दुनिया भर के कई राजनेता ऐसा रहे जो अपने राजनीतिक सफर के शीर्ष पर रहे लेकिन उनकी असमय मृत्यु ने सभी को अवाक कर दिया। कुछ ऐसे भी नेता रहे जिनकी राजनीतिक हत्याएं की गई। विदेशों के अलावा देश में महात्मा गांधी, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पंजाब के ताकतवर सीएम माने जाने वाले प्रताव सिंह कैरों समेत कई नेताओं की राजनीतिक हत्या की पीड़ा बीते सालों में देश ने सही है।
महात्मा गांधी: महात्मा गांधी, भारत की आजादी के सबसे बड़े नायक के तौर पर उभरे थे। जिन्होंने हाथों में लाठी तो थामी लेकिन वह बस सहारे के लिए थी। अहिंसा के साथ आजादी लेने के प्रण ने उनके कद को आसमान सा ऊंचा कर दिया था। लेकिन देश में आजादी का जश्न अभी खत्म भी नहीं हुआ था कि महात्मा गांधी की हत्या ने पूरे देश को सहमा दिया। 30 जनवरी 1948 को दिल्ली के बिरला हाउस में नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी थी। अहिंसा के पुजारी गांधी की हत्या के समाचार ने समूची जनता के अंदर बिजली कौंधा दी थी। देश आज उन्हें राष्ट्रपिता के रूप में याद करता है।
प्रताप सिंह कैरों: पंजाब के मुख्यमंत्री रहे प्रताप सिंह कैरों प्रदेश में हरित क्रांति के अगुवा माने जाते थे। प्रताप सिंह, जवाहर लाल नेहरू के करीबी माने जाते थे लेकिन नेहरू के निधन के बाद उनकी सियासी गाड़ी बेपटरी हो गई। सीएम रहते हुए उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे और उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। हालांकि, दास कमीशन की रिपोर्ट में उन पर लगे सभी आरोप बेबुनियाद पाए गए। फिर कुछ समय बाद 6 फरवरी 1965 को जब वह दिल्ली से पंजाब लौट रहे थे तो नेशनल हाइवे पर कुछ लोगों ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी थी।
ललित नारायण मिश्र: आजाद भारत के पहले कैबिनेट मंत्री रहे ललित नारायण मिश्र को ‘ललित बाबू’ के नाम से जाना जाता था। प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के संसदीय सचिव रहे ललित बाबू 1973 से 1975 तक भारत सरकार में रेल मंत्री रहे थे। साल 1975 में इंदिरा गांधी मंत्रिमंडल के ताकतवर सदस्य रहे ललित नारायण की हत्या ने सभी को चौंका कर रख दिया था। बिहार के समस्तीपुर में ललित बाबू की एक बम ब्लास्ट में हत्या कर दी गई थी। तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने उनकी हत्या को विदेशी साजिश करार दिया था।
इंदिरा गांधी: देश में इंदिरा को ‘आयरन लेडी’ के नाम से जाना जाता था। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की बेटी इंदिरा पहले 1966 से 1977 तक फिर 1980 से 1984 तक सत्ता में रही थी। पंजाब में पैर पसार रहे आतंकवाद को खत्म करने के लिए उन्होंने ऑपरेशन ब्लूस्टार चलाया था। देश में आपातकाल लगाने सहित कई अन्य बड़े फैसलों के लिए जानी जाने वाली इंदिरा गांधी को उन्हीं के अंगरक्षकों ने 31 अक्टूबर 1984 को पीएम निवास में गोली मार दी थी।
राजीव गांधी: भारत में कंप्यूटर क्रांति के जनक और आधुनिक भारत के शिल्पकार कहे जाने वाले राजीव गांधी, देश के सबसे युवा प्रधानमंत्री रहे। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी 31 अक्टूबर 1984 से 2 दिसंबर 1989 तक प्रधानमंत्री पद पर रहे। राजीव के कार्यकाल के दौरान बोफोर्स कांड सबसे बदनुमा दाग रहा, जिसने उन्हें सत्ता से बेदखल कर दिया था। देश के लाखों युवाओं के आदर्श रहे राजीव गांधी 46 की उम्र में 21 मई 1991 को तमिलनाडु में एक आत्मघाती बम विस्फोट का शिकार हुए, जिसके पीछे लिट्टे का हाथ बताया गया था। इस घटना को देश की सबसे घृणित हत्या भी कहा गया था।
बेअंत सिंह: राजनेता और पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या सबसे क्रूर हत्याओं में से एक थी। साल 1992 से 1995 के दौरान मुख्यमंत्री रहे बेअंत सिंह को पंजाब में पसरे आतंकवाद के खात्मे के पीछे का मुख्य किरदार माना जाता था। इसी कारण उनके कई विरोधी भी थे, लेकिन ये दुश्मन 31 अगस्त 1995 को अपने मंसूबों में कामयाब हो गए। इसी तारीख को पंजाब के तत्कालीन सीएम बेअंत सिंह व अन्य 17 लोग सचिवालय के पास हुए आत्मघाती विस्फोट में मारे गए थे। बताते हैं कि ये आत्मघाती धमाका इतना जोरदार था कि इसकी गूंज कई किलोमीटर तक सुनी गई थी।
विद्याचरण शुक्ल: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता विद्याचरण शुक्ल, इंदिरा गांधी की कैबिनेट में कई अहम पदों पर रहे थे। वह चर्चा में तब आए थे, जब आपातकाल के बाद इंद्र कुमार गुजराल की जगह उन्हें सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनाया गया था। विद्याचरण शुक्ल 29 की उम्र में महासमुंद से पहली बार सांसद बने थे और वह एमपी के पहले मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ल के बेटे थे। 25 मई 2013 को विद्याचरण शुक्ल जब कांग्रेस पार्टी के काफिले के साथ जा रहे थे तो बस्तर जिले में वह एक नक्सली हमले का शिकार हुए थे, इसमें उन्हें तीन गोलियां मारी गई थी। कई दिनों तक जारी जीवन संघर्ष के बाद 11 जून को गुरुग्राम में उनका निधन हो गया था। इस नक्सली हमले में कुल 24 लोग मारे गए थे।