भारत और रूस के बीच बैठक का सिलसिला इस साल दुबारा शुरू हुआ है। कोविड-19 की वजह से दोनों देशों के प्रमुख पिछले साल नहीं मिल पाए थे। इस दौरान रक्षा के अलावा व्यापार और ऊर्जा क्षेत्रों में आपसी सहयोग बढ़ाने को लेकर दोनों देशों के बीच चर्चा और समझौते हुए। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का स्वागत करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, इस साल शांति, दोस्ती और सहयोग की संधि के पांच दशक और रणनीतिक साझेदारी के दो दशक पूरे हो रहे हैं। साझेदारी में बीस वर्ष में जो उल्लेखनीय प्रगति हुई है, उसके मुख्य सूत्रधार पुतिन ही रहे हैं।
दुनिया में तमाम बदलाव के बीच भारत-रूस की मित्रता में निरंतरता रही। प्रधानमंत्री मोदी ने साथ ही कोविड-19 महामारी के दौरान दोनों देशों के बीच सहयोग का जिक्र किया। आर्थिक साझेदारी बढ़ाने की बात की और कहा कि अनेक क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर भारत और रूस का एक जैसा मत है।
पुतिन ने भारत को एक ताकतवर और मित्र देश बताते हुए कहा कि इस साल के शुरुआती नौ महीनों में दोनों देशों के बीच हुए व्यापार में अड़तीस प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। सैन्य समेत कई क्षेत्रों में दोनों देश मिलकर काम कर रहे हैं। दोनों देशों के बीच हुए समझौतों में सबसे अहम माना जा रहा है एके-203 असाल्ट राइफल पर हुआ करार। इस राइफल की छह सौ राउंड प्रति मिनट फायर करने की क्षमता है। सेना के साथ-साथ अर्धसैनिक बल, पुलिस के खास महकमों में भी इसका इस्तेमाल किया जा सकेगा।
1990 के दशक में भारत में स्वदेशी असाल्ट राइफल इंसास बनाने की कोशिश की, जिसे सेना ने इस्तेमाल लायक न होने की वजह से खारिज कर दिया था। रूस की मदद से उत्तर प्रदेश के अमेठी में 2019 में आसल्ट राइफल बनाने की फैक्ट्री लगी। यह रूस के साथ भारत का लाइसेंस आधारित करार है। लाइसेंस के आधार पर करार का मतलब है कि सैन्य उपकरण बनाने का लाइसेंस विदेशी कंपनी का है और उस विदेशी कंपनी ने भारत के साथ करार किया है, जिस वजह से भारत में ये उत्पाद बन पा रहे हैं।
भारत और रूस के बीच करार में टेक्नोलाजी ट्रांसफर और कीमतें तय करने की कुछ अड़चनों की वजह से अमेठी की फैक्ट्री में काम शुरू नहीं हो पाया था। लेकिन रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के दौरे के वक्त यह समझौता हो गया। इसके अलावा एस-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली की आपूर्ति भी एक से दो महीने में शुरू होने की बात कही जा रही है। एस-400 रूस का बेहद आधुनिक मिसाइल सिस्टम है।
इसकी तुलना अमेरिका के बेहतरीन एयर डिफेंस सिस्टम पैट्रिअट मिसाइल से होती है। एस-400 की खरीद को भारत सरकार ने तीन दिन पहले ही संप्रभुता से जोड़ कर बयान जारी किया था। जिसके बाद बाइडन प्रशासन की तरफ से कड़ी प्रतिक्रिया आई थी। इस वजह से वैश्विक राजनीति पर नजर रखने वाले जानकार मानते हैं कि मोदी-पुतिन मुलाकात पर भारत और रूस से ज्यादा अमेरिका और चीन की निगाहें थीं।
पुतिन के इस बार के दौरे की खास बात यह है कि दोनों देशों के रक्षा और विदेश मंत्रियों की अलग से बैठकें भी हुर्इं, जिसे टू प्लस टू डायलाग कहा जाता है। इस वजह से भी अमेरिका की भौंहें तनी हुई हैं। भारत और रूस के बीच रक्षा क्षेत्र में ताल्लुकात 1964 से चले आ रहे हैं। अब तक दोनों देशों के बीच तकरीबन तीन सौ अरब डालर का व्यापार हुआ है।
पिछले छह दशकों में हवाई जहाज से लेकर लड़ाकू विमान, मालवाहक विमान, टैंक, हेलीकाप्टर, आर्टिलरी, काम्बैट वीकल जैसे काफी सैन्य सामान भारत ने रूस से खरीदे हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों में भारत ने रूस के अलावा अमेरिका, फ्रांस, इजराइल से भी रक्षा सौदे किए हैं। आर्मी हो, नेवी या एयरफोर्स- भारत में तीनों सेनाएं रूसी सामान का ज्यादातर इस्तेमाल कर रही हैं। लड़ाकू विमान सुखोई रूसी है, टैंक और हेलीकाप्टर भी ज्यादातर रूसी हैं। भारत की सोलह पनडुब्बियों में से नौ रूसी हैं।
भारत ने हाल ही में रक्षा क्षेत्र में विविधता लाने के लिए अमेरिका से मालवाहक विमान और काम्बैट हेलीकाप्टर खरीदा है। फ्रांस से रफाल खरीदा है। इजराइल से मिसाइल प्रणाली खरीदा है। रूस का काम पिछले कुछ सालों में भारत के साथ इस वजह से मंदा पड़ा है।
’आशीष कुमार मिश्रा, चित्रकूट, उप्र