बिहार में राजनीति बिना बाहुबलियों के अधूरी है। ऐसे में एक बाहुबली नेता हैं जिसके पास अहिंसा के रूपक महावीर पर पीएचडी की डिग्री तो है ही, लेकिन अपराध का लंबा इतिहास भी मौजूद है। नाम है नरेंद्र कुमार पांडेय उर्फ सुनील पांडेय। राजनीति में रहने के दौरान कई दलों में रहे और भोजपुर की तरारी विधानसभा से अनेकों बार जीतकर विधायक बने। सुनील पांडेय को बिहार में “डॉक्टर डॉन” के नाम से भी जाना जाता है।
इंजीनियरिंग करने पहुंचे थे बेंगलुरु: बिहार के रोहतास के नावाडीह गांव में 5 मई 1966 को जन्मे सुनील पांडेय के पिता कमलेशी पांडेय बालू के ठेके लेते थे। हालांकि, उन्होंने 90 के दशक में सुनील पांडेय को इंजीनियर बनाने के लिए बंगलौर भेजा। लेकिन इंजीनियरिंग करने पहुंचे सुनील यहां मारपीट कर बैठे और सामने वाले शख्स को चाकू से घायल कर दिया। हंगामा हुआ तो वापस रोहतास की धरती में लौट आए। पिता की छवि दबंग लोगों में गिनी जाती थी तो सुनील भी उन्हीं की तरह बनना चाहते थे।
जुर्म की दुनिया में दस्तक: रसूखदार परिवार में पले-बढ़े सुनील की ख्वाहिशें दम भरने लगी थी कि, तभी उसका संपर्क शहाबुद्दीन के करीबी सिल्लू मियां से हो गया। रोहतास के आसपास के इलाकों में फैले बालू के ठेके और सरकारी टेंडरों में सिल्लू का दबदबा था। थोड़े ही दिनों में वह सिल्लू का खासमखास बन गया, लेकिन वर्चस्व की जंग में दुश्मनी हो गई। दोनों अलग हुए तो थोड़े ही दिनों बाद सिल्लू की हत्या कर दी गई, आपसी रंजिश के चलते सुनील का नाम आया। लेकिन जब सुनील के खिलाफ सबूत नहीं मिला तो वह केस से बाहर हो गए और इलाके में बालू के ठेकों का काम सुनील देखने लगा।
इस सेना का बना कमांडर: 90 के दशक में बिहार जातियों में बंट गया था, जातीय हिंसा और उन्माद के दौर में एक रणवीर सेना थी। इस रणवीर सेना के मुखिया ब्रह्मेश्वर सिंह थे और बाद सुनील पांडेय भी इसका कमांडर बना। लेकिन ब्रह्मेश्वर और सुनील पांडेय के बीच अदावत छिड़ गई, क्योंकि 1997 को तरारी के बागर में 3 लोगों की हत्या कर दी गई थी। साथ ही यह दुश्मनी उस दिन तक जारी रही, जब तक साल 2012 में ब्रह्मेश्वर की हत्या नहीं कर दी गई।
राजनीति में कदम: साल 2000 में सुनील पांडेय ने समता पार्टी से चुनाव लड़कर राजद के प्रत्याशी को पटखनी दे दी, पर इन चुनावों में किसी को बहुमत नहीं मिला। वहीं सुनील पांडेय का कद तब और बढ़ गया जब नीतीश कुमार को सीएम बनाने के लिए उन्होंने बिहार के सभी बाहुबलियों को एक पाले में ला दिया। इन बाहुबलियों में रामा सिंह, अनंत सिंह, सूरजभान, मुन्ना शुक्ला, धूमल सिंह और राजन तिवारी जैसे नाम शामिल थे। लेकिन दुर्भाग्य ऐसा कि सात दिन में ही सरकार गिर गई।
लंबा आपराधिक इतिहास: साल 2003 में पटना के नामी न्यूरो सर्जन रमेश चंद्रा का अपहरण हुआ और फिरौती में 50 लाख मांगे गए। पुलिस ने डॉक्टर को सही सलामत ढूंढ निकाला और विधायक सुनील पांडेय का नाम सामने आया। मामला बढ़ा तो 2008 में विधायक समेत तीन को उम्रकैद हुई लेकिन हाईकोर्ट ने बाद में पांडेय को बरी कर दिया। वहीं 2006 में ऑन कैमरा पत्रकार को जान से मारने की धमकी के चलते नीतीश ने पार्टी बाहर कर दिया।
- जिस बाहुबली सुनील पांडेय को 2006 में पार्टी से बाहर निकला गया था, उसे ही नीतीश ने फिर 2010 में टिकट दे दिया। इसके बाद उनका नाम रणवीर सेना के मुखिया ब्रह्मेश्वर सिंह की हत्या में भी आया था। वहीं 2015 में आरा कोर्ट बम धमाके में नाम आया था, साथ ही पकड़ में आए लंबू शर्मा ने पूछताछ में बताया था कि पांडेय ने यूपी के माफिया मुख्तार अंसारी को मारने के लिए भी 50 लाख की सुपारी दी थी। आरोपी लंबू के इकबालिया बयान के बाद सुनील पांडेय को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था।
- सुनील पर हत्या, हत्या की साजिश, रंगदारी अपहरण व लूट जैसी धाराओं में 40 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज थे, लेकिन अधिकतर में वह बरी ही हुआ। इसके तीन साल बाद 2018 में बिहार में हड़कंप तब मच गया जब मुंगेर के मिर्जापुर गांव में जंगलों, खेतों और कुओं से 20 एके-47 रायफल बरामद हुई। ये सारी रायफल जबलपुर आर्डिनेंस डिपो से स्मगलिंग करके लाई गई थी और सुनील पांडेय व उनके भाई हुलास पांडेय का नाम सामने आया था। मामले में डेढ़ दर्जन से ज्यादा आरोपी गिरफ्तार भी हुए, लेकिन कोरोना महामारी के चलते NIA के द्वारा जांच को रोक दिया गया था।
सियासी पतन: साल 2015 में सुनील पांडेय ने डगमगाई सियासी नाव को नीतीश कुमार के खेमे से रामविलास पासवान के घाट पर लगा दी, लेकिन यहां भी निराशा हाथ लगी। एलजेपी ने सुनील पांडेय को टिकट न देकर उनकी पत्नी को मैदान में उतारा, लेकिन वह चुनाव हार गई। वहीं साल 2020 में सुनील पांडेय को एक बार फिर निराशा हाथ लगी, जब उन्हें किसी पार्टी से टिकट नहीं मिला। वहीं बीते साल वे सुर्ख़ियों में तब आए, जब उन्हें फोन कर 50 लाख रुपये की रंगदारी मांगी गई।