अनीता मिश्रा

बहुत सपने देखने और जतन करने के बाद कदम आगे की ओर बढ़ते हैं। वही कदम जब पीछे की ओर लौटने लगते हैं तो वह कोई साधारण घटना नहीं होती है। अपने कार्यालय में एक सहायक की विज्ञापन दिया था। उसमें साफ-सफाई के साथ सहयोग के थोड़े-बहुत और काम थे। अपनी आय में काफी गिरावट की वजह से बहुत ज्यादा तनख्वाह नहीं दे सकती थी, फिर भी वह किसी नया काम शुरू करने वाले युवक के लिए पर्याप्त थी। उम्मीद थी कि कोई नई उम्र का जरूरतमंद युवा संपर्क करेगा। पर उस वक्त बहुत हैरत हुई जब इस विज्ञापन के बाद काम के लिए लोग आने लगे। इनमें वैसे लोग भी थे जो पचास की उम्र पार कर चुके थे।

मैंने ऐसे लोगों से जानना चाहा कि क्या वजह है कि आप इस उम्र में यहां यह काम करने के लिए तैयार हैं। उन लोगों ने जो बताया वह काफी दुखद और चौंकाने वाला था। उनमें से ज्यादातर के साथ ऐसा हुआ था कि उनका कोई अपना छोटा-मोटा कारोबार था जो पूर्णबंदी की वजह से बंद हो गया था। एक वरिष्ठ व्यक्ति की आपबीती तो कुछ इस तरह थी कि वे मुंबई में सुरक्षा गार्ड की एजेंसी चलाते थे।

महामारी के बाद पूर्णबंदी लागू हुई तो सुरक्षा गार्डों की मांग में गिरावट आई और आखिर उनकी कंपनी बंद हो गई। उनके साथ जो काम करने वाले थे वे अलग-अलग प्रदेशों के गांव से आए थे, जो पूर्णबंदी के बाद अपने घर लौट गए। कुछ दिन इंतजार करने के बाद जब जमा-पूंजी खर्च हो गई तो वे वरिष्ठ व्यक्ति भी मुंबई से वापस आ गए और नौकरी की तलाश में विज्ञापन देखने लगे। इसी सिलसिले में वे मुझसे मिलने आए थे। मुझे बहुत संकोच हुआ कि जिस व्यक्ति का अपना इतना बड़ा काम था और जो दूसरों को रोजगार देता था, अब मैं उन्हें एक कम आय वाली नौकरी पर कैसे रखूं! रख भी लूं तो सहायक के काम के लिए इतने वरिष्ठ व्यक्ति को कैसे कह पाऊंगी।

इसी तरह, एक लगभग पैंसठ साल के बुजुर्ग आए। मैं उनके सम्मान में खड़ी हो गई तो वे भावुक हो गए। पूछने पर उन्होंने भी बताया कि उनका एक छोटा-सा रेस्तरां था जो पूर्णबंदी के चलते बंद हो गया। उन्होंने बताया कि सारी उम्र काम किया है। एक बेटी थी उसकी शादी हो गई। बेटी के यहां जाकर रहना ठीक नहीं लगता है। किसी पर भी आश्रित नहीं होना चाहता, लेकिन इस उम्र में जहां जाता हूं लोग नौकरी तो नहीं देते, बल्कि मजाक उड़ा देते हैं। कोई कहता है कि अब ऊपर जाने की उम्र है, भजन कीजिए, कामधाम क्या करेंगे अब। जबकि मैं कुछ करना चाहता हूं।

उनकी कहानी सुनकर दुख हुआ, लेकिन समस्या वही थी कि अपने पिताजी की उम्र के व्यक्ति से मैं भागदौड़ और मेहनत वाला काम कैसे करा सकती थी! इसलिए मैंने उन्हें आश्वासन दिया कि अगर आप दफ्तर में बैठने वाला कोई काम, जैसे हिसाब-किताब रखने का काम करना चाहें तो कहीं और बात करने की कोशिश करूं। उन्होंने मायूसी से कहा कि हां आप देखिए, लेकिन इस तरह के काम में भी आजकल कंप्यूटर में माहिर होने की जरूरत है। मैं साधारण तरीके से तो बहुत तेजी से काम कर सकता हूं, लेकिन कंप्यूटर से करना मेरे लिए मुश्किल होगा।

एक छोटा उदाहरण कैसे किसी चमक के सारे पर्दे उतार देता है। पिछले कुछ वक्त से इस तरह के मामलों को लगातार देखते हुए थोड़ी फिक्र बढ़ गई है कि जो उम्रदराज हैं और पूर्णबंदी या किसी कारण से उनके पास कोई काम नहीं है, तो क्या विकल्प है। पहले ही नौकरियां कम हैं और अगर हैं भी तो वे जगहें युवाओं के लिए हैं। चालीस से ज्यादा की उम्र में कोई ढंग का काम मिलना मुश्किल हो गया है। बहुत सारे लोग पूर्णबंदी के कारण अपना रोजगार खो चुके हैं और काम बंद होने या कर्ज चढ़ जाने की वजह से हताशा का शिकार होकर अवसाद में जा रहे हैं।

कर्ज न चुका पाने के कारण खुदकुशी की खबरें भी अखबार में इन दिनों पढ़ रही हूं। ऐसी खबरें आ चुकी हैं कि पूर्णबंदी की वजह से अब तक करीब साढ़े सात करोड़ नौकरियां गई हैं। खासी तादाद में उद्योग और व्यवसाय बंद होने से लाखों की संख्या में मजदूरों का रोजगार भी गया है। इस स्थिति में बहुत पढ़े-लिखे लोग भी हर काम करने को तैयार हैं। जो लोग कल तक अपना व्यवसाय कर रहे थे, आज दूसरों से नौकरी मांग रहे हैं। जबकि बहुत सारे लोगों ने अपने कर्मचारी कम कर दिए हैं। ऐसे में अगर महामारी की मार और बंदी जैसे हालात फिर पैदा होते हैं तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह हताशा और अवसाद के किस और कितने बड़े दायरे में अंधेरे की वजह बनेगा।