बिहार में कुछ दिन पहले से ‘समान कार्य के लिए समान वेतन’ की मांग के साथ हड़ताल पर गए लगभग अस्सी हजार संविदाकर्मियों को बिहार सरकार द्वारा नौकरी से हटाने का आदेश देना सरकार की संविदाकर्मियों के प्रति संवेदनहीनता दर्शाता है। अपनी जायज मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे संविदाकर्मी राज्य के स्वास्थ्य विभाग में पिछले कई वर्षों से कार्यरत हैं और नियमित कर्मचारियों के बराबर कार्य कर रहे हैं। सरकार का कहना है कि हड़ताल पर बैठे राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) और अन्य परियोजनाओं के ये संविदाकर्मी कॉन्ट्रैक्ट में दर्ज शर्तों का उल्लंघन कर रहे थे। गौरतलब है कि पिछले वर्ष सरकार द्वारा बनाई गई एक उच्च स्तरीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में संविदाकर्मियों की सेवा स्थायी करने संबंधी कई सिफारिशें की थीं। लेकिन इन सिफारिशों को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। चुनावों के समय संविदाकर्मियों का मुद्दा जरूर चर्चा में रहता है। लेकिन इसके बाद इनके हिस्से में बस लाठियां और नौकरी से हटाने की धमकियां ही आती हैं।
विडंबना यह है कि हमेशा नौकरी की असुरक्षा और खतरे से जूझते संविदाकर्मियों और इनके परिवार को किसी भी तरह की स्वास्थ्य या अन्य सामाजिक सुरक्षा प्राप्त नहीं है। संविदा पर कर्मचारी नियुक्त करने के शुरुआती दौर में ऐसे कर्मचारियों को नियमित कर्मचारियों की तुलना में अधिक वेतन मिलता था जो सरकारों की इच्छाशक्ति और संवेदनहीनता के चलते वर्तमान में इनसे आधे से भी कम हो गया है। बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी और नौकरी जाने के भय से यह वर्ग काफी समय से हो रहे शोषण को सहता आया है। मगर अब इनके बीच सरकार के रवैये के खिलाफ भारी रोष है।
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में संविदाकर्मियों को ‘समान कार्य के लिए समान वेतन’ का हकदार माना है। इस फैसले में माननीय न्यायालय ने सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकार-1996 के अंतरराष्ट्रीय समझौते का हवाला देते हुए कहा था कि समान कार्य के लिए समान वेतन हर एक नागरिक का हक है। अदालत ने कहा था कि समान वेतन न देना अमानवीय, शोषण और दमनकारी है। अपने परिवार की मूलभूत जरूरतों को पूरा करने के लिए इन्हें कम वेतन पर कार्य करने के लिए मजबूर होना पड़ता है, अपने आत्मसम्मान और गरिमा को दांव पर लगाना पड़ता है।
अपनी जिम्मेदारियों को मुस्तैदी से निभाते संविदाकर्मियों के मुद्दे सरकारी नीतियों के अभाव के चलते वर्षों से लंबित हैं। कोष की कमी, केंद्र और राज्य सरकारों के बीच आपसी समन्वय के अभाव और अन्य कारणों का बहाना बना कर इस गंभीर मुद्दे को सरकारों द्वारा ठंडे बस्ते में डाला जाता रहा है। इससे कर्मचारियों के बीच सरकारों के प्रति अविश्वसनीयता बढ़ी है। केंद्र और राज्य सरकारों को चाहिए कि संविदाकर्मियों की जायज मांगों को पूरा करने के लिए नीतिगत सुधार करे, कानून बनाए, ताकि इनके साथ लंबे समय से हो रहा भेदभाव दूर हो सके।
’अश्वनी राघव ‘रामेंदु’, उत्तमनगर, नई दिल्ली</p>