राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने संसदीय लोकतंत्र को लेकर जो खरी-खरी बातें की हैं वे भारत के तमाम राजनीतिक दलों के लिए सीख तो हैं ही, अनुकरणीय भी हैं। तमाम राजनीतिक दलों के लिए इसलिए कि इनमें से कांग्रेस और भाजपा जहां देश के अधिकतर राज्यों में सत्तारूढ़ हैं, वहीं अन्य दल भी या तो इक्का-दुक्का राज्यों में सत्तासीन हैं या कुर्सी पर निगाह रखे हुए हैं। राष्ट्रपति का अपना राजनीतिक अनुभव भी पांच दशकों का है।
ऐसे में उनका एक-एक शब्द नपा-तुला और अनुभव पर आधारित तो है ही, हमें भविष्य के खतरों के प्रति भी आगाह करता है। उदाहरण के लिए, राष्ट्रपति ने संसद और विधानभाओं में बहस के माध्यम से कानून पास करने के स्थान पर जिस बढ़ती अध्यादेश संस्कृति पर हमला किया है, वह लोकतंत्र के लिए सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाली है। सब जानते हैं, संसद और विधानसभाओं में बैठा पक्ष-विपक्ष अपने सांसद और विधायकों के वेतन-भत्ते और सुविधाओं में बढ़ोतरी के अलावा अन्य किसी मुद्दे पर एकमत नहीं दिखता।
पिछले कुछ दशकों में इन सदनों में टकराव इतना बढ़ा है कि वहां एक घंटा भी शांति से बहस नहीं होती। तब सरकारें, चाहे किसी भी दल की हों, सत्र समाप्ति का इंतजार करती हैं और फिर रातों-रात अध्यादेश के जरिए कानून बना देती हैं। लेकिन क्या इससे टकराव कम होता है? क्या सर्वोत्तम प्रावधानों वाला कानून बन पाता है? नहीं। उलटे आपसी रिश्तों में कड़वाहट की गांठ और मजबूत हो जाती है। आपसी विचार-विमर्श के बंद दरवाजों पर ताला लग जाता है। रिश्तों की यह खटास दोनों पक्षों को क्रमश: मनमानी और अराजकता की ओर ले जाती है।
राष्ट्रपति ने दोनों पक्षों को आईना दिखाया है। उम्मीद है कि इससे दोनों पक्ष भविष्य के लिए सबक लेंगे। विपक्ष का काम सत्ता पक्ष की कमियों को उजागर करना और सत्ता पक्ष का उससे सबक लेना है। एक और बात जो पिछले सालों में, इन सदनों से गायब हुई है, वह है हास्य। इसका मतलब मसखरी नहीं, वह भाव है जो तनाव के बड़े से बड़े क्षण को हल्का कर देता है। पुराने सांसद-विधायकों में यह योग्यता थी। वे हर बात को व्यक्तिगत भी नहीं लेते थे, अब तस्वीर जैसे पूरी ही बदल गई है। सब मौका आने पर हिसाब साफ करने की ताक में रहते हैं।
आज जब चीन के अखबार भारतीय लोकतंत्र को विकास की सबसे बड़ी बाधा बता रहे हैं तब हमें सिद्ध करना है कि यह हमारी ताकत है। और यह तभी होगा जब हम संसदीय कायदे-कानून और परंपराओं के अपने मजबूत और गौरवशाली इतिहास को साथ लेकर चलेंगे।
मंदीप यादव, नई दिल्ली
फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें- https://www.facebook.com/Jansatta
ट्विटर पेज पर फॉलो करने के लिए क्लिक करें- https://twitter.com/Jansatta