अस्सी से नब्बे के दशक के बीच पश्चिमी यूपी में गुर्जर राजनीति में एक महेंद्र सिंह भाटी नाम का नेता उभर कर सामने आता दिखाई दे रहा था। जिधर देखो बस उसी के चर्चे थे, क्षेत्र से लेकर दिल्ली तक के नेता भाटी को कायदे से मान देते थे। लेकिन साल 1992 की तारीख 13 सितम्बर को भंगेल रोड की रेलवे क्रासिंग पर जिस तरह का हत्याकांड हुआ उसने यूपी की राजनीति में अपराध का जहर घोल दिया।
अलग किस्म की राजनीति करते थे भाटी: लोकप्रिय नेता महेंद्र सिंह भाटी तीन बार विधायक रहे थे। मिलनसार भाव वाले महेंद्र भाटी का नाम था, जिसके चलते क्षेत्र के कई लोगों को उन्होंने रोजगार दिलाने में मदद भी थी। जनता के हित और उनकी लड़ाई में सबसे आगे खड़े रहने वाले भाटी की मुलाकात इस बीच धर्मपाल यादव से हुई। धर्मपाल को लोग डीपी यादव के नाम से भी जानते थे। ये वही धर्मपाल यादव थे, जो बाद में मुलायम सिंह यादव के खास बन गए थे।
डीपी यादव ने इनको बनाया राजनीतिक गुरु: सन 87-88 तक महेंद्र सिंह भाटी और डीपी यादव पक्के यार हो चुके थे और इसी साल हुए ब्लॉक प्रमुख के चुनाव में महेंद्र भाटी ने डीपी यादव को प्रमुख की गद्दी दिलवा दी थी। इसके एक साल बाद 1989 के चुनावों में भाटी दादरी से विधायक बने तो डीपी यादव बुलंदशहर से चुनाव जीतकर विधायक बन गए थे।
मुलायम के सीएम बनते ही पलट गया पासा: कभी एक दूसरे के करीबी कहे जाने वाले महेंद्र भाटी और डीपी यादव में दुश्मनी हो चली थी। दरअसल, 2 दिसंबर 1989 को वी पी सिंह के पीएम बनने के बाद मुलायम यूपी के सीएम बन गए थे। लेकिन सीएम बनने के चलते मुलायम और चौधरी अजित सिंह में दूरी गई। इसके बाद डीपी, मुलायम के साथ तो महेंद्र सिंह भाटी अजित सिंह के साथ हो लिए। थोड़े ही दिनों में डीपी यादव, मुलायम सरकार में मंत्री बने तो दादरी पर राजनीतिक कब्ज़ा करने की सोची पर सामने महेंद्र भाटी खड़े मिले।
1991 के चुनावों ने बढ़ाई रार: साल 1991 के विधानसभा चुनाव में डीपी यादव और महेंद्र भाटी आमने-सामने थे। इस बार महेंद्र भाटी ने यादव के सामने प्रकाश पहलवान को चुनाव में उतारा तो डीपी यादव को कड़ी टक्कर मिली पर वह जीत गया। इसके बाद तो दोनों में तकरार ने जानी-दुश्मन का रूप ले लिया। वहीं इसी साल महेंद्र सिंह भाटी के छोटे भाई में डीपी यादव का नाम सामने आया तो दोनों में गैंगवार छिड़ गई।
क्या हुआ 13 सितंबर 1992 के दिन: विधायक महेंद्र भाटी अपने दोस्त उदय, साथी गनर और ड्राइवर के साथ भंगेल जा रहे थे। रेलवे फाटक के बंद होने के चलते उन्होंने अपनी गाड़ी रोक दी। फाटक खुला तो सामने दो गाड़ियां थी, महेंद्र भाटी समझ गए लेकिन संभल नहीं पाए और गाड़ी पर हुई ताबड़तोड़ फायरिंग में भाटी और उनके दोस्त उदय मारे गए। इस हमले में गनर घायल हुआ तो ड्राइवर बच निकला था।
और जब इस दिन आया फैसला: महेंद्र सिंह भाटी हत्याकांड में आरोप डीपी यादव, तेजपाल भाटी सहित दो अन्य पर भी लगे। इसके बाद राज्य सरकार की सिफारिश पर 1993 में जांच सीबीआई को दे दी गई। केस जारी रहा, चार्जशीट भी फाइल हुई और 28 फरवरी 2015 को सीबीआई की विशेष अदालत ने डीपी यादव सहित चारों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
लेकिन बीते साल ही 10 नवंबर को नैनीताल हाई कोर्ट ने सीबीआई कोर्ट के फैसले को पूरी तरह से पलटते हुए डीपी यादव को महेंद्र सिंह भाटी हत्याकांड से आरोप मुक्त कर दिया। कोर्ट ने आदेश में कहा कि डीपी यादव के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं है, ऐसे में अदालत ने यादव को रिहा करने का आदेश दिया है।