महात्मा गांधी ने कहा था कि नदियां हमारे देश की नाड़ियों की तरह हैं। अगर हम उन्हें गंदा करते रखेंगे तो वह दिन दूर नहीं, जब हमारी नदियां जहरीली हो जाएंगी। और अगर ऐसा हुआ तो हमारी सभ्यता नष्ट हो जाएगी। इसमें कोई दो राय नहीं कि केवल सरकार के प्रयासों से न तो नदियां साफ हो सकती हैं और न ही स्वच्छ भारत का सपना पूरा हो सकता है। मगर नदियों की साफ-सफाई पर जो सरकार करोड़ों के पैकेज की घोषणा करती है, वह कहां चला जाता है? नदियों की साफ-सफाई के लिए अगर सरकारों को कुछ नहीं करना है तो इस मुद्दे पर राजनीति भी बंद होनी चाहिए और करोड़ों के पैकेज गंगा और अन्य नदियों की साफ-सफाई पर खर्च करने का राग भी नहीं अलापना चाहिए।

जिन नदियों को हम माता समझते हैं, उनमें प्रदूषण हमारे लिए किसी अभिशाप से कम नहीं हो सकता। जिस दिन देश का हर नागरिक यह समझ जाएगा कि उसका अस्तित्व नदियों की वजह से है, उस दिन से कोई भी नदियों में गंदगी नहीं डालेगा। और उसी दिन से नदियों की साफ-सफाई के सरकारी और गैरसरकारी प्रयास कामयाब होंगे। दुनिया के कई देशों में ऐसे उदाहरण मौजूद हैं जब सरकार और समाज ने मिल कर नदियों को पुनर्जीवन दिया, जबकि वहां नदियों का कोई धार्मिक महत्त्व भी नहीं है। नदियों की साफ सफाई के लिए अगर अब और देर होती है तो वह दिन दूर नहीं, जब नदियों के देश भारत में बहुत-सी नदियां सरस्वती नदी की तरह इतिहास बन जाएंगी।
’राजेश कुमार चौहान जालंधर

विचारधारा का अंत

राजनीति में समाजवाद, गांधीवाद, वामपंथ, दक्षिणपंथ आदि सब विचारधाराएं लगता है अब किताबों में सिमट कर रह गई हैं। अब विचारधारा के नाम पर एक ही लक्ष सभी का रह गया है, किसी भी तरह सत्ता की प्राप्ति। सत्ता का सुख ही इनके लिए सर्वोपरि है। राजनीति में सेवा तो एक ढोंग बन गया है। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के अनुभवी कांग्रेसी नेता जितिन प्रसाद उसी भाजपा में चले गए, जो उनके लिए कुछ दिन पहले तक, तानाशाह पार्टी थी।

इधर गोवा कांग्रेस के लुइजिन्हो फलैरो ने हजारों किलोमीटर दूर बंगाल की पार्टी टीएमसी का दामन थाम लिया। इधर सीपीआई के युवा चेहरा और जेएनयू के चर्चित छात्र नेता कन्हैया कुमार और गुजरात के निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवाणी कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए। इन दोनों को लगा कि शायद इसी में उनका भविष्य सुरक्षित है। कहने का मतलब यह कि जनता यह समझने की भूल न करे कि तमाम नेतागण किसी विचारधारा से बंधे हैं। सभी कुर्सी के मोह में फंसे हैं।
’जंगबहादुर सिंह, जमशेदपुर

लूट योजना

आखिर इतनी लोकप्रिय योजना लूट योजना कैसे बन गई? इसकी निगरानी करने वाले भी अपना हिस्सा लेकर जनता को अपने हाल पर छोड़ गए। बिहार सरकार की महत्त्वाकांक्षी नल-जल योजना के क्रियान्वयन में भारी गड़बड़ी मिली है। 2017 में योजना में सरकार से पंचायतों के चयनित वार्डों को राशि मिली थी। करीब सात महीने गुजरने के बाद भी योजना अधिकांश वार्डों में अधूरी पड़ी हुई है। कुछ ही वार्डों में नल से लोगों को पानी मिल रहा है। टंकी, पाइप और स्टैंड इतने घटिया लगे हुए हंै कि अनेक स्टैंड, टंकी शुरू होते ही टूट गए। आखिर कौन इनकी सुध लेगा। जनता को पूरा हिसाब-किताब लेने की जरूरत है और भ्रष्ट प्रतिनिधियों को बाहर का रास्ता दिखाना चाहिए।
’प्रसिद्ध यादव, बाबुचक, पटना</p>