आज चुनावों के समय ईमानदारी, पार्टी से जुड़ी विचारधारा या सिद्धांतों का कोई मूल्य नहीं है। हर राजनीतिक दल सिर्फ उस आदमी को टिकट देना चाहती है जो उसे जीत की गारंटी दे सके, फिर चाहे वह दल बदलू हो चाहे अपराधी रिकार्ड वाला। चुनावों के समय जीत की गारंटी ही विचारधारा बन जाती है। अगर कोई कार्यकर्ता वर्षों से ईमानदारी के साथ पार्टी के लिए काम कर रहा है, पार्टी के सिद्धांतों और विचारों से सहमत है, लेकिन जीत की गारंटी नहीं दे सकता, तो उसे टिकट का दावेदार नहीं माना जाता।
टिकट उसी को मिलेगा जो चुनाव जीतने की गारंटी दे, फिर चाहे वह किसी विशेष जाति से संबंध रखता हो, चाहे अपराध की दुनिया से। जिन लोगों पर अदालतों में बीसियों मुकद्दमें चल रहे होते हैं उन्हें भी टिकट मिल जाता है, क्योंकि दलों को लगता है कि वे अपनी दबंगई से जीत हासिल कर सकते हैं। इस तरह से जो लोग कभी भी कानून और संविधान का सम्मान नहीं करते, वे भी संविधान की शपथ लेकर विधानसभा में पहुंच जाते हैं और विडंबना देखिए कि ये लोग उसी संविधान और कानून की रक्षा करने का वचन देते हैं, जिनका इन लोगों ने कभी पालन नहीं किया।
कहावत है कि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती, लेकिन ये अपराधी बार-बार विधानसभाओं में और संसद में पहुंचते रहते हैं। इन सबके लिए राजनीतिक दल तो दोषी हैं ही, लेकिन वह आम आदमी सबसे ज्यादा दोषी है, जो चुप रह कर इन दागियों को वोट देता है।
- चरनजीत अरोड़ा, नरेला, दिल्ली</li>
विलंब की भर्ती
उत्तर प्रदेश चुनाव में नौकरी प्रचंड मुद्दा बनता जा रहा है। रोजगार का मुद्दा प्रदेश के पांच से छह करोड़ लोगों से जुड़ा है। इस बीच कांग्रेस ने एक बड़ा दांव खेला है ‘भर्ती विधान’। उसने बताया है कि कब कब कितनी नौकरियां वह निकालेगी, अगर जनता उन्हें सत्ता के शिखर तक पहुंचा दे। उत्तर प्रदेश की चयन प्रक्रिया हमेशा से विवादों में रही है। 2011, 2020-2021 में शिक्षक भर्ती रही हो या फिर लोक सेवा आयोग की भर्तियां, किसी न किसी में कोई अड़चन आती रही है। भर्ती दस से पंद्रह साल तक लटक जाती है। यह उनके जीवन से बहुत बड़ा खिलवाड़ है। इस तरह सब कुछ दांव पर लगा देने के बाद युवाओं के हाथ निराश ही लगती है।
इसके लिए सरकार, प्रशासन और परीक्षा कराने वाली एजेंसी को जरूरत है कि भर्ती प्रक्रिया को दुरुस्त करें और आवेदन करने से लेकर साक्षात्कार तक की सभी प्रक्रिया छह महीने के अंदर पूर्ण हो, जिससे युवाओं का भविष्य सुरक्षित हो सके।
- स्वर्णिम सक्सेना, बरेली