पिछले दिनों पंजाब के जलंधर में लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों से बातचीत के बाद एक दिलचस्प, मगर सुखद जानकारी मिली कि यह पूरा परिसर नशा मुक्त है। जबकि विश्वविद्यालय में हजारों विद्यार्थी, अध्यापक और अन्य स्टाफ हैं। परिसर में ही छात्रावास हैं, तो अध्यापक और दूसरे कर्मचारियों के भी आवास हैं। होटल प्रबंधन की पढ़ाई में दाखिला लिए विद्यार्थियों के लिए परिसर में ही एक होटल भी है। उसी में विश्वविद्यालय में आने वाले अतिथियों, विद्यार्थियों के परिजनों आदि को ठहराया जाता है। इस होटल में भी कोई धूम्रपान नहीं कर सकता। परिसर में भारी तादाद में सुरक्षा कर्मचारी तैनात हैं, बड़ी तादाद में सीसीटीवी कैमरे भी लगे हैं। मतलब यह कि कोई चाहे तो कहीं छिप कर भी धूम्रपान नहीं कर सकता।

पिछले दिनों पंजाब के जलंधर में लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों से बातचीत के बाद एक दिलचस्प, मगर सुखद जानकारी मिली कि यह पूरा परिसर नशा मुक्त है। जबकि विश्वविद्यालय में हजारों विद्यार्थी, अध्यापक और अन्य स्टाफ हैं। परिसर में ही छात्रावास हैं, तो अध्यापक और दूसरे कर्मचारियों के भी आवास हैं। होटल प्रबंधन की पढ़ाई में दाखिला लिए विद्यार्थियों के लिए परिसर में ही एक होटल भी है। उसी में विश्वविद्यालय में आने वाले अतिथियों, विद्यार्थियों के परिजनों आदि को ठहराया जाता है। इस होटल में भी कोई धूम्रपान नहीं कर सकता। परिसर में भारी तादाद में सुरक्षा कर्मचारी तैनात हैं, बड़ी तादाद में सीसीटीवी कैमरे भी लगे हैं। मतलब यह कि कोई चाहे तो कहीं छिप कर भी धूम्रपान नहीं कर सकता।
यह जान और देख कर ज्यादा आश्चर्य इसलिए हुआ कि जिस पंजाब को अब तक मैंने ड्रग्स के लिए पूरे देश में बदनाम राज्य के रूप में जाना था, वहां इस कदर नशे से पूरी तरह मुक्त विश्वविद्यालय का परिसर भी है। हाल में पंजाब में संपन्न हुए चुनावों में मादक पदार्थों से पैदा हुए मसले पर खूब चर्चा हुई। कुछ समय पहले आई फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ भी इसी समस्या पर आधारित है। एक अनुमान के मुताबिक पंजाब की करीब पौने तीन अरब की आबादी में सवा दो लाख से ज्यादा लोग मादक पदार्थों के आदी हैं। इसकी लत के शिकार लोगों में निन्यानबे फीसद पुरुष हैं और उसमें भी करीब नब्बे फीसद पढ़े-लिखे लोग। कहने की जरूरत नहीं कि इससे उनका शरीर और धन दोनों ही गल रहा है। मैंने बहुत सारे विश्वविद्यालयों के परिसर देखे हैं, लेकिन पहली बार इस विश्वविद्यालय के परिसर में किसी को नशा करते नहीं देखा। मैंने खुद बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से पढ़ाई की है, जिसका परिसर कुछ मील में फैला हुआ है और विद्यार्थियों की तादाद भी बड़ी है।
जेएनयू, शिमला, सागर और वर्धा विश्वविद्यालयों के परिसर भी काफी बड़े हैं। लेकिन इनमें से कोई भी विश्वविद्यालय यह दावा नहीं कर सकता कि उसका परिसर नशे से पूरी तरह मुक्त है। सिगरेट और खैनी का सेवन तो आमतौर पर छात्र और अध्यापक करते देखे ही जाते हैं। तो क्या इस विश्वविद्यालय में वही लोग दाखिला लेते, पढ़ाते या काम करते हैं, जो धूम्रपान नहीं करते? अगर ऐसा नहीं है तो धूम्रपान की लत वाले लोग क्या करते हैं। दरअसल, ऐसे लोगों को जब धूम्रपान की तलब लगती है, तो उन्हें परिसर से बाहर कुछ किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। ऐसी स्थिति में एक असर यह भी पड़ा है कि जो लोग दिन भर में पंद्रह या बीस सिगरेट पीते थे, उसकी संख्या अब दो या तीन रह गई है। हालांकि कुछ छात्रों ने यह भी कहा कि हम कैंपस में सिगरेट नहीं पी पाते, इसलिए परिसर में आने के पहले और फिर निकलने के बाद अपनी जरूरत पूरी करते हैं। लेकिन कम से कम पांच-छह घंटे दूर रहना अपने आप में एक महत्त्वपूर्ण पहलू है। जाहिर है, एक सीमित दायरे में ही सही, लेकिन युवकों को नशे की प्रवृत्ति से बचाने के लिए मुझे यह एक बड़ी पहल लगी।

यही वह उम्र होती है, जिस दौरान छात्र नए मित्रों के संपर्क में आते हैं और अगर कोई पहले से नशे का शिकार है, तो उसके साथ महज शौक में नशे के तरह-तरह के प्रयोग भी करते हैं। ज्यादातर युवकों को इसी दौरान नशे की लत पड़ती है। अगर इस उम्र में उन्हें नशे से बचा लिया जाए तो फिर बाद में वे आमतौर पर किसी तरह के मादक पदार्थों की आदत के शिकार नहीं होते या उनसे बचे रहते हैं। अध्ययनों में भी ये तथ्य सामने आए हैं कि बीस से तीस साल की उम्र तक अगर किसी ने अपने आप को बचा लिया और नशे की गिरफ्त में नहीं आया, तो उसके आगे इसमें फंसने की आशंका बहुत कम रहती है। पंजाब जिस पैमाने पर नशे की समस्या से जूझ रहा है, उसके मद्देनजर इस विश्वविद्यालय की यह पहल युवकों में बढ़ती मादक पदार्थों की लत को रोकने में काफी असरदार हो सकती है।

इसे अगर सभी विश्वविद्यालयों में लागू कर दिया जाए तो अहम नतीजे सामने आ सकते हैं। इसके साथ ही यह प्रयोग स्कूलों के स्तर पर भी किया जाना चाहिए। आजकल बच्चों के खेलने की जगहें भी छिन गई हैं। ज्यादातर बच्चे अपने दोस्तों के साथ शाम को किसी पार्क या गली-मुहल्ले में गपबाजी करते हैं और वहीं सोहबत में धूम्रपान करना भी सीख जाते हैं। अगर ऐसे बच्चों को खेलने के लिए मैदान उपलब्ध कराए जाएं या पुस्तकालय आदि की व्यवस्था की जाए तो ज्यादातर बच्चों को नशे की लत की गिरफ्त में आने से बचाया जा सकता है।