Written by Kaunain Sheriff M , Ankita Upadhyay

केंद्र सरकार की प्रमुख स्वास्थ्य योजना आयुष्मान भारत को पलीता लगाकर जरूरमंद लोगों से ठगी करने वाले एक बड़े गिरोह का मामला बीते दिनों सामने आया है। केंद्र सरकार की ओर से चलाए जा रहे दिल्ली के टॉप अस्पताल में इस रैकेट का शिकार होकर जान या माल का नुकसान उठाने वाले 25 से अधिक मरीजों का रिकॉर्ड एक्सप्रेस इंवेस्टिगेशन के दौरान सामने आया है। रैकेट में कथित तौर पर बड़े डॉक्टर और उसके करीबियों का नाम भी शामिल है।

मेरठ के सलाहपुर गांव के लाइनमैन मोहित कुमार के परिवार से ठगी

इस साल मार्च में मेरठ के सलाहपुर गांव के लाइनमैन मोहित कुमार काम के दौरान गिर गए थे। उनके परिवार को कुछ राहत मिलने की उम्मीद थी क्योंकि इलाज के लिए उनके पास आयुष्मान भारत योजना थी। हालाँकि, केंद्र सरकार द्वारा संचालित देश के प्रमुख चिकित्सा संस्थानों में से एक सफदरजंग अस्पताल दिल्ली का का दौरा करने पर उन्हें 80,000 रुपये का नुकसान उठाना पड़ा। वे कथित तौर पर एक न्यूरोसर्जन और उसके सहयोगियों द्वारा चलाए जा रहे रैकेट का शिकार हो गए थे।

न्यायिक हिरासत में हैं आरोपी सर्जन डॉ. मनीष रावत, बना सीबीआई जांच का मुद्दा

आरोपी सर्जन सफदरजंग अस्पताल के न्यूरोसर्जरी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. मनीष रावत फिलहाल न्यायिक हिरासत में हैं और यह मामला सीबीआई जांच का विषय बन गया है। अब इसका दायरा फैलता ही जा रहा है। जांच के दौरान मेरठ के मोहित कुमार का उदाहरण कई मामलों में सामने आया है।

The Indian Express Investigation में सामने आया काला सच

द इंडियन एक्सप्रेस द्वारा आधिकारिक रिकॉर्ड, सीबीआई कोर्ट फाइलिंग और कई डॉक्टरों और मरीजों के साक्षात्कार की जांच से पता चला है कि कैसे इस साल के पहले तीन महीनों में 54 मरीजों को कथित तौर पर धोखा दिया गया था; कैसे दो वर्षों (जिसमें कोविड का समय भी शामिल था) में ज्यादातर गरीब परिवारों से प्रत्यारोपण के लिए 2.7 करोड़ रुपये वसूले गए और रकम को इधर-उधर करने के लिए बिचौलियों और कंपनियों के गठजोड़ का इस्तेमाल किया गया। इनमें तीन कंपनियां भी शामिल थीं जहां डॉ. मनीष रावत की पत्नी एक हितधारक थी।

केंद्र की प्रमुख योजना आयुष्मान भारत को लगाया गया पलीता

विडंबना यह है कि इनमें से कई प्रत्यारोपण केंद्र की प्रमुख आयुष्मान भारत योजना के तहत कवर किए गए थे। आरोपपत्र में कहा गया है, “जांच से पता चला है कि डॉ. मनीष रावत ने दूसरों के साथ मिलकर साजिश रचकर अवैध पैसे लेने के लिए पात्र मरीजों को भारत सरकार की आयुष्मान भारत योजना का लाभ नहीं उठाने दिया।”

डॉ. रावत के वकील ने मरीजों से विक्रेताओं की सिफारिश को बताया आम बात

संपर्क करने पर डॉ. रावत के बचाव पक्ष के वकील नवीन कुमार ने कहा कि उनके मुवक्किल को “सफदरजंग अस्पताल से जुड़े कुछ लोगों” द्वारा झूठा फंसाया जा रहा है। नवीन कुमार ने कहा कि डॉक्टरों द्वारा मरीजों को ऐसे विक्रेताओं की सिफारिश करना आम बात है जिनसे वे चिकित्सा प्रत्यारोपण खरीद सकते हैं। उन्होंने कहा, “डॉ. मनीष रावत के मामले में जिन विक्रेताओं से वह काम कर रहे थे, उन्होंने मरीजों को अधिकतम खुदरा मूल्य से कम कीमत पर प्रत्यारोपण की पेशकश की।”

आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत 5.37 करोड़ से ज्यादा एंट्री

यह तब आता है जब केंद्र की प्रमुख योजना 27,000 से अधिक सूचीबद्ध अस्पतालों (Listed Hospitals) के व्यापक नेटवर्क को कवर करती है। 15 जुलाई तक आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत 5.37 करोड़ अधिकृत अस्पताल प्रवेश (Entry) दर्ज किए गए थे। योजना के सबसे उल्लेखनीय पहलुओं में से एक यह है कि सूचीबद्ध अस्पतालों में से 57 प्रतिशत सार्वजनिक अस्पताल हैं जो लाभार्थियों को मुफ्त इलाज मुहैया कराते हैं। यह गरीब मरीजों को इस विश्वास के साथ इलाज कराने में सक्षम बनाता है कि उन्हें उनके हक से धोखा नहीं मिलेगा।

सफदरजंग अस्पताल में प्रत्यारोपण के नाम पर फर्जीवाड़े की वारदात से मरीजों की परेशानी बढ़ गई है।

कम से कम 25 मामलों में विक्रेताओं ने मरीजों से वसूले 500 फीसदी अधिक कीमत

हालाँकि, यह मामला सिस्टम में खामियों की याद दिलाता है। अपने आरोपपत्र में सीबीआई ने इस वर्ष के पहले तीन महीनों में 94 रोगियों द्वारा किए गए भुगतान को देखा और 54 से अधिक फीस लिए जाने का डेटा एकत्र किया। द इंडियन एक्सप्रेस द्वारा रोगी डेटा के विस्तृत विश्लेषण से प्रत्यारोपण की वास्तविक लागत और डॉ. मनीष रावत और उनके सहयोगियों द्वारा कथित तौर पर रोगियों से ली जाने वाली रकम के बीच स्पष्ट विसंगतियों का पता चलता है। कम से कम 25 मामलों में प्रत्यारोपण के लिए कथित तौर पर प्राप्त रकम विक्रेता द्वारा ली गई वास्तविक लागत का 500 प्रतिशत तक थी।

सामने आए कुछ बेहद स्पष्ट उदाहरण

• औसतन मरीजों ने एक मेडिकल इम्प्लांट के लिए 48,833 रुपये का भुगतान किया, जबकि विक्रेताओं को औसतन 11,604 रुपये का भुगतान मिला।

• कुछ मामले गंभीर हैं- एक मरीज ने इम्प्लांट के लिए 60,000 रुपये का भुगतान किया, जबकि विक्रेता को 2,000 रुपये मिले। दो अन्य रोगियों ने 50,000 रुपये और 49,000 रुपये का भुगतान किया, जबकि विक्रेता को संबंधित भुगतान प्रत्येक को 4,000 रुपये का था और एक अन्य मामले में विक्रेता को 2,000 रुपये मिले जबकि मरीज ने एक प्रत्यारोपण के लिए 35,000 रुपये का भुगतान किया था।

• सात मामलों में मरीज ने 1 लाख रुपये से अधिक का भुगतान किया, जिसके चलते औसतन 90,000 रुपये से अधिक की अधिक वसूली हुई। एक मरीज से सबसे अधिक राशि 1.66 लाख रुपये ली गई, जबकि इस मामले में विक्रेता को 58,000 रुपये मिले।

सीबीआई ने 166 कॉल इंटरसेप्ट कीं, सामने आई कोड में लिखी कई बातें

सीबीआई ने 166 कॉल इंटरसेप्ट कीं, जिनमें ‘गले की लिस्ट’ कोड वाले मरीजों की एक सूची सामने आई। उन्होंने व्हाट्सएप पर एक ‘रोगी समूह’ तक भी पहुंच बनाई, जहां डॉ. रावत और उनके सहयोगियों ने कथित तौर पर मरीजों या उनके परिचारकों (Attendents) से अवैध उगाही के बारे में जानकारी के अलावा जमा की गई रकम किसे ट्रांसफर किया गया तक की डिटेल्स पोस्ट की और अपडेट की। रिकॉर्ड में प्रत्यारोपण (Implants) प्रदान करने वाली सर्जिकल दुकान के मालिक द्वारा रखी गई एंट्रीज भी शामिल हैं।

डॉ. रावत या उनके परिवार के सदस्यों को पहुंचाए गए मरीजों से मिले पैसे

आरोप पत्र के अनुसार, ‘रोगी समूह’ की व्हाट्सएप बातचीत से पता चलता है कि “मरीजों से प्राप्त सभी भुगतान डॉ. रावत या उनके परिवार के सदस्यों को सौंप दिए गए थे।” सीबीआई ने विशेष रूप से तीन संस्थाओं की ओर निर्देशित लेनदेन की एक सीरीज की ओर इशारा किया है। इन तीन कंपनियों का नाम जुबिलेशन बायो साइंस प्राइवेट लिमिटेड, जुबिलेशन बिजनेस सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड और ए एंड ए एंटरप्राइजेज है। द इंडियन एक्सप्रेस ने पाया है कि डॉ. मनीष रावत की पत्नी तीनों कंपनियों में हितधारक (Share Holder) हैं।

आरोपी अवनेश कुमार आर्य और मनीष शर्मा ने मरीजों को डराकर की वसूली

आरोप है कि इन संस्थाओं को डॉ. रावत के एक सहयोगी अवनेश कुमार आर्य से नकद जमा के रूप में कुल 29.06 लाख रुपये मिले। आर्य पिछले साल दिसंबर तक जुबिलेशन बायो साइंस प्राइवेट लिमिटेड में कार्यरत थे और इस मामले में सह-अभियुक्त के रूप में नामजद हैं। आरोपों पर टिप्पणी के लिए वह उपलब्ध नहीं थे। सीबीआई ने आरोप लगाया है कि डॉ. रावत ने आर्य और जुबिलेशन बायो साइंस प्राइवेट लिमिटेड के एक पूर्व कर्मचारी और मामले के एक अन्य आरोपी मनीष शर्मा की मदद से 26 फरवरी, 2021 और 29 मार्च, 2023 के बीच मरीजों से लगभग 2.7 करोड़ रुपये एकत्र किए।

सीबीआई के आरोपपत्र में कई मरीजों और उनके परिजनों के बयान

सीबीआई के आरोपपत्र में यह भी बताया गया है कि कैसे डॉ. रावत के सहयोगियों द्वारा मरीजों के रिश्तेदारों को कथित तौर पर एक स्थान पर रखा गया था, खासकर हताशा के समय में उन्हें डराया गया था। मसलन, गिरीश कुमार सिन्हा टीबी मेनिनजाइटिस से पीड़ित थे और डॉक्टरों ने मस्तिष्क के भीतर गहरी नसों में तरल पदार्थ के निर्माण का इलाज करना शुरू कर दिया था। उन्हें सात मार्च को डॉ. रावत की देखरेख में भर्ती कराया गया था।

अस्पताल में मुफ्त मिलने वाली सुविधाओं के बारे में लोगों को अंधेरे में रखा

सीबीआई के अनुसार, जब सिन्हा का स्वास्थ्य खराब हुआ तो तरल पदार्थ को निकालने और मस्तिष्क में दबाव को कम करने के लिए वेंट्रिकल में एक बाहरी वेंट्रिकुलर डिवाइस (EVD) डालने का निर्णय लिया गया। सीबीआई के आरोप पत्र में कहा गया है कि न्यूरोलॉजी विभाग में मरीजों के लिए शंट और ईवीडी किट मुफ्त में आसानी से उपलब्ध होने के बावजूद सिन्हा के रिश्तेदारों को अंधेरे में रखा गया।

मरीज ने तोड़ा दम, डॉ. रावत ने आर्य और शर्मा के साथ मिलकर की साजिश

सीबीआई का आरोप है कि इसके बजाय पहले से ही ओपीडी कक्ष में मौजूद आर्य और शर्मा ने सिन्हा के बेटे आशीष को बताया कि उनके पिता को उनके मस्तिष्क में “शंट” लगाने के लिए ऑपरेशन की जरूरत है। उन्होंने लागत को कवर करने के लिए 50,000 रुपये की मांग की। 8 मार्च को सिन्हा की हालत खराब हो गई और उन्होंने बीमारी के कारण दम तोड़ दिया।

सीबीआई के आरोपपत्र में कहा गया है, “जांच से पता चला है कि डॉ. रावत ने आर्य और शर्मा के साथ मिलकर और साजिश रचकर मरीज से अनुचित लाभ लेने के लिए अपना सार्वजनिक कर्तव्य निभाने में बेईमानी की और एक लोक सेवक के रूप में अपनी आधिकारिक स्थिति का दुरुपयोग किया।”

मरीज की बेटी से नकली बिल में जीएसटी वगैरह जोड़कर वसूले करीब सवा लाख

जिस दिन सिन्हा को भर्ती कराया गया था उसी दिन अजीत सिंह नामक एक मरीज को डॉ. रावत की देखरेख में न्यूरोसर्जरी विभाग में रेफर करने से पहले कैजुअल्टी विभाग में लाया गया था। उन्हें रीढ़ की हड्डी के शुरुआती ऑपरेशन का सुझाव दिया गया और 10 मार्च, 2023 को लेटरल मास और रॉड फिक्सेशन प्रक्रिया की गई। आरोपपत्र के अनुसार, डॉ. रावत ने सिंह की बेटी सिमरन के सामने आर्य को निजी सहायक के रूप में पेश किया। आर्य ने बाजार में लागत 50,000 रुपये से 1 लाख रुपये के बीच तीन अलग-अलग इम्प्लांट की उपलब्धता के बारे में बताया। उन्हें बताया गया कि अगर उन्हें बिल की आवश्यकता हो तो जीएसटी भी लगेगा। सिमरन ने 1,15,500 रुपये का भुगतान करके सबसे महंगा इम्प्लांट चुना। हालांकि, सीबीआई ने कहा है कि इम्प्लांट की वास्तविक लागत केवल 14,000 रुपये थी।

बरेली में प्रैक्टिस के दौरान डॉ. मनीष रावत और मिला था अवनेश कुमार आर्य

डॉ. मनीष रावत जून 2016 में वर्धमान महावीर कॉलेज और सफदरजंग अस्पताल में न्यूरोलॉजी विभाग में सहायक प्रोफेसर के रूप में शामिल हुए। उन्हें नवंबर 2022 में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर प्रमोट किया गया था। कॉलेज और अस्पताल में उनके कार्यकाल से पहले डॉ. रावत बरेली के विभिन्न निजी अस्पतालों में प्रैक्टिस कर रहे थे। जांचकर्ताओं के अनुसार, 2014 में बरेली में ही डॉ. रावत की आर्य से मुलाकात हुई थी।

सफदरजंग अस्पताल, प्रत्यारोपण और आयुष्मान भारत योजना

सफदरजंग अस्पताल (जहां कथित अपराध हुए थे) केंद्र द्वारा संचालित एक प्रमुख और काफी हलचल भरा मल्टी लेयर्ड और मल्टी स्पेशिलिटी स्वास्थ्य सेवा संस्थान है। अपने पैमाने और क्षमता के लिए पहचाना जाने वाला यह वंचितों और हाशिए पर रहने वाले लोगों की एक बड़ी आबादी की सेवा करता है। उनकी महत्वपूर्ण स्वास्थ्य देखभाल जरूरतों को पूरा करता है। सफदरजंग अस्पताल में ऑपरेशन मुफ्त हैं। न्यूरोसर्जरी प्रक्रियाओं से गुजरने वाले मरीज़ अपने इलाज के लिए जरूरी किसी भी कपाल या रीढ़ की हड्डी के प्रत्यारोपण की खरीद के लिए जिम्मेदार हैं। हालाँकि, आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत आने वाले मरीज इन प्रत्यारोपणों की लागत को भी पूरी तरह से कवर करने के पात्र हैं।

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सीबीआई ने बताई आरोपी डॉक्टर और उसके मददगारों की मॉडस ऑपरेंडी

सफदरजंग अस्पताल के भीतर सबसे व्यस्त अनुभागों में से एक आपातकालीन विभाग में हर दिन 1,000 से अधिक मरीज़ आते हैं। सीबीआई ने आरोप लगाया है कि डॉ. रावत ने वरिष्ठ रेजिडेंट्स को आपातकालीन वार्ड में भर्ती मरीजों की एक सूची संकलित करने का निर्देश दिया था। इसके बाद उनके दो सहयोगी निजी सहायकों का रूप बनाकर मरीजों को बताते थे कि सर्जिकल प्रत्यारोपण के लिए बाहरी मदद की जरूरत है। यह भी आरोप है कि डॉ. रावत न्यूरोसर्जरी ओपीडी में मरीज के तीमारदारों को पर्ची भी देते थे।

प्रत्यारोपण की व्यवस्था के लिए अपने सहयोगियों से संपर्क करने के लिए पर्ची

सीबीआई ने आरोप लगाया है कि इन पर्चियों ने उन्हें बाहर से प्रत्यारोपण की व्यवस्था करने के लिए अपने सहयोगियों से संपर्क करने की अनुमति दी। सूत्रों के अनुसार, डॉ. रावत की गिरफ्तारी के कुछ ही दिनों बाद सर्जरी के लिए बाहरी स्रोतों से प्रत्यारोपण की खरीद की जांच के उद्देश्य से तत्कालीन चिकित्सा अधीक्षक द्वारा तीन सदस्यीय तकनीकी समिति का गठन किया गया था। सूत्रों ने कहा कि समिति का उद्देश्य उन स्थितियों का समाधान करना है जहां ये प्रत्यारोपण अस्पताल के भीतर आसानी से उपलब्ध नहीं थे और मरीजों को उचित कीमत पर इन्हें प्राप्त करने में मदद करना है।

प्रत्यारोपण की खरीद में डॉक्टरों और मरीजों के बीच कोई सीधा लेन-देन नहीं

सूत्रों ने कहा कि इस तकनीकी समिति का उद्देश्य एक ऐसी प्रणाली स्थापित करना है जहां प्रत्यारोपण की खरीद के संबंध में डॉक्टरों और मरीजों के बीच कोई सीधा लेन-देन नहीं होगा। सूत्रों ने कहा कि अस्पताल और सरकारी फार्मेसी के बीच एक समझौता ज्ञापन बनाने की प्रक्रिया चल रही है। सूत्रों ने कहा, “इस प्रस्तावित व्यवस्था के तहत जिन मरीजों को अपनी सर्जरी के लिए प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है, वे जरूरी रकम सीधे सफदरजंग अस्पताल एमएस के खाते में जमा करेंगे। इसके बाद, अमृत फार्मेसी संबंधित डॉक्टरों को आवश्यक प्रत्यारोपण की आपूर्ति करेगी। इन प्रत्यारोपणों की लागत की रकम अमृत फार्मेसी के खाते में की जाएगी।”

डॉ. मनीष रावत की गिरफ्तारी के बाद स्थापित की गई व्यवस्थाओं पर कोई बयान देने के लिए सफदरजंग अस्पताल की चिकित्सा अधीक्षक (Medical Superintendent) डॉ. वंदना तलवार उपलब्ध नहीं थीं।