तकनीकी और विज्ञान के क्षेत्र में हम भले ही कितनी ही तरक्की क्यों न कर लें, लेकिन उससे उत्पन्न होने वाली चुनौतियों से निजात पाना मुश्किल है, क्योंकि इसका कुछ फायदा है तो कुछ नुकसान भी है। इसी में से एक है डिजिटल साइबर सुरक्षा। आज डिजिटल या साइबर सुरक्षा पूरी दुनिया के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है।
बदलते प्रौद्योगिकी के इस दौर में साइबर अपराधियों द्वारा महत्त्वपूर्ण आंकड़ों में सेंधमारी करना, आइडी चोरी आदि शामिल है। जाहिर है, ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’ यानी कृत्रिम बुद्धिमता जैसे अत्याधुनिक तकनीकी प्रौद्योगिकी के साथ ही साथ साइबर अपराधों और हमलों का जोखिम भी काफी तीव्रता के साथ बढ़ा है।
अब साइबर अपराधियों द्वारा परिष्कृत हमले शुरू कर दिए गए हैं। ये परिष्कृत हमले आधुनिक सुरक्षा प्रणाली के सामने एक बड़ी चुनौती उत्पन्न कर रहे हैं और अब सामान्य से बुद्धिमान साइबर हमले बन गए हैं। कृत्रिम बुद्धिमत्ता कंप्यूटर जैसी मशीनों द्वारा ऐसे कार्यों को करने की क्षमता रखती है, जिन्हें करने के लिए आमतौर पर मानव मस्तिष्क की जरूरत होती है।
यह तकनीक विशेष रूप से कारण जानने, विश्लेषण करने, निर्णय लेने तथा दृश्यबोध करने जैसी कार्य की क्षमता होती है। आसान शब्दों में कहें तो कृत्रिम बुद्धिमत्ता ऐसी साफ्टवेयर की क्षमता है, जिसका विकास मानव जैसी बुद्धिमता को विकसित करने और उसे लागू करने के लिए किया जाता है। इसमें इन मशीनों खासकर कंप्यूटर द्वारा मानव की बौद्धिक प्रक्रिया का अनुसरण किया जाता है।
दरअसल, स्मार्टफोन, गूगल सर्च, कार्टून, गूगल असिस्टेंट, वीडियो गेम, यूट्यूब और फेसबुक आदि हमारी सामान्य जिंदगी में उपयोग किए जाने वाले कुछ प्रमुख कृत्रिम बुद्धिमत्ता अनुप्रयोग हैं। ये न केवल कार्य कर सकने में सक्षम हैं, बल्कि यह कम समय में अधिक तीव्रता के साथ कार्य करने में भी सक्षम हैं।
गौरतलब है कि डिजिटल साइबर हमलों से बचने के लिए नेटवर्क सुरक्षा के क्षेत्र में सक्षम कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित साफ्टवेयर का उपयोग किया जाता है, जिसमें साइबर सुरक्षा में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के उपयोग से आनलाइन अपराधों का पता लगाने में लगने वाले समय में कमी आती है। अब तक साइबर हमलों के रोकथाम में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बहुत ही मददगार साबित हुई है। डीडीएस हमले ऐसे होते हैं, जिनमें किसी वेबसाइट के सर्वर उपयोगकर्ता की पहुंच को बाधित कर दिया जाता है।
हालांकि भारत में साइबर हमलों के सुरक्षा के लिए 2013 में राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति लाई गई थी। इस नीति का उद्देश्य नागरिकों के लिए सुरक्षित और लचीली साइबर दुनिया का निर्माण करना था। कृत्रिम बुद्धिमत्ता समर्थित उन्नत तकनीकों को सीखने के लिए प्रोत्साहित करने पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान देना चाहिए।
साइबर हमले को रोकने व उन्नत तकनीकी के उपयोग के लिए काफी समय प्रबंधन और संसाधन की आवश्यकता होती है। इसलिए इन उपकरणों को उचित तरीके से प्रबंधित करने के लिए मानव विश्लेषकों को भी बड़ी संख्या में शामिल किए जाने की जरूरत है।
समराज चौहान, असम।
मन के विटामिन
शरीर में विटामिन की कमी होती है तो हम ध्यान में आते ही तुरंत उस विटामिन की पूर्ति कर लेते हैं, जिससे हमारा शरीर सही और संतुलित बना रहे। ठीक इसी तरह परिवार, रिश्तों आदि में पैसे, संपत्ति आदि को लेकर चिंता आ जाती है। उस स्थिति में रिश्तों में कड़वाहट भी आने लग जाती है, जिसका सीधा असर मन पर पड़ता है।
मन दुखी हो जाता है यह सब घर में देखकर। तब उस कड़वाहट को दूर करने के लिए नजदीकी या लगाव की जरूरत होती है। उसके लिए जरूरी है कि आपसी रिश्तों में अपनापन और माधुर्य घुला रहे। इसके प्रभाव से प्रतिबद्धता का काम भी हो जाता है। हमारे द्वारा सदैव ऐसे प्रयास होना चाहिए कि किसी भी तरह के विटामिन की कोई कमी रिश्तों में कभी भी नहीं रहे।
वैसे भी रिश्तों के लिए जरूरी है कि बराबर सही से पोषण का प्रयास हो। उसके लिए रिश्तों में अवांछित तत्त्वों से सुरक्षा या प्रतिरोधक क्षमता का काम जरूरी है। इसलिए रिश्ते किसी विकार के शिकार न हो जाएं या उनमें दरार नहीं पड़ जाए, इसके लिए जरूरी है समय-समय पर बार-बार उनको संवेदनाओं और लगाव की अभिव्यक्ति जैसे ‘विटामिनों’ की सही खुराक देने की।
प्रदीप छाजेड़, बोरावड़।
बे-बुनियादी मुद्दे
देश में आए दिन किसी न किसी जगह के नाम बदले जा रहे हैं। क्या सरकार के पास मुद्दे खत्म हो गए हैं, जो यह सब किया जा जरा है? जिस तरह देश में बेरोजगारी और महंगाई से लोग मर रहे हैं, ऐसे में सरकार उस पर ध्यान न देकर सिर्फ जगहों के नाम बदल कर समस्या खत्म समझ लेने में लगी हुई है। यह सब देखते हुए यह लग रहा है कि शायद सरकार को चुनाव जीतने के लिए मुद्दे कम पड़ रहे हैं।
यह कहना भी गलत नहीं होगा कि लोगों की जान से ज्यादा सरकार को जगहों के नाम बदलना महत्त्वपूर्ण लग रहा है। जिस तरह से महंगाई आम लोगों की जान खाए जा रही है, भारतीय रुपया डालर की तुलना में घटता जा रहा है, जो हमारे लिए काफी नुकसानदायक है, चिंता इस पर होनी चाहिए।
लेकिन हालत यह है कि देश में एक हजार से से ज्यादा जगहों के नाम बदलने के लिए याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई है। इसी पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। शीर्ष अदालत ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि यह तो भारतीय इतिहास है। आप इसे अपने हिसाब से नहीं बदल सकते। भारत में आज भी लोकतंत्र कायम है।
आप भूतकाल के लिए वर्तमान को बदलने की मांग कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 32 के तहत यह याचिका है? आपके किस मौलिक अधिकार का हनन हो रहा है? इसके बरक्स तर्क दिया गया कि गरिमा, संस्कृति, धर्म का अधिकार आदि नामों की बहाली से जुड़ा है। पीठ ने कहा यह पूरी तरह से अलग मुद्दा है।
सड़क के नाम का धर्म, पूजा स्थलों से कोई लेना-देना नहीं है। अब सरकार को भी समझना होगा कि देश में पहले ही बहुत से मुद्दे हैं। दिन-प्रतिदिन देश में अपराध बढ़ते जा रहे हैं। पर उन मुद्दों पर ध्यान न देकर इन बे-बुनियादी मुद्दों को लाकर समय बर्बाद किया जा रहा है।
रुचि कुमारी, ईस्ट आफ कैलाश, नई दिल्ली।