शुद्ध जल, वायु और संतुलित आहार रोगों से बचने और सही शारीरिक विकास के लिए बेहद बहुत जरूरी है। शुद्ध आबोहवा और आहार से ही तो जम्मू-कश्मीर में आज भी अनेक बुजुर्गों की आयु सौ वर्ष या इससे भी अधिक है, क्योंकि वहां किसी तरह का प्रदूषण क्या, मच्छर-मक्खी तक नहीं हैं। मगर शेष प्राय: पूरा देश बढ़ती जनसंख्या और औद्योगीकरण के चलते हर तरह के प्रदूषण से घिरा है। यही नहीं वाहनों और कारखानों, धूल और धुआं, आतिशबाजी का वायु में जहर और उत्सवों पर कानफोड़ू लाउडस्पीकरों आदि से होने वाला ध्वनि प्रदूषण तो मानसिक तनाव और असहजता के साथ श्रवण शक्ति को भी बड़ी हानि पहुंचाता है। इसलिए आज कोरोना जैसी महामारी के साथ अन्य खतरनाक बीमारियों का होना स्वभाविक है।

दुनिया में तेजी से बढ़ते प्रदूषण के असल कारण जल, जंगल और जमीन के साथ पशु-पक्षी और जीव-जंतु आदि का बड़ी तेजी से लुप्त होना ही है। बढ़ते प्राकृतिक असंतुलन से ये हालात पैदा हो चुके हैं। इनसे मुक्ति पाने के लिए बढ़ती जनसंख्या और औद्योगीकरण को नियंत्रित करते हुए और तेजी से जल, जंगल और जमीन और पेड़ पौधों को पारदर्शी संरक्षण और संवर्धन के बड़े कार्यक्रम से युद्ध स्तर पर तुरंत आगे बढ़ना होगा। सरकारों का काम आम लोगों की जान बचाना होना चाहिए, न कि मौत की आग में झोंकने के हालात बनने तक नींद में खोए रहना।
’वेद मामूरपुर, नरेला, नई दिल्ली</p>

वन का जीवन

आॅक्सीजन के स्रोत जंगल को बचाने के लिए चौतरफा प्रयास आवश्यक है। वन विभाग को साधन संपन्न बनाया जाए। अमले में बढ़ोतरी की जाए। जंगल माफिया पर लगाम लगाने के लिए स्पेशल टास्क फोर्स का गठन किया जाए। वन माफिया को राजनीतिक संरक्षण मिलना बंद हो। वृक्षारोपण युद्ध स्तर पर हो और उसकी देखरेख की जिम्मेदारी वन विभाग सहित लाइन डिपार्टमेंट जैसे कृषि, उद्यानिकी एवं ग्रामीण विकास को भी सौंपी जाए। लोगों को और वन सुरक्षा समितियों को जंगल बचाने के लिए जागरूक किया जाए। देश में प्रति परिवार एक पौधा लगाने और उसकी देखरेख करने की मुहिम शुरू की जाए।
’ललित महालकरी, इंदौर, मप्र