कुदरत का अनमोल तोहफा धरती के संरक्षण के लिए कुदरत ने बहुत कुछ हमें दिया है। इसी तोहफे में से एक है ओजोन परत। ओजोन परत का संरक्षण उसी तरह जरूरी है, जिस तरह हमें बीमारियों से बचने के लिए अपने स्वास्थ्य की रक्षा करते हैं, क्योंकि ओजोन परत सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी हानिकारक किरणों से हमारी रक्षा करती है। अगर ओजोन परत न होती तो सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों से धरती पर जितने भी प्राणी है, उनका जीवन असंभव हो जाता।

इस परत की खोज फ्रांस के भौतिकविदों फैबरी चार्ल्स और हेनरी बुसोन ने की थी। ओजोन के संरक्षण के लिए ही 19 दिसंबर 1964 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 16 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय ओजन दिवस मनाने की घोषणा की थी। संयुक्त राष्ट्र और दुनिया के लगभग 45 अन्य देशों ने ओजोन परत को खत्म करने वाले पदार्थों पर मान्ट्रियल प्रोटोकाल पर 16 सितंबर 1987 को हस्ताक्षर किए थे।

ओजोन परत को सुरक्षित रखने के लिए हमारे देश को ही नहीं, बल्कि दुनिया के हर देश के नागरिक को गंभीर रहने की जरूरत है। इसके लिए पर्यावरण संरक्षण भी बहुत जरूरी है। धरती पर जिस तरह प्रदूषण बढ़ रहा है, जहरीला धुआं मुसीबत बन रहा है, उसके लिए तो यह और भी इस बात का खतरा बढ़ गया है कि यह ओजोन परत को पतला कर सकता है। इससे सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणें इंसान के अस्तित्व के लिए ही नहीं, बल्कि सभी प्राणी जातियों के लिए कभी भी खतरा बन सकती है।

दुनिया के सभी देशों को मिलकर ओजोन परत को बचाने के लिए प्राथमिक और युद्ध स्तर पर अभियान आज से नहीं, बल्कि अभी से चलाने चाहिए। कुदरत के दिए अनमोल तोहफों को संभालने के लिए अगर हमने आज से नहीं, बल्कि अभी से लापरवाही नहीं छोड़ी तो वे दिन दूर नहीं है, जब स्वर्ग जैसी धरती नरक बन जाएगी और प्राणी जाति का अस्तित्व खतरे में आ जाएगा।
राजेश कुमार चौहान, जलंधर, पंजाब</p>

सद्भाव और सहअस्तित्व

ज्ञानवापी मस्जिद विवाद की जड़ें इतिहास में हैं। कुछ इतिहासकारों के अनुसार, सत्रहवीं शताब्दी में औरंगजेब के आदेश पर एक शिव मंदिर को नष्ट कर दिया गया था और उस स्थान पर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण किया गया था। कानून किसी भी पूजा स्थल के रूपांतरण पर रोक लगाते हैं और किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को बनाए रखने का प्रावधान करते हैं जैसा कि 15 अगस्त, 1947 को अस्तित्व में था।

भूमि के कानूनों को बरकरार रखा जाना चाहिए। ऐसा लगता है कि ज्ञानवापी मस्जिद में पूजा के अधिकार पर वाराणसी जिला अदालत के फैसले से बाबरी मस्जिद मामले की तरह एक और लंबी लड़ाई लड़ी जाएगी। कोई भी धर्म युद्ध का प्रचार नहीं करता, लेकिन धर्म को लेकर कई युद्ध लड़े गए हैं। सभी भारतीयों को अपने चुने हुए धर्म का पालन करने का अधिकार है। लेकिन हाल ही में जब भी किसी मस्जिद के नीचे किसी मंदिर के निशान मिलते हैं, तो धार्मिक कट्टरपंथियों के बीच वाकयुद्ध शुरू हो जाता है, जिसका राजनेताओं द्वारा शोषण किया जाता है।

इन मामलों को दोनों धर्मों के याचिकाकर्ताओं द्वारा अदालतों में ले जाया जाता है और मामले वर्षों तक चलते रहते हैं। दोनों समुदायों को सद्भाव से रहना और पूजा करना सीखना चाहिए। पंजाब में ऐसे कई उदाहरण हैं जहां दोनों मंदिर और मस्जिद गुरुद्वारों के साथ सह-अस्तित्व में हैं।
जुबेल डी’क्रूज, मुंबई</p>