देवेश त्रिपाठी
कुछ दिन पहले अपने फ्लैट से नीचे उतर रहा था तो देखा कि बाहर गली में एक लड़का प्लास्टिक की थैली में कूड़ा लिए खड़ा है। वह इधर-उधर देख रहा था कि कोई उसे देख तो नहीं रहा। सब्जी लेने के वास्ते झोला लेने के लिए जैसे ही मैं वापस मुड़ा कि उस लड़के ने अपने कूड़े के ढेर को सामने एक घर की चारदिवारी के अंदर फेंक दिया और वहां से रफूचक्कर हो गया। मैंने उसे आवाज दी, लेकिन वह मोहल्ले की किसी दरवाजे के भीतर गुम हो चुका था। मन में सवाल आया कि जब सुबह कूड़ा ले जाने वाली गाड़ी आती है, तब फिर यह लड़का कूड़ा दूसरे के घर की चारदिवारी के भीतर क्यों फेंक गया। ऐसा अक्सर देखने में आया है कि जब कोई पड़ोसी कहीं बाहर गया होता है तो उसके घर की चारदिवारी के भीतर कुछ लोग कूड़ा फेंकने लगते हैं।

ऐसा लगता है मानो वह कचरा फेंकने की कोई जगह हो। जबकि अब आमतौर पर हर शहर के मोहल्लों में कूड़ा गाड़ी आने से पहले सीटी बजाती है और उसमें लोग इत्मीनान से अपने सूखे और गीले कचरे को अलग-अलग करके रख सकते हैं। हर कूड़ा गाड़ी के पास एक सहायक होता है जो यह बताता है कि गीला कचरा यहां डालना है और सूखा यहां। फिर भी लोगों को यह मानना जरूरी नहीं लगता। हमारे मोहल्ले में कई लोग अपने ही जमीन पर मकान नहीं बनवा पा रहे हैं। दरअसल, उनके जमीन के हिस्से पर कूड़ा फेंकने का ठिकाना बना दिया गया था और अब उसे साफ कराना उनके लिए एक बड़ा काम हो गया है। अगर कोई व्यक्ति अपने घर का कूड़ा दूसरे के घर में फेंकने के लिए सोच सकता है तो दूसरा भी यही काम दोहरा सकता है। कुछ घटनाएं ऐसी होती हैं, जिनकी अपेक्षा समाज नहीं रखता है। अपनी समस्त ज्ञान पूंजी के आधार पर छोटी मोटी गलतियां गौण हो जाती हैं।

कई बार कुछ लोग अपने पालतू मवेशियों को भी उन्हें सड़क पर खुला छोड़ देते हैं जो अक्सर यातायात का बड़ा बाधक बनता है। उन्हें मवेशियों से सिर्फ लाभ कमाने भर से मतलब होता है। वे क्या खा रहे हैं, कहां जा रहे हैं, क्यों जा रहे हैं, किसे अपनी सीगों से घायल कर रहे हैं, इन सब बातों का जरा भी उनके स्वामी को परवाह नहीं होता है। दरअसल, यह समस्या किसी एक दिन की नहीं, बल्कि आए दिन कई लोग इधर-उधर, सड़क के किनारे प्लास्टिक का थैला और कूड़ा फेंकते रहते हैं। वहां से उठाए जाने के पहले आवारा मवेशी उन थैलियों को खोलते हैं और फिर थैलियों में बंद कूड़ा वहां तितर-बितर हो जाता है। इससे सड़क पर गंदगी फैलती है और राहगीरों के लिए बहुत सारी परेशानी उत्पन्न होती है। मेरे सामने कई बार पशुओं ने वहां से गुजरने वाले लोगों पर हमला करके घायल कर दिया। जब इस तरह की आवारा पशुओं को देखता हूं तो सोचता हूं कि सरकारों ने कहने को तमाम घोषणाएं कर रखी हैं, लेकिन हकीकत सड़क पर घूमती-टहलती दिखती है।

दूसरी ओर, जानवरों द्वारा प्लास्टिक निगल लेने से किस तरह की समस्याएं खड़ी हो रही हैं, यह कोई छिपी बात नहीं है। तमाम पशुओं की मौत की खबरें आती रहती हैं, जिनकी मौत की वजह प्लास्टिक गटक जाना है। सभी जानते हैं कि प्लास्टिक पर्यावरण के लिए बहुत हानिकारक है। यह पशु-पक्षियों और मनुष्यों के लिए दिन-प्रतिदिन संकट बढ़ाता जा रहा है। बहुत सारे कचराघर या कचरा जमा करने वाले केंद्र बनाए गए हैं, लेकिन हर जगह प्लास्टिक की उड़ती हुई पॉलीबैग, थैले, खिलौने, रसोई के सामान बिखरे दिख जाते हैं। प्लास्टिक का आमतौर पर पुनर्चक्रण नहीं हो पाता है, इसलिए आवासीय आबादी के बाहर ठोस कचरे के साथ उसका निपटान किया जाता है। जिस प्लास्टिक में हम कूड़ा इकट्ठा करते हैं और कूड़े को इधर-उधर फेंकते हैं, उससे स्थानीय वातावरण बुरी तरह प्रभावित होता है, जिसके शिकार हम खुद भी होते हैं।

भागमभाग वाली जीवनशैली की आगे बहुत सारे लोगों का कूड़ा कई दिनों तक घर के किसी कोने में या किचन में सड़ता रहता है। उससे अजीब दुर्गंध आती रहती है। इससे उस जगह रहने वाले व्यक्ति की श्वसन प्रकिया भी प्रभावित होती है और फेफड़ा संक्रमित होकर वात, पित्त और कफ से भर जाता है। कंठ अवरुद्ध हो जाता है और सांस लेने में कठिनाई होने लगती है। सर्दी-जुकाम, बुखार और थकान हवा में घूम रहे सूक्ष्म तत्त्व भी कई लोगों को संक्रमित कर देता है और उन्हें धीरे धीरे खोखला बना देता है।

सवाल है कि आखिर हम कूड़े को लेकर इतने निरपेक्ष और असंवेदनशील क्यों हैं? जिस जीवनचर्या में लोग अपने को बहुत महत्त्व देते हैं, उसी का किस्सा कूड़े का सही तरीके से निपटान करना भी है। सड़क के दोनों तरफ बन रहे मकानों की ऊंचाई देख कर ऐसा लगता है कि अब वह दिन दूर नहीं जब मनुष्य कंक्रीट के जंगलों का बहुत छोटी इकाई बन कर रह जाएगा, जिसे न तो पशु-पक्षियों से कोई लगाव रह जाएगा, न खुद इंसानों से।