तमिलनाडु सरकार ने घोषणा की है कि तमिलनाडु हिंदू रिलीजिन एंड चैरिटेबल इंडोस्टमेंट डिपार्टमेंट के अधीन आने वाले छत्तीस हजार मंदिरों में गैर ब्राह्मण पुजारी (जिसमें महिलाएं भी शामिल हैं) यानी गैर ब्राह्मण सवर्ण, पिछड़े, अनुसूचित जाति और जनजाति को भी पुजारी के तौर पर नियुक्त किया जाएगा। इसके लिए सौ दिनों का शैव अर्जक पाठ्यक्रम पूरा करना होगा। सरकार का कदम सराहनीय और स्वागतयोग्य है। यह निर्णय जाति और लिंग भेद के खात्मे में मील का पत्थर साबित हो सकता। एक ओर, समाज समता की ओर अग्रसर होगा, दूसरी ओर यह भारतीय संविधान के समानता के मौलिक अधिकार के साथ मानवाधिकार से भी जुड़ा है।
’अनूप सिंह कुशवाहा, इविवि (उप्र)

आपदा के सबक

प्रकृति और जलवायु- इन दोनों के ऊपर मानव जाति का कोई भी नियंत्रण नहीं है। हाल ही में यास तूफान, मूसलधार बारिश के कारण बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड और ओड़ीशा जैसे राज्यों में बहुत भारी नुकसान हुआ है। तेज हवाओं के कारण अनेक कच्चे मकान ढह गए और दैनिक बाजार पर निर्भर लोगों के साथ-साथ बहुत सारे अधिकारियों के जीवन पर भी बुरा प्रभाव रहा।

इन सभी राज्यों के वर्तमान के परिस्थिति बहुत ही कठिन है, क्योंकि तूफान की वजह से जितने भी नुकसान हुए, उनकी भरपाई अब मुश्किल होती जा रही हैं। तूफान से जिन लोगों की घर और खेती बारी में नुकसान हुआ है, उन लोगों के लिए सरकार कोई व्यवस्था हाथ में ले तो अच्छा होगा। यों एक प्राकृतिक आपदा का सबक यह होना चाहिए कि अलगी बार ऐसी आपदाओं से बचाव के लिए सारे इंतजाम किए जाएं। हम आपदाओं को शायद नहीं रोक सकते, लेकिन उससे बचाव के उपाय करके जानमाल के नुकसान को बहुत कम जरूर कर सकते हैं।
’चंदन कुमार नाथ, गुवाहाटी