रचना त्यागी
‘राष्ट्रीय राजधानी की सड़कों पर उबर कंपनी फिर से लौट रही है।’ यह बात उबर कंपनी ने अपने एक इ-मेल में लिख कर अपने पहले के सभी ग्राहकों को भेजी। यह कोई अनोखी बात नहीं है। लेकिन मैं भीतर से कांप गई यह जान कर कि यह इ-मेल उस युवती को भी भेजा गया, जिसके साथ कुछ समय पहले इस कंपनी के एक ड्राइवर ने बलात्कार किया था और जिसकी वजह से इसे अपनी सेवाएं बंद करनी पड़ी थीं। दिसंबर, 2012 में बेहद त्रासद निर्भया कांड ने दिल्ली में निजी बसों की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठाए थे। उनका जवाब अब तक नहीं मिला है। हालात ऐसे हैं कि स्त्रियों को आवाजाही के लिए अपने वाहन के अलावा कोई और विकल्प सुरक्षित नहीं लगता। पर यह जरूरी नहीं कि सबके पास निजी वाहन हो और अगर है भी तो वे हमेशा उसका उपयोग कर ही पाएं! ऐसे में महिलाओं के पास क्या रास्ता बचता है?
कुछ समय पहले एक टीवी समाचार चैनल के रिपोर्टर को ‘उबर’ टैक्सी में हुए हादसों की पुनरावृत्ति न होने के संदर्भ में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में कुछ लोगों की राय पूछते दिखाया गया था। सभी ने वही घिसी-पिटी नसीहतें दीं, जो हम हर हादसे के बाद सुनते आए हैं। एक व्यक्ति ने दिल्ली की लाइसेंसशुदा टैक्सी सेवाओं के नामों की सूची भी दिखाई, जिसमें केवल तीन नाम थे। रिपोर्टर ने झट से उसकी प्रतिलिपि लेकर रख ली। सवाल है कि इन तीन लाइसेंसशुदा टैक्सी सेवाओं में बलात्कार जैसी दुर्घटनाएं कभी नहीं होंगी, इसकी क्या गारंटी है? बेशक उनके चालकों का पुलिस सत्यापन हुआ होगा और उनका पिछला कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं होगा। लेकिन यह कैसे पता चलेगा कि कोई सामान्य दिखने वाला व्यक्ति ऐसे कारनामे को अंजाम नहीं देगा। यानी लाइसेंसशुदा होने की मोहर भी वह निश्चिंतता नहीं देती। इनमें अगर कोई अपराध होता भी है तो ज्यादा से ज्यादा उस टैक्सी कंपनी का लाइसेंस ही रद्द होगा। चालक पकड़ा गया, तो सजा हो जाएगी। मालिक को शायद इसलिए कुछ न हो कि उसने चालक का पुलिस सत्यापन करवाया हुआ था। लेकिन ये सत्यापन हमेशा ही सही और कारगर हों, यह भरोसा नहीं बन पाता। वर्तमान या भविष्य को हमेशा उस सत्यापन के सहारे निश्चिंत नहीं छोड़ा जा सकता। यही बात टैक्सी चालकों पर भी लागू होती है।
इस बीच मैंने एक प्रशंसनीय पहल देखी। दिल्ली की एक गैरसरकारी संस्था ‘सखा’ ने एक टैक्सी सेवा की शुरुआत की है जो इस मामले में नायाब है कि इसमें वाहन चालक केवल महिला ही होती है और मुख्य रूप से महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उन्हीं को सेवाएं प्रदान की जाती है। हालांकि इनके प्रशंसक होने के नाते आमिर खान, जावेद अख़्तर जैसे कई और विख्यात नाम दिल्ली आने पर इसी टैक्सी की सेवाएं लेते हैं। लेकिन आमतौर पर ‘सखा कैब्स’ केवल पुरुषों को तब तक अपनी सेवाएं मुहैया नहीं कराती, जब तक उनके साथ कोई स्त्री न हो।
वर्तमान हालात में जब घर से निकलते वक्त हर समय घबराते, थरथराते मन में यही दुआ रहती है कि काम पूरा करके सुरक्षित अपने घर लौट आएं, ऐसे में इस पहल ने मुझे सचमुच बहुत राहत दी है। इसमें सफर करती किसी महिला को न किसी पुरुष चालक की नीयत खराब होने का डर है, न रात को देर रात अकेले कहीं आने-जाने की फिक्र। हम दिल्ली की अमूमन सभी सड़कों से वाकिफ और चुस्त-दुरुस्त महिला चालक के साथ होते हैं। एक तरह से यही अपने आप में सुरक्षा की गारंटी जैसी है। ‘सखा’ की एक चालक ने जैसा बताया, उसके मुताबिक इन्हें अपनी ड्यूटी के दौरान आत्मरक्षा सहित अचानक खड़ी होने वाली किसी भी तरह की परेशानी का सामना करने का पूरा प्रशिक्षण दिया जाता है। इनमें से कई से मिलने और बात करने का मौका मिला और उन्होंने मुझे बताया कि अभी दिल्ली में इनका सबसे अधिक उपयोग विदेशी सैलानी करते हैं। खासतौर पर जिनकी फ्लाइट रात के ग्यारह बजे से सुबह छह बजे के बीच होती है, वे ‘सखा’ की ही सेवा को प्राथमिकता देते हैं।
दिल्ली में जिस तरह टैक्सी चालकों द्वारा सैलानियों के साथ दुर्व्यवहार और लूटपाट की घटनाएं सामने आती रही हैं, उन्हें रोकना अब भी मुश्किल बना हुआ है। हाल ही में एक रूसी महिला के साथ एक ऑटो चालक ने ही बलात्कार की कोशिश और हिंसा की। ऐसे में सुरक्षित विकल्पों की अहमियत बढ़ जाती है। यह मैं अपने अनुभव से कह सकती हूं कि दिल्ली जैसे महानगरों और उसमें सभी क्षेत्र में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी को देखते हुए हर तरह से सुरक्षित सार्वजनिक परिवहन की व्यवस्था की सख्त जरूरत है।
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