राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार का बजट भी राज्य की जनता की दुर्गति को ही आगे बढ़ाता नजर आया है। राजस्थान में कुल बजटीय खर्च 1.71 लाख करोड़ रुपए प्रस्तावित है। हकीकत यह है कि समीक्षाधीन अवधि में 1,37,000 करोड़ रुपए के लक्ष्य की तुलना में 1,06,000 करोड़ रुपए ही प्राप्त हुए। अवशेष रही राजस्व प्राप्ति 31,000 करोड़ रुपए लक्ष्य प्राप्ति से तेईस प्रतिशत यानी लगभग एक-चौथाई कम है। अब ताजा बजट में खुद सरकार ने 9.99 प्रतिशत का बजटीय घाटा प्रस्तावित किया है जो स्वीकार्य मानदंड से भी तीन गुणा से ज्यादा है। इसमें राजस्व प्राप्ति पिछले वर्ष की हकीकत में हुई प्राप्ति के मद्देनजर कहां जाकर ठहरेगी, हमअनुमान लगा सकते हैं।
गौरतलब है कि गत वर्ष की बजट घोषणाएं ही अभी तक सिरे नहीं चढ़ सकी हैं। अलग-अलग क्षेत्रों से जनता द्वारा उठाई जा रही मागें न तो सुनी गर्इं और न ही उनका संज्ञान कहीं बजट प्रस्तावों में नजर आया। रिफाइनरी के लिए बाट जोहते लोगों की मुराद अभी पूरी नहीं हुई। बिजली, पानी, रोडवेज, मेट्रो रेल, शिक्षा, स्वास्थ्य और आवास जैसे अति महत्त्पूर्ण क्षेत्रों में सिवाय फूंक मारने के बजटीय हासिल कुछ नहीं है। इसमें कच्ची बस्तियों के पुनर्वास और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए आवास देने का जिक्र तक नहीं है। चुनावी वादों की शिकार हुई युवा पीढ़ी के लिए रोजगार का कोई खाका सामने नहीं आया है।
जिन कुछ बिजली कंपनियों को उबारने के लिए कथित ‘उदय’ योजना की घोषणा की गई, वह पिछले क्रियाकलापों को देखते हुए कागजों में ही रह जानी है। जबकि वसुंधरा सरकार सत्तारूढ़ होते ही पैंतीस प्रतिशत से बढ़ी बिजली दरों का बोझ जनता पर डाल चुकी है और पंद्रह प्रतिशत की और बढ़ोतरी बिजली नियामक के समक्ष प्रस्तावित की गई है। तह में जाएं तो पता चलेगा कि सितंबर 2015 तक राजस्थान की बिजली कंपनियों का बकाया ऋण 80,530 करोड़ रुपए का था। इन बजट प्रस्तावों में उदय योजना के तहत घोषणा की गई है कि सरकार इनके अस्सी प्रतिषत ऋण भार को अपने जिम्मे लेगी। यानी 65,000 करोड़ रुपए। जबकि बजट प्रस्तावों में इस वर्ष 40,000 करोड़ का ही प्रावधान किया गया है।
अगर बजट के कुल प्रस्तावित खर्च की मदों को देखें तो सारी घोषित प्रस्तावनाएं हवा में उड़ती नजर आएगी। कुल खर्च का 83,000 करोड़ रुपए तो प्रशासनिक खर्च की मदों में चला गया है। जबकि योजनागत खर्च के लिए 87,000 करोड़ रुपए बताए गए हैं। राजस्व प्राप्तियों के प्रकाश में इसका आकलन किया जा सकता है कि इसमें कितनी हकीकत है और कितना फसाना! ज्यादा दूर न जाएं। इस फसाने को ‘रिसर्जेंट राजस्थान’ में हुए 295 एमओयू में 3,21,000 करोड़ रुपए के निवेश प्रस्तावों के अब तक जमीन पर कहीं नजर नहीं आने से समझ सकते हैं। सिवाय शोशेबाजी के इस बजट में सामाजिक सरोकारों और जनआकांक्षाओं की झलक कहीं नजर नहीं आई है। (रामचंद्र शर्मा, तरूछाया नगर, जयपुर)
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एक पक्ष
अंग्रेजी के प्राध्यापक रहे प्रसिद्ध पत्रकार और नई कविता के महत्त्वपूर्ण कवि विष्णु खरेजी का मेरे लेख ‘समीक्षा का पैमाना’ (दुनिया मेरे आगे, 5 मार्च) पर पत्र (चौपाल, 9 मार्च) पढ़ा। मेरा विनम्र निवेदन यही है कि मैंने डॉक्टर जॉनसन को ‘हैंगिंग जज’ जरूर कहा है, पर इसका हिंदी अनुवाद नहीं किया। केवल यह बताने का प्रयास किया है कि डॉक्टर जॉनसन शायद विद्वता और अहं के कारन खुद को धरातल से ऊंचे पायदान पर बैठ कर अनेक बार कई लेखकों के लिए ‘हैंगिंग जज’ की तरह और आहत कर देने वाली टिप्पणी दिया करते थे। पॉप की कविता परिभाषा पर उनकी टिप्पणी इसका प्रमाण है। (सूर्यप्रकाश चतुर्वेदी, इंदौर)
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कितने काम के
आज हमारे देश की युवा प्रतिभाएं अगर अपनी-अपनी क्षमताओं का सदुपयोग करना शुरू कर दें तो कुछ ही समय में देश का कायाकल्प हो जाएगा। हर किसी में छिपी योग्यताएं समूचे विश्व की सहयोगी बन सकती हैं। आवश्यकता है खुद की क्षमता को उजागर करने उनका सही प्रयोग करने की। कार्यशीलता, कर्मठता, प्रयोगधर्मिता रचनात्मकता के बिना जीवन जीना औरों पर भार रूप ही है। एक परिवार में दो भाई हैं। एक ने काफी डिग्रियां है, दूसरे ने मैट्रिक पास किया है, लेकिन वह सुबह उठ कर घर-परिवार के लिए आवश्यक साधन जुटा कर काम पर जाता है और शाम को कमा कर घर लौटता है।
दूसरी ओर बहुत पढ़ा-लिखा भाई देर से उठता है और मनोरंजन के साधनों में मोबाइल फोन या टीवी पर ही लगा रहता है। पूरा दिन इधर-उधर की बातों में गंवाता है। लेकिन अपनी पढ़ाई का कोई उपयोग नहीं करता, कुछ कमाई नहीं है। ऐसे में हम किस भाई को परिवार के लिए सुख का कारण मानेंगे। जाहिर है, उसी को, जो सबके सुख के लिए अपनी क्षमता का भरपूर उपयोग करता है। खाली बातें करने वाला कल्पना की दुनिया में तो सैर करा सकता है, मगर वास्तव में कुछ भी नहीं कर सकता। हम अपना निरीक्षण करें कि हम जितना जानते हैं, उसका कितना अंश प्रयोग में लाते हैं। (नरेंद्र सोनी, कोटा, राजस्थान)
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विपरीत धुरी पर
देश में आज राष्ट्रवाद के नाम पर बहस छिड़ी हुई है। किसी को जेल तो किसी की पिटाई से राष्ट्रवाद की आग और तेज हो गई है। राष्ट्रवाद को समझाने के लिए एक तरफ जेएनयू में राष्ट्रवाद की अतिरिक्त कक्षाएं शुरू हो गई हैं, जिनमें देश के प्रबुद्ध लोग राष्ट्रवाद पढ़ा रहे हैं, वहीं हाल ही में वत्तमंत्री जेटली ने कार्यकर्ताओं से कहा कि उनके राष्ट्रवाद की जीत हुई है। दोनों के राष्ट्रवाद एक-दूसरे पर हमला कर रहे हैं। सवाल है कि देश की जनता क्या समझे कि किसका राष्ट्रवाद सही है और किसका गलत? फिर एक सवाल है कि एक आम इंसान के लिए राष्ट्रवाद क्या है? क्या यह सिर्फ एक विचारधारा है, जहां मतभेद होने पर देश का माहौल खराब हो सकता है? क्या राष्ट्रवाद देश की गरीबी और बेरोजगारी का कोई समाधान देता है या फिर अपने आप में एक समस्या बना दिया गया है? (विनय कुमार, नई दिल्ली)