सामाजिक संपन्नता का अर्थ है कि मनुष्य सुखी हो, नागरिक स्वतंत्र हो और राष्ट्र महान हो। विक्टर ह्यूगो की यह पंक्ति हमें यह बताने की कोशिश करती है कि हमारा जीवन कैसा होना चाहिए। आए दिन समाज मे बहुत सारी ऐसी घटनाएं होती हैं, जिसे सुनना और दूसरों को बताना भी हमारे लिए दुर्लभ हो जाता है। समाज शांति से अपनी जिंदगी जिए, इसके लिए कई सारे नियम बनाए गए, कई सारी सजाओं का भी प्रावधान किया गया।

साथ ही मुजरिम या समाज को नुकसान पहुचाने वालों को पकड़ने के लिए पुलिस महकमे भी बनाए गए। लेकिन जरा सोच कर देखिए कि अगर रक्षक ही भक्षक हो जाए तो कैसी स्थिति होगी और कैसे समाज का निर्माण होगा। आज कई जगह लोग पुलिस के पास जाने से डरते हैं और अपनी समस्याओं को सहते रहते हैं और अपनी जिंदगी अपने ही हाथों नर्क बना लेते हैं।

कई बार कुछ लोग शिकायत करते हैं, लेकिन परिणामस्वरूप यह होता है कि उन्हें ही परेशान किया जाता है, डराया जाता है, मानसिक रूप से दबाव डाला जाता हैं और जो शिकायत करने आते हैं उनकी मदद करने के बजाय उनसे बहुत सारे पैसे लिए जाते हैं। समाज में ऐसे कुछ पुलिस वालों की वजह से ईमानदार पुलिस वाले भी आज गलत नजरों से देखे जाते हैं।

इसमें सुधार की जरूरत है और जो पुलिस वाले भक्षक बनकर बैठे हैं, उन पर सख्त कारवाई की भी जरूरत है और साथ ही लोगों को विश्वास दिलाने की भी जरूरत है कि पुलिस उनके लिए ही है, उनकी सुरक्षा के लिए चौबीस घंटे उपस्थित है। तब जाकर हमारे समाज में नागरिक स्वतंत्र रह पाएंगे और बिना किसी डर के अपनी जिंदगी जी पाएंगे।
अंजली प्रिया, मधेपुरा, बिहार</p>

जीवन के लिए

सरकार सड़क हादसों के लिए चिंता करती है, इसलिए यातायात नियमों में समय-समय पर बदलाव किए जाते हैं। अब एक बार फिर से इस पर चिंता करते हुए केंद्रीय मंत्री गडकरी ने कहा है कि देश में पहले भी कार आदि में पिछली सीट पर सीट बेल्ट पहनना जरूरी था, लेकिन लोग इसका पालन नहीं कर रहे हैं। मंत्री ने कहा कि अब इस नियम को तोड़ने वाले को जुर्माना लगाया जाएगा।

उन्होंने यह भी कहा कि जुर्माना लेना सरकार का मकसद नहीं है, बल्कि जागरूकता फैलाना है। सरकार ने लक्ष्य रखा है कि वर्ष 2024 तक पचास फीसदी सड़क हादसों को कम करने का। लेकिन सड़क हादसों को कम करने के सरकार के प्रयास तभी कामयाब होंगे, जब इसमें जनभागीदारी बढ़ेगी।

हमारे देश में दिन-प्रतिदिन सड़क हादसों में जान गंवाने वालों का आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है। देश में सड़क हादसों में एक दिन में जितने लोग जान गंवाते हैं, उतने तो आतंकवाद के भी शिकार नहीं होते। सड़क हादसा कभी किसी की लापरवाही से हो जाता है तो कभी दूसरों की लापरवाही किसी की जान चली जाती है।

केंद्र सरकार ने देश में सड़क हादसों पर लगाम कसने के लिए मोटर वीकल एक्ट (संशोधन) 2019, जिसे संसद ने भी मंजूर कर दिया है, इसमें जो यातायात के नए या संशोधित कायदे-कानून हैं, लागू कर दिया। सरकार ने जो सड़क हादसों पर नकेल कसने के लिए भारी जुर्माने का खौफ लोगों को दिखाकर प्रयास किया है, वह कितना रंग लाएगा, इससे कितने सड़क हादसे कम होंगे या फिर अब लोग यातायात नियमों का कितना पालन करेंगे, यह आने वाला समय बताएगा। लेकिन लोगों को चाहिए कि वे भारी-भरकम जुर्माने या चालान के डर से नहीं, बल्कि अपनी और दूसरों की अनमोल जिंदगी की परवाह करते हुए यातायात नियमों का पालन करें।
राजेश कुमार चौहान, जलंधर, पंजाब</p>