आज कहानी डकैतों के राजा रहे मलखान सिंह की जिसे खुद को बागी कहलवाना पसंद था। भिंड जिले के बिलाव गांव में पैदा हुए मलखान सिंह ने जुल्म और पुलिसिया रवैये से तंग आकर बंदूक उठाई थी। इसके पीछे का कारण भूमि विवाद था। मलखान सिंह के गांव के दबंगों ने जब मनमानी शुरू की तो उसने जवाब दिया। जिसके चलते उसे कुछ दिन के लिए जेल भी जाना पड़ा। ऐसे में जब मलखान ने बंदूक उठाई तो पूरा चंबल गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा।
कहा जाता है कि गांव बिलाव के सरपंच कैलाश नारायण पंडित से मलखान की दुश्मनी ही उसके बागी होने का कारण रही। मलखान अपने गांव बिलाव में एक छोटे से स्थानीय मंदिर से जुड़ी कुछ भूमि पर कैलाश के अतिक्रमण से नाराज था। इसी के कारण हर बार नौबत पुलिस तक पहुंचती थी। साल 1972 में, भूमि विवाद के चलते मलखान सिंह ने बंदूक उठाई। फिर 1972 से 75 के बीच उन पर डकैती के तीन मामले दर्ज किए गए।
इन सबके बीच साल 1976 की 5 मई को हुआ एक झगड़ा अपने खूनी चरमोत्कर्ष पर पहुंच गया, जब मलखान ने कैलाश को मारने की कोशिश की, लेकिन एक दूसरे व्यक्ति की मौत हो गई और दो अन्य घायल हो गए। छह गोलियां लगने के बाद भी कैलाश बाल-बाल बच गया। इस घटना के बाद मलखान उत्तर प्रदेश के जालौन चला गया और कुछ रिश्तेदारों व अन्य डकैतों के साथ मिलकर उसने चंबल का सबसे बड़ा और सशस्त्र गिरोह बनाने की नींव रखी।
फिर मलखान की गैंग ने दर्जनों अपहरण और लूट की घटनाओं को अंजाम दिया और पैसे इकट्ठे कर नए-नए हथियार खरीदे। धीरे-धीरे उसकी गैंग में डकैतों की संख्या बढ़कर सौ से ज्यादा की हो गई। मलखान की गैंग भिंड, मुरैना, इटावा, जालौन, आगरा और धौलपुर तक सक्रिय हो गई और एक से बढ़कर एक वारदातों को अंजाम देने लगी। मलखान के पास सेल्फ लोडिंग अमेरिकन राइफल तो थी ही बल्कि उसके गैंग में भी पुलिस से ज्यादा नए हथियारों की भरमार थी।
चंबल में 70-80 के दशक में कई और भी गिरोह थे लेकिन मलखान को सभी दस्यु सम्राट कहा करते थे। साल 1980 आते-आते मलखान की गैंग पर 94 से ज्यादा मामले दर्ज हो चुके थे। जिसमें दर्जनों मामले हत्या, हत्या के प्रयास, अपहरण व डकैती जैसे संगीन जुर्मों से जुड़े थे। मलखान पर कई पुलिस वालों को मारने के भी आरोप लगे थे। दिनों-दिन बढ़ते आतंक के चलते सरकार की भी चिंता बढ़ने लगी थी। एक दशक तक राज करने के बाद उसने एमपी में अर्जुन सिंह की सरकार के सामने सरेंडर करने का विचार बना लिया।
फिर 15 जून 1982 में 70 हजार के इनामी डाकुओं के सरदार मलखान सिंह और उसकी गैंग ने आत्मसमर्पण कर दिया। इसके बाद मलखान 6 साल जेल में रहा और साल 1989 में सभी मामलों में बरी करके रिहा कर दिया गया। जेल से छूटने के बाद मलखान सिंह ने राजनीति का रुख किया और फिर साल 2014 में वह भाजपा का प्रचार करते दिखा। लेकिन 2019 में उन्हें टिकट नहीं मिला तो उन्होंने भाजपा छोड़ प्रसपा का दामन थाम लिया, लेकिन लोकसभा चुनावों में वह हार गया था।