पूनम पांडे
मन बीमार है, यह बात हमारे यहां हजारों गांव-कस्बे में सहज बोधगम्य है भी नहीं। होता यह है कि इस बात को समझने की कोशिश करते-करते कई बार देर भी हो जाती है और फिर तेज दवाओं पर निर्भरता बाद में यह मलाल कराती है कि कहीं न कहीं अपने विचारों में ही खोट है। लौह शरीर में जंग तो हमने खुद ही लगा दी। महान शास्त्रीय नर्तक और विद्वान पंडित बिरजू महाराज अपने अंतिम दौर में भी सक्रिय रहे। वे अपने उद्बोधन में वे एक बात हमेशा कहते हैं कि उनकी लंबी उम्र और सेहत की चमक-दमक का राज यही है कि वे किसी भी बुरी और अखरने वाली बात को याद नहीं करते, सिर्फ सुंदर पल सहेज कर रखते हैं और साझा भी करते हैं।
यह बात काबिले गौर तो है ही, क्योंकि इस जगत में हर सफल इंसान की यह खासियत होती ही है कि उसका नजरिया एकदम साफ और निरपेक्ष होता है। यानी एक सकारात्मक सोच के साथ वे जीवन को काटने में नहीं, जीने मे यकीन करते हैं। वैसे ही जैसे एक कल-कल बहती नदिया अपने शीतल जल और महत्त्वपूर्ण खनिज के साथ कहीं ठहर नहीं जाती, अविरल बहती है। तभी तो वह सरिता है।
नदी की तरह सफल इंसान यह बखूबी जानते हैं कि अगर हम निरंतर गतिमान हैं, तभी हमारे पल भी लय मे निबद्ध होंगे। गिलास को आधा खाली नहीं, आधा भरा देखने वालों की एक आदत होती है कि वे खुश रहते हैं, खुद पर ध्यान देते हैं और हर निर्णय अपनी क्षमता और कामना को भली-भांति तोलकर ही लिया करते हैं।
किसी दार्शनिक ने कहा भी है कि हमारा जीवन बस हमारा नहीं है, यह समाज का स्वरूप निर्धारित करता है। मिसाल के तौर पर भूटान, म्यांमा आदि देशों में कुछ गांव बहुत खुशहाल प्रमाणित हुए हैं। यह शोध यूनिसेफ सहित दर्जनों वैश्विक संस्थानों द्वारा किए गए। यह तभी हो सका, जब वहां हर निवासी अच्छी सोच के साथ जीवन का स्वागत कर रहा है। इसलिए हमेशा अपनी राई जैसी परेशानी को पहाड़ जैसी छवि मे बदलकर दिन-रात दुखी रहने वालों को भी कोशिश करनी चाहिए कि जुनून के साथ जीना ही जिंदगी है और इसी में अच्छी सेहत, लोकप्रियता, लंबी उम्र के रहस्य समाहित हैं।
भगवान महावीर के अनुयायी हैरान रह जाते जब उनकी दिनचर्या को देखते। जितना समय सबको मिलता था, महावीर उतने समय में बहुत काम कर लेते और एकदम सामान्य लगते थे। सुबह से शाम उनका सहज आचरण देखते तो सभी अनुयायी हैरत में पड़ जाते। एक सुबह प्रश्न काल के समय महावीर से पूछा गया कि गुरुवर जीवन में कैसे चलें, कैसे ठहरें, कैसे सोएं, कैसे खाएं और कैसे बोलें, जिससे पाप कर्म का बंधन न हो।
इसके उत्तर में महावीर ने यह नहीं कहा कि तुम चलो मत, ठहरो मत, बैठो मत, सोओ मत, खाओ मत और बोलो मत। यह कहा कि तुम चलो, ठहरो, बैठो, सोओ, बोलो, पर हर पल सतर्क रहो कि बस यह जीवन ही जीना है। जो बीत गया वह लौटेगा नहीं। तब तुम जीवन को अधिक सजगता और प्रसन्नता से महसूस कर सकोगे।
एक बार चौराहे की लाल बत्ती पर गाड़ी रुकी और सामने ही रंग-बिरंगे गुब्बारे देखकर एक बच्चा गाड़ी के भीतर मचलने लगा। मां ने तीन-चार गुब्बारे खरीद लिए। तभी एक किशोर की आवाज भी आई, ‘रूमाल खरीद लीजिए, गुब्बारे की कीमत मैं दे दूंगा।’ मगर जरूरत नहीं थी। महिला ने मना कर दिया। गुब्बारे वाले ने अभी-अभी कमाए सारे रुपयों से उसके तीन रूमाल खरीद लिए। वह महिला उस साधारण में यह दया, करुणा, आत्मीयता देखकर चकित रह गई।
फिर उसने दोबारा दोनों को बुलाया, कुछ रूमाल और दो गुब्बारे ज्यादा खरीद लिए। वह महिला उस गरीब के प्रसन्न मन और उसके इस स्वभाव से पैदा हुए जीवन दृष्टिकोण को देखती रह गई। सचमुच यह प्रसन्न मन कुदरत या प्रकृति की उदारता का प्रतीक है। इसे किसी भी तरह पाना चाहिए और सहज जीवन को अपना कर्म तथा खुशी का उद्गम मान लेने से हृदय पवित्र होता है, मेधा बढ़ती है, मस्तिष्क प्रफुल्लित होता है।
