देर रात स्कूटी पर सवार घर लौटती युवती कार में फंसी तकरीबन बारह किलोमीटर तक घिसटती गई और आखिर उसकी मौत हो गई। क्या कार चलाने वाले इतने मासूम हैं कि उन्हें अपनी गाड़ी से घसीटती लड़की के बारे में सचमुच नहीं पता चला? यह सिर्फ बहाने से ज्यादा कुछ और नहीं लगता! हालांकि कानून अपना काम करेगा ही।

सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों से पता चलता है कि इस तरह की घटना कोई पहली बार नहीं हुई है। वर्ष 2020 में कुल 3,66,138 सड़क हादसे हुए, जबकि वर्ष 2021 में यह आंकड़ा बढ़कर 4,12,432 हो गया।

दिल्ली महिला आयोग ने कंझावला में हुई घटना को महिला के खिलाफ अपराध के वर्ग में डाला है। आयोग ने गृह मंत्रालय से मांग की कि महिलाओं के खिलाफ अपराधों को रोकने के लिए एक समिति बनाई जाए। समिति के अंतर्गत दिल्ली के उपराज्यपाल, मुख्यमंत्री और पुलिस आयुक्त सदस्य के रूप में शामिल होने चाहिए।

महिला के विरुद्ध अपराध को रोकने के लिए समिति के महीने में कम से कम एक बैठक होनी चाहिए। सड़क हादसों के आंकड़ों को कम करने के लिए सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने भी कई पैमाने सुझाए हैं, जिसमें सड़क हादसों को लेकर जागरूकता फैलाने से लेकर वाहनों में एअरबैग लगाने, ब्रेक की व्यवस्था, वाहन चालकों को उचित और जरूरी प्रशिक्षण शामिल है।

इन समाधानों के साथ सरकार ने सड़क हादसों को रोकने के लिए कई प्रभावशील कानून भी लागू किए हुए हैं। लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि सरकार के प्रयासों से ही सड़क दुर्घटना नहीं रुकेगी। लोगों को भी वाहन चलाते समय कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। लोगों को अपनी सुरक्षा के लिए कार में सीट बेल्ट लगाना चाहिए और अगर स्कूटी या बाइक से यात्रा कर रहें हैं तो हेलमेट का प्रयोग अवश्य करना चाहिए।

सड़क यातायात के नियमों को पालन करना अपने आप में हादसों से बचाएगा। सड़क पर संवेदनशील होना सबकी जवाबदेही है। लापरवाही या मनमानी न सिर्फ दूसरों की जान ले सकती है, बल्कि इससे खुद अपनी जान भी जा सकती है।
साएमा परवीन, फरीदाबाद, हरियाणा

युद्ध और शांति

विश्व शांति और मानवाधिकार के लिए कई संगठन दुनिया में स्थापित किए गए। चाहे वह संयुक्त राष्ट्र हो, विश्व शांति परिषद, अंतरराष्ट्रीय शांति संस्थान हो या कोई और, पर रूस-यूक्रेन युद्ध रोकने में ये सभी संगठन असफल ही रहे हैं। हालांकि इन दोनों देशों में छिटपुट संघर्ष 2014 ही चल रहा है, लेकिन फरवरी 2022 में रूस द्वारा यूक्रेन पर मिसाइलों से आक्रमण के कारण दोनों देशों के बीच भीषण युद्ध शुरू हो गया।

शुरुआत में ऐसा प्रतीत होता था कि यह युद्ध कुछ ही दिनों में समाप्त हो जाएगा, मगर अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों द्वारा यूक्रेन को पूर्ण समर्थन देने से यह युद्ध और गंभीर हो गया। दुनिया के जिन जिम्मेदार और समृद्ध देशों से यह उम्मीद थी कि वे इस युद्ध को समाप्त करने का प्रयास करेंगे, उससे उलट उन्होंने इसमें घी डालने का काम किया और यूक्रेन को अंधाधुंध हथियार देकर युद्ध को और भड़का दिया।

विश्व शांति और मानवता स्थापित करने के लिए बनाए गए सभी संगठन इन पश्चिमी देशों के सामने बौने साबित हुए। नतीजतन, यूक्रेन में आज भी भयंकर तबाही जारी है। हाल ही में रूस ने यूक्रेन के खेरसों राज्य पर चौबीस घंटे में तेंतीस मिसाइलें दागकर युद्ध को और तेज कर दिया है। लोगों के घर नष्ट हो गए हैं, भोजन-पानी का संकट गहरा गया है। आम आदमी को रोजमर्रा की वस्तुओं के लिए भटकना पड़ रहा है।

महिलाओं और बच्चों की स्थिति और भी खराब है। अस्पताल और स्कूल नष्ट हो गए हैं। इस युद्ध से यूक्रेन ही नहीं, बल्कि रूस की स्थिति भी खराब हुई है। जहां रूसी सेना को जानमाल का भारी नुकसान उठाना पड़ा है, वहीं अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के कारण रूस का व्यापार बुरी तरह प्रभावित हुआ है और उसकी अर्थव्यवस्था मंदी में चली गई है।

आज वैश्वीकरण के दौर में जहां दुनिया के किसी एक स्थान पर घटी घटना का असर लगभग सभी देशों पर होता है, इस युद्ध को समाप्त करने का प्रयास भी सभी वैश्विक संगठनों को करना चाहिए। भारत जिससे युद्धग्रस्त दोनों देशों ने संपर्क बनाया हुआ है। इस युद्ध को समाप्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। आने वाले वर्ष में हमें उम्मीद करनी चाहिए कि दुनिया के इन दोनों देशों में जो कभी एक हुआ करते थे, शांति स्थापित होगी और मानवता और पर्यावरण पर छाया संकट दूर होगा।
पुनीत अरोड़ा, मेरठ

लोकतंत्र की शब्दावली

हमारे देश में लोकतंत्र की स्थापना हुए लगभग तिहत्तर वर्ष होने को हैं, लेकिन अभी तक तथाकथित शिक्षित लोग भी लोकतंत्र की शब्दावली से परिचित नहीं हो पाए हैं। जब भी कोई चुनाव होता है तो खबरों में यही कहा जाता है कि उत्तर प्रदेश में मायावती, अखिलेश यादव या योगी के सिर पर ताज रखा जाएगा या नहीं।

सत्ताधीश भले ही खुद को लोक सेवक बताते रहें, लेकिन उनमें से अधिकतर खुद को किसी राजा से कम महसूस नहीं करते हैं। ऐसे लोगों के लिए ‘हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और’ मुहावरा इस्तेमाल किया जाता है। मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों के ‘जनता दरबार’ लगने की बात जब तब हमारा मीडिया देता रहता है। जब लोकतंत्र है तो दरबार कैसा?

शुक्र है कि ‘बाअदब बामुलाहिजा होशियार, आज फलां जगह पधारेंगे हमारे सरकार’ कहने से आज तक बचा जाता रहा है! वैसे वर्तमान में किसी बड़े नेता के आगमन पर जो व्यवस्था देखने में आती है, वैसी अतीत में आजादी से पहले जिसका भी शासन रहा हो, कभी देखने में नहीं आती थी।

न सम्राट अशोक के वक्त और न शहंशाह अकबर के जमाने में। आज की तारीख में यह याद रखना चाहिए कि उनकी भाषा लोकतंत्र के अनुकूल हो। आज ताज, दरबार, हुक्म, हुकूमत जैसे शब्दों का इस्तेमाल करना उचित नहीं है। नेताओं को भी राजाओं और शहंशाहों की शब्दावली का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
सुभाष चंद्र लखेड़ा, द्वारका, नई दिल्ली