आज हर कोई जनता है कि दुनिया भर में तेजी से प्रचलित इंटरनेट मीडिया पर निरंतर अफवाहों, भ्रामक खबरों और अनर्गल सूचनाओं का प्रचार-प्रसार किया जाता है या होता रहता है। फर्जी खबरें वर्तमान समय का रिवाज बन गई हैं।

इसके कारोबार में व्यस्त लोग देश या समाज के प्रति अपनी जवाबदेही को नहीं समझते और न ही ऐसी विषैली खबरों को सुनने वाला वर्ग इस बारे में किसी सावधानी या सत्यता की जरूरत महसूस करता है। हद तो यह है कि देश में घर-घर और प्रत्येक परिवार में देखे जाने वाले टीवी चैनलों पर भी अनर्गल समाचारों और सूचनाओं का प्रसारण पूरी संवेदनहीनता से बेखौफ होकर किया जाता है। हालांकि हमारे देश में इस पर लगाम लगाने के लिए पर्याप्त कानून मौजूद हैं, पर उन पर अमल करने वाला या उनके प्रभावी परिपालन की कोई समुचित व्यवस्था नहीं है।

वर्तमान दौर इंटरनेट मीडिया का है। लोग अब लाइन में खड़े होने के बजाय आनलाइन रहना ज्यादा पसंद करते हैं। यह सुविधाजनक भी है, लेकिन इसी सुविधा का नाजायज फायदा उठाते हुए देश में हजारों वेबसाइट्स कुकुरमुत्ते की तरह उग आए हैं। पहले जब हम खबरें पढ़ने के लिए समाचार पत्रों पर निर्भर थे, तब हम ऐसी सच्ची खबरों से रूबरू होते थे जो कई माध्यमों से छनकर हमारे पास पहुंचती थीं, लेकिन यह समय ‘रियल टाइम खबरों’ का है जहां पलक झपकते ही कोई फर्जी खबर लाखों लोगों को साझा कर दी जाती है, ट्वीट और रीट्वीट कर दी जाती है। इसी तीव्र गति के चलते कुटिल लोगों के अनर्गल निजी विचार या निजी प्रोपेगंडा को भी सच मान लिया जाता है।

इंटरनेट मीडिया ने ‘सार्वजानिक’ और ‘निजी’ के अंतर को लगभग समाप्त कर दिया है। अभिव्यक्ति की आजादी का अपना महत्त्व है, पर इस स्वतंत्रता के नाम पर तथ्यों से छेड़छाड़ को किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं कहा जा सकता। इंटरनेट मीडिया का उपयोग करने वाला एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा भी है, जो इस पर लिखी किसी भी बात को सत्य मान लेता है।

अभी तक देश में ऐसा कोई स्पष्ट कानून नहीं है जो फर्जी खबरों को निषिद्ध करता हो, लेकिन कुछ ऐसे उपाय अवश्य हैं जिनसे इस समस्या का समाधान किया जा सकता है। इसमें कोई शक नहीं है कि इंटरनेट मीडिया अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ ही नई जानकारी हासिल करने, सीखने और पढ़ने के लिए एक सशक्त माध्यम के रूप में सामने आया है, लेकिन इसके उपयोग के साथ कुछ सावधानियां और समझदारी भी आवश्यक है। जैसे कि प्रत्येक जानकारी के स्रोत की पड़ताल ‘गूगल’ या ‘फेसबुक’ जैसे माध्यम से करना आदि।

फिर भी फर्जी खबर जैसी विकराल समस्या से पूरी तरह निजात पाने के लिए लोगों को अत्यधिक जागरूक बनाना होगा, ताकि उनमें यह समझ विकसित हो कि वे खुद फर्जी समाचारों और गंभीर पत्रकारिता में अंतर कर सकें।
इशरत अली कादरी, खानूगांव, भोपाल</p>