता से यह नहीं पूछना चाहते कि हम अपनी पार्टी का टिकट किस तरह के व्यक्ति को दें। ले-देकर बात वहीं आ जाती है कि मतदाता को सात-आठ उम्मीदवारों में से ही किसी एक को चुनने के लिए वोट देना है।
पिछले वर्षों में भ्रष्टाचार के खिलाफ अनेक आंदोलन हुए। सब नेताओं ने अपने आप को ईमानदार बताया। विपक्षी पार्टियों के नेताओं को बेईमान बोल कर वोट हासिल करना अपने आप में बेईमानी है। लोकतंत्र में सबको चुनाव लड़ने की छूट है। सोचना पार्टियों को है कि किसे टिकट दिया जाए और किसे नहीं। ऐसे स्वयंभू ईमानदार घोषित हो जाना ठीक वैसा ही है, जैसे हमारी आंखों को धोखा देकर सड़क छाप जादूगर द्वारा जादुई करतब दिखाना।
दुर्भाग्य से हमारे देश में स्वयंभू भगवान भी बहुत हुए हैं और सबकी पोल धीरे-धीरे खुल रही है। स्वयंभू ईमानदार बनने का परिणाम बहुत भयंकर हो सकता है। इसमें कोई शक नहीं कि देश में भ्रष्टाचार की जड़ें मजबूत हैं, केवल नेताओं को बेईमान बताना या उन पर आरोप लगा देना इस समस्या का समाधान नहीं है। अगर देश बदलना है तो चुनावों की परिभाषा भी बदलनी पड़ेगी। सभी पार्टियों को अपने भीतर झांकना होगा। अगर सार्थक कदम उठाए जाते हैं और फिर चुनाव में उतरा जाता है तब तो इस देश की जनता से वोट मांगने का अधिकार बनता है। वरना लोकतंत्र के सामने अभी बहुत सारी बाधाएं मौजूद रहेंगी।