आजकल धरती का तापमान निरंतर बढ़ता चला जा रहा है। अप्रैल माह की शुरुआत में इतना तापमान किसी विभीषिका को ही इंगित कर रहा है। पर्यावरण चक्र गड़बड़ा जाने के कारण प्रकृति के प्रकोप चहुं ओर देखे जा रहे हैं। चाहे वे विकसित देश हों या विकासशील, सभी ओर यह कहर बरसता देखा जा सकता है। मनुष्य ने अपनी नासमझी से खुद इन विपत्तियों को आमंत्रित किया है। आज हमारी जीवनशैली विकृत हो चुकी है। साधनों को पाने की होड़ में मनुष्य ने अपनी तृष्णा को इतना बढ़ा लिया है कि कहीं अंत नजर नहीं आता। संसाधनों का दोहन आज चरम सीमा पर है। प्रतिदिन पूरे विश्व में कुल मिलाकर लाखों एकड़ वृक्षों का कवच नष्ट कर दिया जाता है। यह सब हमारी सुख-सुविधाएं बढ़ाने के लिए एक प्रकार से प्रकृति से यह खिलवाड़ मानवमात्र के विनाश की तैयारी है।
मनुष्य को अपनी गरिमा के अनुरूप अपना जीवन जीना सीखना ही होगा। पाश्चात्य सभ्यता का खोखलापन अब जगजाहिर होता जा रहा है। संस्कृति का इसने जमकर विनाश किया है। विज्ञान के नवीनतम आविष्कारों से लाभ तो कम उठाए गए, हानि अधिक दिखाई दे रही है। परमाणु बमों की विभीषिका, रासायनिक युद्ध न केवल मानवमात्र के लिए, बल्कि समूचे पर्यावरण के लिए एक खतरा बने हुए हैं। समझदारी इसी में है कि समय रहते चेत जाएं।
हम अपने आसपास भी देखें और पर्यावरण को प्रदूषित होने से रोकें। समष्टिगत स्तर पर आंदोलन जन्मे एवं जनचेतना जागे, ताकि महाविनाश से पूर्व हम संभल जाएं। लेकिन हमारे पास समय ही नहीं है इस विषय में सोचने का, क्योंकि लोकतंत्र में वोट देकर सरकार चुनने के सिवाय कोई सामाजिक जिम्मेदारी समझी नहीं जाती और प्रकृति का संतुलन भी सरकार की जिम्मेवारी माना जाती है। आज हमें अपने आपको बदलना होगा और सोचना होगा कि क्यों प्रकृति असंतुलित हो रही है! क्यों मानवजनित विभीषिकाएं बढ़ती जा रही हैं? एकजुट होकर चिंतन करना होगा कि इस वर्तमान की स्थिति के लिए कौन जिम्मेदार है!
नरेंद्र राठी, मेरठ, उप्र
साझे प्रयास की राह
एक शक्तिशाली देश के अपने से कमजोर दूसरे देश पर लगातार और लंबी अवधि तक आक्रमण करने से पूरी दुनिया डरी-सहमी है। आपसी युद्ध के परिणामस्वरूप लाखों लोग बेघर हो गए हैं, साथ ही अनेक ने अपनी जान गंवा दी। आए दिन हो रही आतंकवादी घटनाओं से भी पूरी दुनिया आतंकवाद के कहर को बुरी तरह झेल रही है। आतंकवादी अक्सर किसी न किसी देश में मासूमों की नृशंस हत्याओं को अंजाम दे रहे हैं। नित दिन होते ये ऐसे घटनाक्रम हैं, जिनसे विश्व शांति पर निश्चित तौर पर खतरा मंडरा रहा है।
विश्व में शांति को बहाल करने के लिए दुनिया के सभी देशों को प्रादेशिक अखंडता और प्रभुसत्ता को कायम रखना होगा। इसके लिए सभी देशों को अपना आक्रामक रवैया त्याग कर, मेल-मिलाप और भाईचारे वाले नीति पर चलना होगा। कोई भी देश, जो चाहे कितना ही ताकतवर क्यों न हो, उसे दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में अपनी दखलअंदाजी पूरी तरह बंद कर देनी चाहिए। शांति स्थापित करने के लिए समानता और परस्पर लाभ नीति का अनुसरण करना बहुत फायदेमंद साबित हो सकता है। विकसित और संपन्न राष्ट्र, अविकसित और गरीब राष्ट्रों की मदद कर शांति प्रयासों की दिशा मे सार्थक पहल कर सकते हैं।
नरेश कानूनगो, देवास, मप्र