पर क्या इस पर होने वाली राजनीति पर पूर्ण विराम लग पाएगा? क्या इस दस फीसद आरक्षण के अलावा पहले से मिल रहे पचास प्रतिशत आरक्षित कोटे से अन्य पिछड़ा, अनुसूचित जाति, जनजाति वर्ग के गरीबों को इसका समुचित लाभ सुनिश्चित हो पाया है? पचास प्रतिशत सीमा उल्लंघन से इसे और अधिक बढ़ाने की मांग जोर नहीं पड़ेगी? वहीं आरक्षण की पुरानी और नई व्यवस्था से समाज में जातिवाद की भावना घटी है या बढ़ी है।
ऐसे कुछ अनुत्तरित सवालों का यथोचित उत्तर जरूरी है। ताकि इसे लेकर आए दिन होने वाली राजनीति पर पूर्ण विराम लग सके। इसके लिए सरकार पहले यह प्रयास करे कि जिनके बच्चे गरीबी के कारण स्कूल-कालेजों में दाखिला लेकर समुचित शिक्षा प्राप्त नहीं कर रहे हैं, उसका क्या समाधान खोजा गया? आखिर जो शिक्षा से वंचित हैं वे आरक्षण का लाभ कैसे ले पाएंगे? यह बात दीगर है कि सरकारी नौकरियों की संख्या सीमित है। उस पर भी समयबद्ध तरीके से नियुक्तियां नहीं हो पाती हैं।
मुकेश कुमार मनन, पटना</p>
पर्यावरण और प्रतिबद्धता
इस बार सीओपी यानी कान्फ्रेंस आफ पार्टीज यानी काप का सत्ताईसवां सम्मेलन मिस्र के शर्म अल-शेख में हो रहा है। इसमें जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान और इससे निबटने के लिए उठाए जाने वाले कदमों के लिए फंड सुरक्षित करने पर चर्चा होगी। मगर यह भारत जैसे देशों के लिए जलवायु परिवर्तन की दिशा में उठाए जा रहे कदमों के विश्लेषण का मौका भी है।
2015 में भारत सहित दुनिया के दो सौ से अधिक देशों ने जलवायु परिवर्तन को लेकर पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे और दुनिया के तापमान को 1.5 डिग्री से अधिक न बढ़ने देने की प्रतिबद्धता जाहिर की थी। भारत ने 2030 तक अपनी ऊर्जा की आधी जरूरतों को स्वच्छ ऊर्जा (अक्षय ऊर्जा) से हासिल करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। अगले आठ वर्षों में यह लक्ष्य हमें हाइड्रोपावर, सौर ऊर्जा और बायो ऊर्जा से हासिल करना है।
केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा का इस्तेमाल भी बढ़ा है और आगे भी इसके बढ़ते रहने की संभावना है। हालांकि भारत पिछड़ रहा है। हमने दिसंबर 2022 तक अपनी क्षमता को 175 गिगावाट तक बढ़ाने और अधिक मात्रा में स्वच्छ ऊर्जा उत्पादित करने का लक्ष्य तय किया था। मगर फिलहाल भारत 116 गिगावाट ऊर्जा ही उत्पादन कर पा रहा है। भारत जैसे विकासशील देशों में ऊर्जा जरूरतें लगातार बढ़ती हैं, इसे सिर्फ स्वच्छ ऊर्जा से पूरा करना एक बड़ी चुनौती है। हालांकि विकासशील और गरीब देशों के लिए कार्बन उत्सर्जन को कम करना आसान नहीं है, यही वजह है कि काप 27 सम्मेलन में वित्तीय सहायता अहम मुद्दा होगा।
बिजली आपूर्ति की बढ़ती जरूरतों को कम करने के लिए स्वच्छ ऊर्जा में बड़े निवेश किए जाने जरूरी हैं। इसके लिए भारी निवेश की आवश्यकता होगी। बैंक आफ अमेरिका के एक सर्वे के मुताबिक इसके लिए भारत को 401 अरब अमेरिकी डालर का निवेश चाहिए। का 27 में नुकसान और उसकी भरपाई का मुद्दा भी उठ सकता है। कोपेनहेगन में 2009 में जलवायु सम्मेलन के दौरान विकसित देशों ने 2020 तक गरीब और विकासशील देशों को सौ अरब डालर की वित्तीय सहायता देने का भरोसा दिया था, ताकि जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए कारगर कदम उठाए जा सकें। पर वह वादा पूरा नहीं हो सका।
प्रतीत दहिया, बागपत