चुनावी मौसम में आरोप-प्रत्यारोप कोई नई बात नहीं है। अब तो उससे भी बढ़ कर बदजुबानी जंग और व्यक्तिगत असभ्य टिप्पणियों का दौर चल पड़ा है। जब तक कि यह जंग चरम सीमा पर न पहुंच जाए, नेताओं के कलेजे को ठंडक नहीं पहुंचती। नतीजा यह होता है कि कड़वाहट बढ़ती है और यह आग आम जनमानस तक भी पहुंच जाती है।
यह सब सिर्फ वोट प्राप्त करने का हथियार है। चुनाव आयोग बदजुबानी पर लगाम लगाने में हमेशा से नाकाम रहा है। चाहे इसके पीछे आयोग की कोई मजबूरी हो या इच्छाशक्ति का अभाव, लेकिन यह तय है कि अगर चुनाव आयोग सख्त कदम उठाए तो बदजुबानी पर लगाम लगाया जा सकता है।
जफर अहमद, मधेपुरा, बिहार</p>
बाजार में कीमतें
पिछले दो वर्षों से भारतीय अर्थव्यवस्था कई तरह की चुनौतियों से पूरी तरह उबर नहीं पाई है। वहीं अब रूस और यूक्रेन संकट ने नई आर्थिक मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। कई रिपोर्ट के अनुसार इस युद्ध से भारतीय अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव दिखेगा। भारत शुद्ध कच्चा तेल आयातक है और भारत अपनी जरूरत का करीब अस्सी फीसद कच्चा तेल आयात करता है। पिछले महीने तेल के दाम में इक्कीस फीसद से भी ज्यादा उछाल देखने को मिली. ऐसे में तेल के मोर्चे पर भारी व्यय तय है। निस्संदेह, इस युद्ध का असर वस्तुओं, इक्विटी और मुद्रा बाजारों में दिखाई दे रहा है।
शेयर में गिरावट नजर आई, रुपए में भी गिरावट दिखाई दी। सभी उद्योगों मे कच्चे तेल की कीमत बढ़ने लगी। यूरिया और फास्फेट महंगे हुए हैं। खाद्य तेल की कीमतों पर बड़ा असर हुआ है। इस युद्ध से भारत को सबक लेकर मजबूत नेतृत्व और मजबूत आर्थिक देश के रूप में अपनी पहचान बनाना जरूरी है। देश को आत्मनिर्भरता की और ले जाना जरूरी है। अर्थव्यवस्था के साथ-साथ भारत को चीन पाकिस्तान की चुनौतियों को मद्देनजर रखते हुए रक्षा क्षेत्र को भी मजबूत बनाने पर काम करना चाहिए। उम्मीद है कि भारत रणनीतिपूर्वक समय की मांग को समझते हुए स्वदेश पर भरोसे को सफल बनाएगा और आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ेगा।
विभुति बुपक्या, आष्टा, मप्र