मुंबई पर पाकिस्तान प्रायोजित 26/11 आतंकवादी हमले को तेरह साल पूरे हो गए। इस हमले को लेकर खासकर मुंबई के नागरिकों में अब तक गुस्सा है। देश की आर्थिक राजधानी पर हुए हमले को तत्कालीन केंद्र सरकार ने गंभीरता से नहीं लिया। अगर लिया होता, तो पाकिस्तान को तभी सबक मिल जाता। तब शायद सरकार डर गई थी कि अगर युद्ध छिड़ा, तो पाकिस्तान परमाणु बम का इस्तेमाल करेगा। पर असली वजह शायद यह थी कि सरकार को चिंता यहां के अल्पसंख्यक समुदाय की थी। उसे लगा कि अगर उन्हें दुख पहुचाने वाला काम किया, तो हमे राजनीति से बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा। यानी दुश्मन पर हमले की तुलना में वोट बैंक को प्राथमिकता दी गई।
‘सर्जिकल स्ट्राइक’ शब्द वर्तमान सरकार के समय लोगों को पता चला। पाकिस्तान को इस तरह दिए गए जवाब से लोगों में काफी उत्साह और संतोष था। इस हमले के बाद जो छाती पीट रहे थे, वे स्पष्ट रूप से जनता के ध्यान में आए हैं। इसका उत्तर देश को मिल गया है।
मुंबई और दिल्ली हमेशा आतंकियों की हिटलिस्ट में रहते हैं। देश के अलग-अलग हिस्सों में पुलिस आपरेशन में आतंकी पकड़े जाते हैं। देश के महत्त्वपूर्ण स्थानों पर हमला करने के इरादे से छिपे रहते हैं। पाकिस्तान के ये भाड़े के आतंकवादी देश में फैले हुए हैं। पिछले कुछ दिनों में कश्मीर में हिंदू और सिखों को मारा गया है और दोनों समुदायों में भय पैदा कर दिया गया है। इस डर को दूर करने के लिए सैनिक हैं, लेकिन इस समस्या का स्थायी समाधान तलाशना होगा। अगर यहां एक भी नागरिक आतंकवादी हमले में मारा जाता है, तो पाकिस्तान को इसकी कीमत कैसे चुकानी पड़ सकती है, उन्हें यह पता चलना चाहिए।
’जयेश राणे, मुंबई, महाराष्ट्र</p>
नियंत्रण की जरूरत
भारत सरकार आगामी शीतकालीन सत्र में ‘द क्रिप्टोकरेंसी एंड रेगुलेशन आफ आफिशियल डिजिटल करेंसी बिल-2021’ लाने जा रही है। इस विषय पर विचार काफी समय से हो रहा है। विशेषज्ञों में इस विषय पर मतभिन्नता है कि क्या ब्लाकचेन और डिजिटल इन्क्रिप्शन आधारित आभासी मुद्रा को भारत में चीन और थाइलैंड की भांति पूर्णत: प्रतिबंधित कर देना चाहिए या फिर अल सल्वाडोर की तरह पूरी तरह से खोल दिया जाना चाहिए। क्रिप्टोकरेंसी वर्ष 2010 में अस्तित्व में आई, तबसे लेकर अब तक इसका विभिन्न रूपों में बहुत विस्तार हो चुका है और वर्तमान परिदृश्य में किसी भी राष्ट्र को इसे नजरंदाज करना मुश्किल है।
भारत सरकार के समक्ष प्रमुख चुनौती यह है कि इस पर पाबंदी असंभव है और इसका नियमन मुश्किल है। अगर बिना कानून छोड़ दिया, तो आतंकवाद और हवाला जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे इसका लाभ उठाएंगे। भारत सरकार को इस पर नियंत्रण और नियमन का मध्यम मार्ग चुनना चाहिए, जिससे निवेश की प्रक्रिया और मुद्रा के प्रचलन पर कानून बना कर देश के निवेशकों की सुरक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ ही इसकी आय से राजस्व प्राप्त किया जा सके। क्रिप्टोकरेंसी पर नियंत्रण की नीति समय की मांग है।
’विवेक प्रताप सिंह, अलीगढ़