मध्यप्रदेश में मालवांचल के सुपरिचित अंग्रेजी प्राध्यापक तथा हिंदी लेखक प्रो सूर्यप्रकाश चतुर्वेदी के साहित्यिक विचारों पर मुझे कुछ नहीं कहना है, लेकिन मुझे अफसोस और हैरत इस बात पर है कि अपनी टिप्पणी (‘समीक्षा का पैमाना’, दुनिया मेरे आगे, 5 मार्च) में उन्होंने एक ऐसी भूल कर दी है, जिसकी आशंका उनके जैसे वरिष्ठ शिक्षक की ओर से नहीं थी। वे लिखते हैं- ‘…डॉ सैम्युअल जॉनसन ने समीक्षक को ‘हैंगिंग जज’ यानी अधर में लटके और संतुलन कायम रखे हुए न्यायाधीश कहा है।’

स्पष्ट है कि दुर्भाग्यवश प्रो चतुर्वेदी को इतने वर्षों की सफल अध्यापकी के बावजूद मुहावरे ‘हैंगिंग जज’ का न तो अर्थ मालूम है और न संदर्भ। ‘टु हैंग’ क्रिया का एक अर्थ ‘लटकना’ और दूसरा ‘लटकाना’ भी होता है। जो न्यायाधीश अत्यंत क्रूर हो और पूरे मामले की जांच किए बिना ही अभागे मुलजिम को फांसी पर लटकाए जाने की अमानवीय सजा दे दे, उसे ब्रिटिश अंग्रेजी में लगभग सत्रहवीं शताब्दी के अंत से ‘हैंगिंग जज’ कहा जा रहा है।

यह विशेषण पहली बार खासतौर पर जज फ्रांसिस पेज (1660-1741) पर लागू किया गया था, हालांकि सोलहवीं सदी में उससे भी कुख्यात एक जज जेफ्रीज हो चुका था, जिसने एक सौ बदकिस्मत मुलजिमों को फांसी दिलवाई थी। डॉ जॉनसन की जन्म-मृत्यु तिथियां 1709-1784 हैं। पूरी जानकारी के लिए इंटरनेट पर जज पेज के गांव के ‘स्टीपल एस्टन विलेज आर्काइव’ का पीडीएफ पढ़ा जा सकता है।

यहां अंग्रेजी भाषा और समालोचना के लिए अर्थ का अनर्थ करते हुए प्रो चतुर्वेदी ‘हैंगिंग जज’ ही साबित हुए हैं। आजकल हिंदी में अंग्रेजी से अधिकतर ऐसे अधकचरे लोग अनुवाद कर रहे हैं, जिन्हें सामान्यत: प्रो चतुर्वेदी के अंग्रेजी-ज्ञान के पासंग में भी नहीं रखा जा सकता। आशा है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण उदाहरण उन सबके लिए एक सबक साबित होगा।
’विष्णु खरे, दिल्ली</p>