गुजरात में रहने वाला एक शख्स जो बचपन में गरीबी में पला-बढ़ा और फिर जब 12 वीं में स्कूल छूटा तो अवैध शराब के धंधे में उतर गया। आने वाले सालों में उसने इस गैरकानूनी धंधे में महारत हासिल कर ली और गुजरात का सबसे बड़ा शराब माफिया बन गया। यह कोई और नहीं बल्कि गुजरात का दाउद कहे जाने वाले अब्दुल लतीफ की कहानी है।
गुजरात में साल 1951 में जन्मा अब्दुल लतीफ आठ भाई-बहनों के साथ बड़ा हुआ। थोड़ा बड़ा हुआ तो परिवार ने स्कूल भेजा और उसने 12वीं तक पढ़ाई की। इसके बाद लतीफ का स्कूल छूट गया और वह छोटे-मोटे अपराधियों के संपर्क में आ गया जो अवैध शराब के धंधे में थे। थोड़े ही दिनों में अब्दुल लतीफ भी अवैध शराब बेचने वालों के यहां काम करने लगा लेकिन पिता ने उसे घर से निकाल दिया।
कुछ सालों तक दूसरों के साथ काम करने वाले लतीफ ने अब खुद से अवैध शराब का धंधा शुरू कर दिया। इस दौरान 1971 में उसने अकिला बानो से शादी भी की। 1977-78 में उसने राजस्थान और उदयपुर में चले वाली शराब भट्ठियों में पैसा लगाया और थोड़े ही दिनों में वह गुजरात का सबसे बड़ा शराब माफिया बन गया। इस धंधे में बादशाहत बनाने के बाद उसके कई बड़े अपराधियों से संपर्क भी स्थापित हो गए।
इस दौरान उसे असामाजिक गतिविधियों में शामिल होने के चलते पासा एक्ट के तहत जेल भेज दिया। वहीं राजनीति का कीड़ा लतीफ का पीछा नहीं छोड़ रहा था। ऐसे में साल 1986-87 में होने वाले गुजरात के नगरपालिका चुनावों में पांच सीटों से जेल में रहते हुए चुनाव लड़ा। अब्दुल लतीफ का दबदबा ऐसा था कि उसने सभी पांच सीटों (कालूपुर, शाहपुर, दरियापुर के साथ जमालपुर और राखांड) से चुनाव जीत लिया।
चुनाव जीतने के बाद उसने सुप्रीम कोर्ट में जमानत के दरवाजा खटखटाया और बाहर आया। लतीफ के करीबियों का मानना था कि उसके लिए लोगों में डर के साथ-साथ प्यार भी था। उस जमाने में लतीफ फिएट कार में चलता और वह सिगरेट का शौकीन माना जाता था। साल 1990 में लतीफ का संपर्क दाउद इब्राहिम से हुआ।
मुंबई बम धमाकों से पहले दाउद इब्राहिम ने साल 1992 में पोरबंदर में अत्याधुनिक हथियारों और विस्फोटकों की भारी खेप पाकिस्तान से मंगवाई। ऐसे में लतीफ की जिम्मेदारी थी कि वह इन हथियारों को सुरक्षित मुंबई पहुचाएं। बाद में 1993 के बम धमाकों में इन्हीं सब हथियारों का प्रयोग किया था और यही से लतीफ की जिंदगी ने करवट ले ली।
अब्दुल लतीफ को टाडा और रासुका के नामजद किया गया लेकिन वह गिरफ्तारी से पहले ही विदेश फरार हो गया। साल 1995 में वह पाकिस्तान के रास्ते अहमदाबाद आया और दिल्ली में छिपकर रहने लगा। हालांकि थोड़े दिनों में उसे गुजरात ATS ने पकड़ लिया और फिर दो साल साबरमती जेल में रहा। हालांकि वह जेल के अंदर से पूरे नेटवर्क को चलाता रहा।
29 नवंबर 1997 में जेल में बंद लतीफ को पूछताछ के लिए बाहर लाया गया। पुलिस के मुताबिक, पूछताछ के बाद उसे वापस ले जाया जा रहा था तभी उसने पेशाब का बहाना करके भागने की कोशिश की। इसी दौरान हुई फायरिंग में अब्दुल लतीफ मारा गया।