अस्पतालों में सांसों की बीमारी से मरीजों की संख्या में हुई बेतहाशा वृद्धि इसका प्रमाण है कि दिल्ली में प्रदूषण रोकथाम की व्यवस्थाएं नाकाफी हैं। केवल लुटियंस जोन और विकसित कालोनियों में प्रदूषण बचाव के विशेष प्रबंध किए जाते हैं, लेकिन ग्रामीण शहरी क्षेत्रों, गरीब बस्तियों, जेजे क्लस्टर और पुनर्वास बस्तियों को भगवान भरोसे छोड़ दिया जाता है। इन क्षेत्रों की टूटी हुई सड़कें, धूल भरी आंधी, चारों तरफ गंदगी, कूड़े के ढेर, सड़कों पर गंदा पानी, अतिक्रमण और ट्रैफिक जाम- यही कहानी बयान करती है।

इन उपेक्षित क्षेत्र पर विशेष ध्यान दिया जाए, अन्यथा दिल्ली में प्रदूषण की योजनाएं कारगर साबित नहीं होंगीं। प्रदूषण से बीमारी बढ़ने के खतरे गरीब लोगों को भारी पड़ रहे हैं। अस्पताल में भर्ती मरीजों की तादाद इसका प्रमाण हैं। दिल्ली में वायुमंडल प्रदूषित हो चुका है, पंजाब-हरियाणा की पराली जलाने के बढ़ते मामले चिंताजनक है। दिल्ली वालों को डाक्टरों की सलाह को भी गंभीरता से लेना होगा। अति आवश्यक हो तभी घर से बाहर निकलें। केंद्र सरकार को पहल करते हुए दिल्ली सरकार, नगर निगम प्रशासन और प्रदूषण रोकथाम से संबंधित विभाग बेहतर संवाद और समन्वय स्थापित कर प्रदूषण रोकथाम की व्यवस्था को कारगर बनाना चाहिए।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली

रोग का घर

आज देश में मोटापा एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। मोटापा बढ़ने से शारीरिक गतिविधियां कम हो जाती हैं, आलस्य बढ़ता है और यह अन्य कई बीमारियों को जन्म देती है। अस्वास्थ्यकर भोजन एवं कम शारीरिक गतिविधियां मोटापा बढ़ाने की मुख्य वजह है। बच्चों को खेलने के लिए मैदान सिमटते जा रहे हैं। खेल के मैदान में ऊंची-ऊंची इमारतें खड़ी की जा रही हैं।

बच्चे मोबाइल गेम और टेलीविजन के द्वारा अपना मनोरंजन करने पर मजबूर हो रहे हैं। बच्चों को मोटापा से बचाने के लिए खेल का मैदान उपलब्ध होना चाहिए। पैकेटबंद भोजन बच्चों के स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह साबित हो रहा है। हम सभी को योगासन को अपने दैनिक दिनचर्या का हिस्सा बनाना चाहिए। यह मोटापा दूर करने में सहायक सिद्ध होता है।

अगर बचपन में ही बच्चे मोटापे का शिकार हो जाएंगे, तो उनके लिए आगे का जीवन और कठिन हो जाता है। बच्चे देश का भविष्य और बुनियाद हैं। एक स्वस्थ भारत के निर्माण के लिए बच्चों को मोटापा से बचाना परिवार, समाज और सरकार का दायित्व है। लेकिन यह भी समझना होगा कि मौका मिलते ही हम जिस तरह का खाना-पीना करने लगते हैं, वह हमारी सेहत को कहां लेकर जा रहा है। इसके अलावा, बहुत मामूली बातों के लिए भी दवा खा लेना कैसी चिकित्सा है? क्या दवाइयों का दुष्प्रभाव हमारे शरीर पर नहीं पड़ता? इससे हमें कोई दूसरा बचाने नहीं आएगा।
हिमांशु शेखर, केसपा, गया