यह कृत्य एक ओर स्त्री सशक्तिकरण के बढ़ते दौर को कुचलने का आत्मघाती षड्यंत्र है तो दूसरी ओर पढ़ने लिखने की स्वतंत्रता के अधिकार को अंधेरे में निर्वासित करने की विध्वंसकारी मंशा भी है। प्रचंड हिंसा के गर्भ से उत्पन्न तालिबान की क्रूरता जगजाहिर है।
तालिबान ने उच्च शिक्षा में जारी आधुनिक व्यवस्था को गैर-इस्लामी घोषित कर अपनी अदूरदर्शी संकुचित मानसिकता का परिचय दिया है। लड़कियों के लिए स्कूल-कालेज बंद हो गए हैं, जबकि उन्हें लड़कों के साथ किसी भी वर्ग में पढ़ने पर रोक लगा दी गई है। प्राथमिक तौर पर लड़कियां सिर्फ परंपरागत इस्लामी तालीम ही ग्रहण कर सकती हैं।
विचारणीय यह है कि जब जीवन के सभी दिशाओं में महिलाएं आज विश्व मंच पर अपनी योग्यता और मेधा का परचम लहरा रही हैं तो महिलाओं को इस प्रगति पथ से अलग कर आखिर तालिबानी शासक क्या संदेश देना चाह रहे हैं। क्या यह कारवाई समानता और लिंग भेद की दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति का चित्रण नहीं कर रहा है? अमेरिकी सरकार तालिबान को करीब चार करोड़ डालर शिक्षा मद में मदद करने की पूर्व में घोषणा कर चुकी है। सवाल यह उठता है कि आखिर तालिबान सरकार इस राशि का उपयोग जब लड़कियों की शिक्षा पर खर्च नहीं करेगी तो यह मानने में कोई अन्यथा नहीं है कि तालिबानी संस्कृति और नीति के तहत अमेरिकी डालर का व्यय हिंसक घटनाओं के अंजाम देने में होगा।
अफगानिस्तान आज गरीबी, अभाव, बेरोजगारी एवं महंगाई के भीषण दौर में है, जिससे लड़ने के बजाय शिक्षा, जो सबके लिए संजीवनी बूटी समान है, से स्त्री समाज को अलग करना बेहद दमनकारी ही है। जरूरत इस बात की है कि अमेरिका, जिसने अफगानिस्तान से अपमानित होकर अपना कदम वापस लिया था, शिक्षा मद की आबंटित राशि में महिलाओं की शिक्षा देने के शर्त के साथ ही उपलब्ध कराए। सबसे प्रभावकारी कारवाई में महिलाओं के लिए शिक्षा प्रणाली के पोषक देशों सहित संयुक्त राष्ट्र भी तालिबान को सख्त चेतावनी निर्गत कर तुगलकी आदेश की वापसी के लिए उसे बाध्य करे। तालिबान राज में महिला जगत में व्याप्त कुरीतियों से मुक्ति शिक्षा रूपी औषधि से ही की जा सकती है।
अशोक कुमार, पटना, बिहार
अवसाद के पांव
जब दिमाग में किसी विशेष रसायन यानी न्यूरोट्रांसमीटर की कमी हो जाती है, तब इंसान की सोचने की शक्ति प्रभावित हो जाती है और उसके भीतर आत्महत्या के विचार आने लगते हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो का वर्ष 2022 में आत्महत्या का आंकड़ा चिंतित करनेवाला है। प्रतिदिन 381 लोगों ने आत्महत्या की। अवसाद और चिंता जैसे मानसिक विकारों से पीड़ित होने के कारण मनुष्य की उम्मीद खत्म हो जाती है। नब्बे फीसद आत्महत्या के मामलों में यही कारण होता है। ऐसे मामलों में व्यक्ति को अवसाद या चिंता जैसी परेशानी तो नहीं होती, लेकिन कुछ ऐसे कारण बन जाते हैं, जिससे वह आवेग में आकर तुरंत आत्महत्या करने का निर्णय कर लेता है।
यहां यह भी प्रश्न उठता है कि आखिर क्यों लोग अवसाद और चिंता से घिर जाते हैं। इनसे ग्रस्त होने के अलग-अलग आयु वर्ग में अलग-अलग कारण होते हैं। किशोरावस्था से युवावस्था तक देखें, तो पढ़ाई में, संबंधों में असफल रहना, माता-पिता द्वारा बहुत ज्यादा डांट-फटकार लगा देना या जिद पूरी नहीं होना इस आयु वर्ग में आत्महत्या के कारण बनते हैं। हर समस्या का हल आत्महत्या नहीं होता है। आत्महत्या को रोकने के लिए, अवसाद को लेकर जो मिथ्याएं हैं, उन्हें तोड़ना होगा। अवसाद को काउंसलिंग से ठीक किया जा सकता है, यह अपने आप भी ठीक हो जाता है। सोच बदल कर इसे ठीक किया जा सकता है, उसे दूर करने की जरूरत है।
सागरिका गुप्ता, नई दिल्ली
जल का संरक्षण
‘भूजल का गहराता संकट’ (लेख, 9 जनवरी) पढ़ा। आज पानी की समस्या विकराल रूप धारण करती जा रही है। स्वच्छ पानी का अभाव भी नजर आ रहा है। अब जरूरत है बरसात के पानी को सहेजने की। जल संकट से निपटने के लिए सबसे कारगर तरीका वर्षा जल का संचयन करना हो सकता है। हम पानी का उपयोग तो कर लेते हैं, लेकिन उसे वापस पृथ्वी को देते नहीं। हर जगह एक तरह से क्रंक्रीट की चादर से धरती को ढक दिया गया है।
गर्मी के मौसम में पानी की कमी से हाहाकार मच जाता है, मगर बारिश शुरू होते ही यह यह दिक्कत अगले साल गर्मी की आहट सुनी जाने तक भुला दी जाती है। बढ़ती आबादी के साथ पानी की जरूरत कई गुना बढ़ गई है। इसका अधिकांश भाग भूजल से पूरा होता है। भूजल बचाए रखने के लिए और प्रयास तेज करने होंगे।
साजिद अली, चंदन नगर, मप्र
सार्थक पहल
आज के समय में बच्चों में बढ़ती आनलाइन खेलों या गेमिंग की लत पर लगाम लगाना बहुत ही आवश्यक है, जिसके मद्देनजर एक अधिनियम बहुत ही सराहनीय कदम है। तथ्यों की बात करें तो भारत दुनिया का दूसरा सबसे ज्यादा इस तरह के खेल खेलने वाला देश है। पिछले पांच साल में भारत के गेमिंग क्षेत्र के राजस्व में इक्कीस फीसद की वृद्धि हुई है भारत में चार सौ गेमिंग कंपनिया हैं और अठारह फीसद आनलाइन गेमिंग पर जीएसटी आता है, जिसको बड़ा कर सरकार द्वारा अट्ठाईस फीसद करने था अठारह साल से कम उम्र के बच्चों को गेमिंग में पंजीकृत करने से पहले अभिभावकों की सहमति आवश्यक होगी।
सरकार की इस पहल से निश्चित ही कम उम्र के बच्चों में आत्महत्या जैसी घटनाओं में कमी आएगी, पर नियमों के सही नियमन में आम सहमति और सहयोग अपेक्षित होता है। वयस्कों में भी आनलाइन गेमिंग के द्वारा जुआ या सट्टे की बातें सामने आती हैं। इन पर काबू करना सभ्य समाज की भी जिम्मेदारी बनती है।
अभिषेक यादव, लखनऊ विवि