आखिर साल भर से अधिक चले कृषि कानून विरोधी आंदोलन को खत्म करने की घोषणा कर दी गई। अच्छा होता यह काम और पहले हो जाता। इस आंदोलन का जरूरत से ज्यादा लंबा खिंचना किसान संगठनों और सरकार के बीच के अविश्वास को ही व्यक्त करता है।

आशा है कि खाई पटेगी और सरकार और किसानों के प्रतिनिधि आपस में विचार-विमर्श करके ऐसे निर्णय तक पहुंचेंगे, जो खेती के साथ किसानों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए लाभकारी होंगे। कृषि सुधारों की आवश्यकता अब भी है।

किसान संगठनों को भी यह मान कर नहीं चलना चाहिए की सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य समेत जिन विषयों पर विचार करने को तैयार हो गई है, उन पर वैसे निर्णय लिए जाएंगे, जैसा वे चाहते हैं।
’चंद्र प्रकाश शर्मा, रानी बाग, दिल्ली</em>