‘भ्रम के पांव’ (संपादकीय, 17 जून) पढ़ा। कोरोना महामारी एक वैश्विक आपदा है। इस महामारी पर विजय प्राप्त करने के लिए हमारे वैज्ञानिकों ने अथक मेहनत से रिकॉर्ड समय में स्वदेशी टीका तैयार कर पूरी दुनिया को अचंभित कर दिया, लेकिन देश के विपक्षी दलों को यह रास नहीं आया और प्रारंभ से ही टीकों की गुणवत्ता पर सवाल खड़ा कर लोगों को भ्रमित करने का काम किया गया। कुछ नेताओं द्वारा भ्रम फैलाने का जनमानस पर व्यापक असर पड़ा और टीकाकरण के प्रथम चरण में अनेक स्वास्थ्य कर्मी जानबूझ कर टीका लेने से बचते रहे। कई राज्यों में टीकों की भारी बर्बादी हुई।
जब देश में कोरोना महामारी की दूसरी लहर आई और दुनिया भर के स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने टीकाकरण पर जोर दिया, तब शहरी क्षेत्रों में टीकाकरण की रफ्तार बढ़ी, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में अशिक्षा की वजह से आज भी भ्रम की स्थिति बनी हुई है। आज लगभग सौ से अधिक देशों में भारतीय टीकों का इस्तेमाल हो रहा है। अफसोस है कि आज भी अपने ही देश मे टीकों पर पड़े संशय के बादल पूरी तरह नहीं छंटे हैं। टीकाकरण के द्वारा ही कोरोना महामारी पर विजय प्राप्त किया जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता अभियान चलाए जाने की जरूरत है।
’हिमांशु शेखर, केसपा, गया, बिहार</p>
इच्छाशक्ति की कमी
देश में तेजी से बढ़ती महंगाई की मार से आमजन हैरान, बेचैन, परेशान हैं। इस पर लगाम लगाने का काम सरकार के नियंत्रण से निकलता हुआ महसूस होने लगा है। पेट्रोल डीजल की कीमतों में जो उछाल आ रहा है, उससे खाद्यान्न वस्तुओं के परिवहन ढुलाई में तेजी से वृद्धि हो रही है। सवाल है कि जनता के हित में सरकार की इच्छाशक्ति कहां खो गई है!
’सज्जाद अहमद कुरेशी, शाजापुर, मप्र