मगर कुछ सरकारी विभागों के अधिकारियों की कार्यप्रणाली को ध्यान से देखें तो यही पता चलेगा कि ज्यादातर लोग शायद न सुधरने की शपथ लेकर बैठ गए हैं। सरकार लाख कठोर कदम उठाए, उपदेश दे, लेकिन पकड़ में आने के बाद ही ऐसे अधिकारियों को अहसास होता है। भूमि सुधार विभाग से संबंधित खबरें देखें तो महीने में किसी अंचलाधिकारी के निलंबन आदेश नजर आ जा सकते हैं।

घूस लेते रंगे हाथ पकड़े जाने की खबरों को पढ़ने से पता चलता है कि कर्मचारी बड़ी संख्या में गैरकानूनी गतिविधियों के लिए पकड़े जा रहे हैं। दूसरी ओर वैसे लोग भी मौजूद हैं, जिन्हें आपसी विवाद सुलझाने का भरोसा देकर पैसे की मांग कर दी जाती है। निचले स्तर के कर्मचारी से लेकर ऊपरी स्तर के दफ्तरों के कर्मचारियों-अफसरों तक लगभग सभी कार्यालयों में ये आरोप आम रहे हैं कि कुछ विभाग के अधिकारी एक भी काम समय पर नहीं करते। हालांकि इस काम के लिए उन्हें वेतन मिलता है। सुविधाएं मिलती है।

आम लोग अपने बच्चों को अधिकारी बनाने की कामना करते हैं। संघ लोक सेवा आयोग या बिहार लोक सेवा आयोग के माध्यम से गांव घर के किसी युवक का चयन होता है तो नाते-रिश्ते के लोगों के अलावा गांव के लोग गौरव का अनुभव करते हैं। उन्हें लगता है कि कोई अपने बीच का आदमी अधिकारी बन गया है। अब ऐसे लोगों के दिल पर क्या गुजरती होगी, जब वे विभिन्न संचार माध्यमों पर देखते होंगे कि एक समय का अपना हीरो गलत कार्यों के कारण जेल जा रहा है!
सुनैना रंजन, डुमरिया, गया

दूध से दूर

‘दूध के दाम’ (संपादकीय, 22 नवंबर) पढ़ा। स्पष्ट है कि सरकार चाहे तो दामों पर नियंत्रण कर सकती है, लेकिन अगर पशुपालक की लागत को नजरअंदाज किया गया तो उत्पादन प्रभावित होगा। उत्पादन घटेगा तो स्वाभाविक है कि आपूर्ति कम होगी। मांग से कम पूर्ति की स्थिति में हर किसी तक दूध नहीं पहुंच पाएगा।

पहले तो उत्पादन लागत कम करने पर काम किया जाना चाहिए। साथ ही दूध उत्पादन लाभकारी हो, जिससे उत्पादन उत्तरोत्तर बढ़ाया जा सके। मांग पूर्ति का सामंजस्य बना रहेगा तो हर आम आदमी की पहुंच बनी रहेगी। इन दिनों पशुपालन इतना महंगा हो गया है कि यह हर किसी के बूते की बात नहीं रह गई है। पहले बहुत सारे परिवार एक दो पशु पाल लेते थे। पशुपालकों को सुगमता से ऋण उपलब्ध कराया जाना चाहिए। चारे की उपलब्धता पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।
हुकुम सिंह पंवार, इंदौर, मप्र