क्रिकेट की पिच पर आक्रामक रहने वाले नवजोत सिंह सिद्धू राजनीति की पिच पर भी आक्रामक बयानबाजी करते हैं। जब वे भाजपा में थे तो कांग्रेस पर तेज हिट करते थे। कांग्रेस में आने के बाद उनके बयान बदल गए। पहले कांग्रेस ‘मुन्नी’ से भी ज्यादा बदनाम लगती थी। भाजपा पहले ‘मां’ लगती थी, पर अब भाजपा को कभी न छोड़ने का वादा कर चुके नवजोत सिंह सिद्धू को भाजपा कैकेई जैसी लगने लगी है। वे पंजाब में अकाली दल के साथ भाजपा गठबंधन के खिलाफ थे।

पहले उनके आम आदमी पार्टी में जाने की जोरदार चर्चा चली। जब उन्हें मनमाफिक पद का भरोसा नहीं मिला, तो वे उसमें नहीं गए। राहुल गांधी को तो उन्होंने पप्पू नाम दे दिया था। कांग्रेस की सदस्यता ली, उसके पहले कांग्रेस और अकाली दल का विरोध करते थे। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह से भी खफा रहते थे। उन्होंने उन पर बादल परिवार की मदद का आरोप लगाया। चार साल तक पंजाब के मुख्यमंत्री रहे कैप्टन के साथ आए दिन नवजोत सिंह सिद्धू माथापच्ची करते रहते थे। सिद्धू ने तो कैप्टन को कुर्सी का भूखा तक कह डाला था।

दूसरी और कैप्टन भी उन्हें गंभीरता से नहीं लेते थे। फिर कैप्टन के बोल भी बदल गए। कैप्टन ने उनको तांगा कहा था। राहुल बाबा स्कूल जाओ स्कूल। और स्कूल में जाकर पढ़ना सीखो। राष्ट्रवाद और राष्ट्रद्रोह में फर्क सीखो। मैंने राहुल भाई से बात की है। राजनीतिक भाषणों में ऐसा होता है। मुझे भी काफी कुछ कहा गया है। पप्पू प्रधानमंत्री है कांग्रेस का। कोई मजबूर प्रधानमंत्री ईमानदार नहीं हो सकता। मुझे तो शक है कि सरदार भी है कि नहीं। राहुल गांधी का मैंने नाम नहीं लिया। कांग्रेस की मंडी बड़ी नशीली है। मैं जन्मजात कांग्रेसी हूं। ये नवजोत सिंह सिद्धू के बयान हैं।

पार्टी के लिए कहा सुना माफ किया जाता है, लेकिन नवजोत सिंह की बयानबाजी उस समय मुश्किल पैदा कर गई, जब उन्होंने पुलिस की खिल्ली उड़ाई। राज्य पुलिस ने नोटिस देकर नवजोत सिंह सिद्धू से बिना शर्त माफी मांगने को कहा है। अगर माफी नहीं मांगते हैं, तो उनके खिलाफ मामला दर्ज किया जाएगा। डीएसपी ने कहा कि जिस व्यक्ति और उनके परिवार के लिए पुलिस सुरक्षा प्रदान कर रही है, अठारह पुलिसकर्मी उनकी सुरक्षा में तैनात हैं, उसी की हंसी उड़ाई जा रही है। कितनी शर्म की बात है। हर जगह बयानबाजी का सिक्का नहीं चलता है। नेताओं को अपनी बयानबाजी करने से पूर्व विचार करना चाहिए।
’कांतिलाल मांडोत, सूरत

प्राकृतिक खेती

सन 1970 के बाद खेती में बड़ी मात्रा में रसायनों और कीटनाशकों का प्रयोग शुरू हुआ। शुरू में इसने उत्पादन बढ़ाया, लेकिन धीरे-धीरे यह कम होने लगा। इन रसायनों और कीटनाशकों से उत्पन्न फसलें कुछ हद तक जहर बन गर्इं। भारत में कैंसर और अन्य गंभीर बीमारियों के कई रोगी हैं। प्राकृतिक खेती एक रसायन मुक्त यानी पारंपरिक कृषि पद्धति है। अब सरकार ने प्राकृतिक खेती यानी जीरो बजट खेती को बढ़ावा देना शुरू कर दिया है। इस खेती में देसी गाय के गोबर और मूत्र का ही प्रयोग किया जाता है। इसके लिए सरकार देसी गाय खरीदने और चरनी बनाने के लिए किसानों को सबसिडी दे रही है और किसानों को प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। हमारे स्वास्थ्य की खातिर प्राकृतिक खेती को बढ़ाना बहुत जरूरी है।
’नरेंद्र शर्मा, जोगिंदर नगर