फैक्ट-चेकिंग वेबसाइट ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर को 2018 के एक ट्वीट पर गिरफ्तार करने के एक दिन बाद दिल्ली पुलिस की साइबर क्राइम यूनिट के अधिकारियों का कहना है कि वह जुबैर के बैंक लेनदेन और लैपटॉप की जांच-पड़ताल करने की योजना बना रहे हैं। बता दें कि, इससे पहले भी पुलिस ने कहा था कि जुबैर ने अपना लैपटॉप व फोन फॉर्मेट कर दिया है जिसकी जांच की जाएगी।

ज्ञात हो कि सोमवार (27 जून) के दिन जुबैर को आईएफएसओ यूनिट के द्वारका दफ्तर में साल 2020 में दर्ज हुए पॉक्सो के मामले के बुलाया गया था। इस केस में हाई कोर्ट ने जुबैर की गिरफ्तारी पर रोक लगाई थी। पूछताछ के दौरान, पुलिस ने उन्हें उनके दूसरे ट्वीट से जुड़े मामले की जांच में शामिल होने का नोटिस दिया और फिर बाद में उन्हें गिरफ्तार कर लिया।

मंगलवार को डीसीपी (साइबर क्राइम) केपीएस मल्होत्रा ​​ने दावा किया, ‘हमें जुबैर के खाते में 50 लाख रुपये से अधिक का लेनदेन मिला है। जो कि बीते तीन महीनों में आए हैं।’ डीसीपी मल्होत्रा ​​ने बताया कि अभी तक इस बारे हमें कोई सोर्स नहीं मिला है, लेकिन यह पैसा संदिग्ध संगठनों से दिया गया चंदा हो सकता है।

वहीं, दिल्ली पुलिस के इस दावे का खंडन करते हुए ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक प्रतीक सिन्हा ने कहा, यह सरासर झूठ है। पुलिस ऑल्ट न्यूज को मिले चंदे को जुबैर से जोड़ रही है। सिन्हा ने कहा कि ऑल्ट न्यूज को मिलने वाला सारा पैसा संगठन के बैंक खाते में जाता है, न कि किसी व्यक्ति के खाते में। सिन्हा ने दावा किया कि, उनके पास जुबैर के खाते का स्टेटमेंट है, जो कि पुलिस के इस झूठे दावे को खारिज करता है।

इस दावे पर जुबैर के वकील ने खुद भी कहा कि संगठन को ओपन सोर्स क्राउडफंडिंग के जरिए पैसा मिलता है। पुलिस झूठे आरोप लगा रही है, क्योंकि सब कुछ पब्लिक डोमेन में है। वहीं, डीसीपी मल्होत्रा ​​​​ने कहा कि हम अच्छी तरह से जानते हैं कि जुबैर का ट्वीट एक फिल्म से जुड़ा है लेकिन हमने कानून के मुताबिक काम किया। डीसीपी मल्होत्रा ​​​​ने आगे कहा कि यह ट्वीट असामंजस्य और अशांति पैदा कर रहा था। हम मामले की जांच कर रहे हैं और उससे (जुबैर) पूछताछ करेंगे। डीसीपी ने बताया कि सोमवार को पूछताछ के दौरान जुबैर ने सहयोग नहीं किया। जिसे अदालत ने भी देखा और पुलिस को कुछ और दिनों की रिमांड दी।

जुबैर के वकील कमलप्रीत कौर ने कहा कि, उन्होंने (जुबैर) ने पुलिस को बताया था कि उसके ससुर की तबीयत ठीक नहीं है लेकिन पुलिस ने उन्हें (पॉक्सो) मामले में ‘तात्कालिकता’ (Urgency) का हवाला देते हुए बैंगलोर से दिल्ली बुलाया। वकील ने दावा किया कि पुलिस ने जुबैर से कहा था कि यह बड़ा ही संवेदनशील मामला है और इस मामले में शिकायतकर्ता भी शामिल होगा।

वकील के मुताबिक, हमने पाया कि इस मामले से जुड़ा शिकायतकर्ता कहीं दिखा ही नहीं। पूछताछ के दौरान हमें एक और नोटिस दिया गया। उनसे सवाल पूछे गए और पुलिस ने उनका फोन मांग लिया। ऐसे में हमारे पास इस प्रक्रिया के लिए समय ही नहीं मिला जबकि ट्वीट मामले में एफआईआर 20 जून को दर्ज की गई थी। ऐसे में पुलिस ने पूछताछ से पहले नोटिस क्यों नहीं भेजा?