आधुनिक तकनीक ने जिंंदगी को आरामदायक और आसान तो बना दिया है, यह किसी भी देश और समाज के आधुनिकीकरण के लिए जरूरी है, लेकिन इसका संतुलित उपयोग ही मानवता के हक में माना जाएगा। आज दुनियाभर के देशों के लिए बेरोजगारी एक बहुत बड़ी समस्या बनती जा रही है। इसका एक मुख्य कारण आधुनिक तकनीकी और मशीनें भी हैं। तकनीकी आविष्कारों का नकारात्मक असर हमारे देश में भी रोजगार पर भी पड़ा है। इन मशीनों को तैयार करने के लिए भी मशीनों का ही सहारा लिया जाता है। भारत में इन मशीनों का निर्माण भी न के बराबर ही होता है।
इस कारण भी नई तकनीक भारत में रोजगार के लिए अभिशाप साबित हो रही हैं। फिर आॅनलाइन बाजार कुछ ही हाथों तक सिमट कर रह गया है।
हमारा देश कृषि प्रधान है, लेकिन कुछ मौसम की मार से, कुछ सरकारों के ढुलमुल रवैये की वजह से उपेक्षित है। इसके अलावा, युवा पीढ़ी का कृषि में रोजगार के प्रति दिलचस्पी न होना भी कृषि भी रोजगार का जरिया नहीं बना पा रही। भविष्य में बेरोजगारी की विकट समस्या इतनी विकराल रूप धारण कर लेगी कि यह हमारे देश में एक बहुत ही गलत माहौल, जैसे कि अराजकता, लूटपाट, चोरी-डकैती और अपराध में बढ़ोतरी कर सकती है।
स्वरोजगार को बढ़ावा देकर भी देश में रोजगार के अवसर बढ़ाए जा सकते हैं।
अगर सरकारें कृषि, मत्स्य पालन और हर गांव में दूध की डेयरी खोलने के लिए लोगों को विशेष पैकेज जारी करे तो इससे सरकारों को भी काफी कमाई हो सकती है और दूसरी ओर खेती-बाड़ी अच्छी होती है। ज्यादा से ज्यादा मत्स्य पालन केंद्र खुलते हैं और डेयरियां खोली जाती हैं तो इससे देश से अनाज, मछली और दूध से बने उत्पादों का निर्यात होने से सरकार का खजाना भी भरेगा। सरकारों और निजी क्षेत्र को चाहिए कि नौकरी से सेवानिवृत्त होने वाले जो कर्मचारी पेंशन की सुविधा लेते हों, उसे नौकरी देने की बजाय वैसे बेरोजगार युवाओं को रोजगार देने का प्रावधान किया जाए, जो रोजगार पाने के लिए तरस रहें। जो लोग किसी विभाग से अवकाश प्राप्त करते हैं और मोटी पेंशन लेते हैं, उनका भी नैतिक दायित्व बनता है कि वे सरकारी या निजी नौकरी में बेरोजगारों के लिए मौके बनाने में सहयोग करें।
’राजेश कुमार चौहान, जलंधर, पंजाब</p>
दावों के बीच दिल्ली</strong>
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पिछले चुनावों में यमुना नदी को विश्वस्तरीय और लंदन की टेम्स नदी की तरह बनाने का वादा था। इससे पहले वाली सरकारें भी यमुना नदी के पानी को पीने लायक बनाने के दावे करती रही हैं। इन सब दावों के बावजूद पिछले कई वर्षों से यमुना नदी धीरे-धीरे गंदे नाले की तरह हो चुकी है। किसी भी सरकार ने इस समस्या का हल करने में गंभीरता नहीं दिखाई। यमुना तो स्वच्छ नहीं ही हो पाई, पिछले दिनों हुई रिकार्ड तोड़ बारिश ने पूरी दिल्ली को एक गंदे नाले में तब्दील कर दिया। जगह-जगह जलभराव, पेड़ और मकान गिरने की खबरें आती रहीं। दिल्ली के तीनों प्रमुख राजनीतिक दल एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहे और जनता परेशान होती रही।
सीवरों की समय पर सफाई न होने की वजह से बारिश होने पर जलभराव की नौबत आती है और यह हर वर्ष की समस्या है। सीवरों को साफ करने के दावे किए जाते हैं, लेकिन हकीकत में कुछ नहीं होता। प्रशासन के साथ-साथ इस समस्या को बढ़ाने में दिल्ली के नागरिक भी दोषी हैं। गलियों में सड़कों पर कूड़ा फेंका जाता है। प्लास्टिक की थैलियां फेंंकी जाती हैं जो बारिश आने पर नालियों में पहुंच जाती हैं, जिससे सीवर जाम हो जाते हैं। यही कूड़ा सड़कों पर जलभराव का कारण बनता है।
यमुना नदी की तरह ही दिल्ली की सड़कों का हाल है। सड़कें पहले ही खराब हालत में थीं, लेकिन बारिश ने बची-खुची हालत भी खस्ता कर दी है। लगभग पूरी दिल्ली की सड़कों पर बड़े-बड़े गड्ढे बन गए हैं, जिससे दुर्घटनाओं में बेतहाशा वृद्धि हुई है। जगह-जगह जाम लगने लगा है। दिल्ली में चारों ओर कूड़े के ढेर लगे हुए हैं। भाजपा शासित नगर निगम भी इस समस्या का हल निकालने में नाकाम रहा है। अगर दिल्ली को विश्वस्तरीय शहर बनाना है तो सभी को मिल-जुलकर प्रयास करने होंगे।
’चरनजीत अरोड़ा, नरेला, दिल्ली