उत्तर प्रदेश में साल 2013 की मई में एक 14 साल के बच्चे को घर में घुसकर मारी गई। जिसके बाद पूरे लखनऊ में हड़कंप मच गया था। इस हत्या के पीछे की परते जब सामनें आनी शुरू हुई तो लोग हैरान रह गए। प्रेम त्रिकोण और बदले की भावना के चलते एक बच्चे को निशाना बनाया गया था। जब मामले में खुलासा हुआ तो पुलिस विभाग का ही एक तत्कालीन इंस्पेक्टर पूरे हत्याकांड का साजिशकर्ता निकला था।

29 मई, 2013 को लखनऊ के इंदिरानगर के फरीदीपुर में रात 10:30 बजे तीन लोग बाइक से एक घर के सामने पहुंचते हैं। आवाज देकर घर खुलवाया फिर गोली चला दी, जिसमें माज अहमद सिद्दीकी की मौत हो गई। शिकायत में माज की बुआ हुस्न बानो ने बताया कि रात को घर में दाखिल हुए लोगों ने टीवी देख रहे माज को गोली मार दी थी। इसके बाद हमलावर फरार हो गए।

शिकायत के मुताबिक, रात में यह सब इतनी जल्दी हुआ कि कुछ समझ ही नहीं आया। बाद में माज को ट्रॉमा सेंटर में मृत घोषित कर दिया गया था। देर रात हुए इस हत्याकांड ने सनसनी फैला दी और पुलिस के सामने भी बड़ी मुसीबत थी। जब जांच शुरू हुई तो पुलिस को विभाग के ही एक इंस्पेक्टर का नाम सामने आया। यह नाम ह्यूमन ट्रैफिकिंग सेल के तत्कालीन प्रभारी संजय राय का था।

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जांच के दौरान संजय राय ने बार-बार हत्याकांड में अकमल नाम के व्यक्ति की संलिप्तता की बात कही। जब पुलिस ने पड़ताल की तो अकमल के बजाय संजय राय ही शक के घेरे में आए। कॉल डिटेल से पता चला कि संजय राय ने ही बनारस की जेल में कैद बदमाशों की मदद से आजमगढ़ के शूटरों को सुपारी दी थी। इसके बाद पुलिस ने घटना में शामिल शूटरों समेत अन्य लोगों को गिरफ्तार किया।

खुलासा हुआ कि संजय राय की करीबी एक महिला एसआई से थी, जिसकी नौकरी मृतक आश्रित कोटे में कुछ दिन पहले संजय राय की मदद से ही लगी थी। अधिकारियों के मुताबिक, वह गाजीपुर थाने में पद पर रहते हुए महिला के संपर्क में आया था। इसके अलावा महिला मृतक माज की रिश्तेदार भी थी, लेकिन नौकरी के बाद उसकी करीबी अकमल नाम के युवक से बढ़ गई। जिसने संजय राय के अंदर बदले की भावना जगा दी।

जांच में यह भी सामने आया कि संजय राय की कॉल डिटेल में उस महिला एसआई का नंबर भी था। जब महिला की बात अकमल से बढ़ी तभी संजय ने हत्या की योजना बनाकर अकमल को फंसाने की साजिश रची। हालांकि, इन सब साजिशों और प्रेम त्रिकोण के बीच माज जैसे मासूम को अपनी जान गंवानी पड़ी। माज हत्याकांड की घटना के बाद इंस्पेक्टर संजय राय कई दिन फरार रहा।

संजय राय की तलाश में पुलिस की टीमों ने कई दिनों तक पूर्वांचल और मध्य यूपी की खाक छानी लेकिन सफलता नहीं मिली। दो महीने की फरारी के बाद संजय ने पुलिस की नजरों से बचते-बचाते 15 जुलाई को वकील की ड्रेस में कोर्ट में सरेंडर कर दिया। सात सालों तक चले केस में 2020 में बर्खास्त इंस्पेक्टर संजय राय समेत पांच आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। बाकी दो आरोपियों को दस-दस की सजा दी गई थी।