गांव का अपना ही छंद होता है। वह सहजता से चलता है। अगर आप सहज हैं, तो कहीं भी चले जाएं, कोई दिक्कत नहीं आएगी। गांव आसानी से स्वीकार कर लेता है। पहले जब गांव जाते थे तो असुविधा ज्यादा दिखती थी, पर अब गांव तेजी से बदलते दिख रहे हैं। अब गांव में पक्की सड़कें मिल जाएंगी। गांव के पंचायत भवन तकनीकी सुविधा युक्त हैं। ग्राम पंचायत की सारी बैठकें वहीं हो जाती हैं। हाई स्कूल और सीनियर स्कूल हैं। थोड़ा और आगे बढ़ते हैं तो गांव में चाय की दुकानें हैं, दो-तीन। एकाध मिठाई की दुकान और कुछ खाने का ढाबा भी मिल सकता है। और क्या चाहिए, सब कुछ तो मिल गया। बस गांव को सहजता के साथ संवेदना के साथ देखते चलिए। गांव का जीवन और संसार सीधे-सीधे आपको गांव से जोड़ देता है।
अब गांव में अभाव का रोना रोने वाले कम, अपने गांव की समृद्धि और विशेषता बताने वाले ज्यादा मिलते हैं। घरों में बिजली, टीवी के डिश एंटेना की छतरी छतों पर दिख जाएगी। कोई भी चाय को पूछ सकता है। गांव के बारे में, समाज के बारे में, लोगों की सुख-सुविधा के बारे में, इसी के साथ और किसी तरह की जानकारी चाहिए, तो गांव आराम से देने को बैठा है। वह जानता है कि चुनाव का समय है और चुनाव ड्यूटी से जुड़ी जानकारी साझा करने में वह एक पल भी देर नहीं करता। जो जानकारी चाहिए वह सब आपको देता है और कहता है कि हमारे गांव में किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं है। बड़े बुजुर्ग आश्वस्त करते हैं। नौजवान गौर से देखते हैं और बच्चे हैं कि आपको थोड़ा आश्चर्य से देखते हैं। उन्हें लगता है कि आप कोई बड़े अधिकारी हैं, जिस पर गांव का चुनाव और गांव का भविष्य जुड़ा है। इसी हिसाब से सब आपको देखते हैं और चुनावी ड्यूटी होने के कारण कोई अवरोध नहीं। सब आपके रास्ते से हट जाते हैं।
गांव में अब अपने आप को गौरवान्वित महसूस करने की आदत विकसित हो रही है। किसानी को भी केवल अन्न उपजाने तक सीमित करके नहीं देख रहे हैं, बल्कि कौन-सी फसल बोने में फायदा है और किसका भाव चल रहा है, सब पर एक पारखी नजर गांव और किसान रख रहा है। अब वह ऐसे नहीं मिलेगा कि सब भगवान भरोसे छोड़ दिया हो- भगवान का भरोसा है, पर इस भरोसे के साथ ही अपने ऊपर भरोसा, आज की तकनीक और सूचनाओं पर भरोसा तथा बाजार की गहरी पड़ताल करता है। अब आसानी से कोई उसे ठग नहीं सकता। अब वह समय के साथ चल रहा है, लगातार अद्यतन रह रहा है।
अब उसके हाथ में स्मार्ट फोन आ गया है। गांव की नई पीढ़ी पुराने लोगों को उसे समझाने-सिखाने में लगी है। कोरोना के बाद गांवों में भी अतिरिक्त सजगता आई है। प्रदेश और देश में क्या हो रहा है, सब सूचनाएं छन कर नहीं, बल्कि सीधे-सीधे गांव पहुंच रही हैं। अब गांव भी देश-दुनिया से बस एक बटन की दूरी पर है। यहां वाट्सएप, फेसबुक सब चल रहे हैं। पर गांव को इतनी फुर्सत नहीं है कि वह बैठ कर बस मोबाइल का हो जाए। मोबाइल उसके फुर्सत का साथी है। जब लोग खेत-खलिहान से मुक्त हो जाते हैं, तो मोबाइल के साथ दुनिया से जुड़ जाते हैं। अब गांव के लोग परंपरागत साधनों के साथ आधुनिक तकनीक का प्रयोग दक्षता के साथ करना सीख रहे हैं। जिस किसान के खेत में फसल तैयार है, वह इस इंतजार में है कि कब पक जाए और उसे खेत से निकाल कर घर-आंगन में लाए, फिर जरूरत और उपभोग का निकाल कर अतिरिक्त उत्पादन को बाजार में दे दे। अब वह मोल-तोल करता है, दस जगह भाव देखता है फिर जहां सही मिलता है वहां अपनी फसल दे देता है।
अब शिक्षा का महत्त्व लोगों के सिर चढ़ कर बोलता है। मोबाइल की तकनीकी प्रगति के साथ युवा जिस समझ का प्रयोग कर रहे हैं, वह शिक्षा के महत्त्व को बखूबी समझ रहा है। नए जमाने में गांव तेजी से बदल रहे हैं। गांव अब दुविधा में नहीं रहना चाहता, गांव से सटे शहर की ओर तेजी से भाग रहा है। गांव में अब जिंदगी बाजार के साथ तेजी से बदल रही है। गांव को अलग-थलग कर हम देश को नहीं समझ सकते, न गांव को। देश को समझने के लिए गांव को बारीकी से समझने की जरूरत है। गांव की क्या आवश्यकता है, गांव के लोग क्या चाहते हैं, किस तरह वे गांव को देखते हैं और हमारे गांवों में किस तरह की सुविधाएं चाहिए, क्या कुछ हो गया है और क्या नहीं हुआ इन प्रश्नों को लेकर गांव विकास, स्वस्थ और सुखी समाज की राह देख रहा है।