देश में फिलहाल कई राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक पार्टियों के नेता अपने अपने प्रचार अभियान चला रहे हैं। लेकिन जब भी निर्वाचन का समय आता है तब ही क्यों बड़े-बड़े नेताओं की आगमन हर एक राज्य में छा जाता है? क्यों चुनाव के समय में ही देश के गरीबों को लेकर नेताओं के भीतर आदर और प्यार उमड़ने लगता है? क्यों बाकी के समय में यही नेता लोग एक बार भी आम जनता की ओर नजर ही नहीं डालते हैं? क्यों सिर्फ चुनावों के समय ही देश के गरीबों को लेकर ये नेता लोग बड़े-बड़े भाषण देने लगते हैं?

चुनावों के मौसम में अचानक उग जाने वाले ये नेता बाकी के समय कहां रहते हैं? आज की तारीख में देखा जाए तो नेताओं की यह सुविधा लेने वाली प्रवृत्ति और वोट बैंक की राजनीति हमारे जैसे सभी लोगों को अच्छी तरह से मालूम हो गया है। इसलिए चुनाव के समय गरीबों को लेकर राजनीति करना अगर नेता लोग छोड़ दें तो बहुत अच्छा होगा, क्योंकि पाखंड से भरी ऐसी राजनीति को हम लोग सहयोग कभी भी नहीं करेंगे और इसका असली जवाब हम लोग आने वाले विधानसभा चुनाव में जरूर देंगे।
’चंदन कुमार नाथ, गुवाहाटी, असम</p>

विचित्र नाटक

फिलहाल एक विचित्र नाटक चल रहा है। एक और झारखंड की सरकार धूम्रपान करने की आयु सीमा को अठारह से बढ़ा कर इक्कीस करती है। दूसरी और दिल्ली की सरकार मदिरा पान का उम्र पच्चीस से कम करके इक्कीस करती है। मजे की बात ये है कि तमाम सरकारें नशे के लत के खिलाफ लंबे-लंबे भाषण देते हैं।

तंबाकू, शराब, सिगरेट और गुटखा के खिलाफ तरह-तरह के विज्ञापन और जागरूकता वाले नारे जारी करके नागरिकों को उससे दूर रहने की नेक सलाह देती हैं। मगर इन्हीं सरकारों को अपने बजट में राजस्व के लिए नशीले वस्तुओं से मिलने वाले कर की आवश्यकता है। बिना कर के इनका काम ही नहीं चलेगा। इनका कथनी और करनी में सामंजस्य रहता तो आज इस देश में इन नशीले पदार्थों के उत्पादन पर पूर्ण प्रतिबंध होता।

न रहती बांस, न बजती बांसुरी। आप उत्पादन, विपणन और विज्ञापन को छूट देते हैं और लोगों से कहते हैं इन चीजों से दूर रहें। यह कैसे संभव है। यहां चोर से कहा जाता कि चोरी करो और साहूकार से कहा जाता है कि जागते रहना। यह एक विचित्र चलन है। जरा अंदाजा लगाइए कि चारों तरफ बंद होते काम-धंधे, बेरोजगारी, छिनती रोजी-रोटी के दौर में अगर लोगों ने मुख्य सवालों पर सोचना और सवाल करना छोड़ दिया तो सरकारों को कितनी सुविधा हो जाएगी।

इसलिए सरकार ने बाजारों को खोलने की इजाजत तो दे दी है, लेकिन इतनी नहीं कि बेरोजगार और खाली बैठे सभी लोगों को काम-धंधे में कोई व्यवस्तता मिल जाए। ऐसे में दिमाग में कोई सवाल नहीं आए, इसलिए सरकार ने शराब पीने की उम्र घटा कर इक्कीस कर दी है, ताकि सबसे ऊजार्वान लोग नशे में डूबे रहें।
’जंग बहादुर सिंह, जमशेदपुर, झारखंड