‘लोकतंत्र के विरुद्ध’ (संपादकीय, 25 मार्च) पढ़ा। विधानसभा में अब तक तर्क, कुतर्क विरोध, प्रतिरोध के साथ-साथ कुर्सी तोड़फोड़ जैसे दृश्य विधानसभाओं में देखने को मिले थे, लेकिन बिहार सशस्त्र पुलिस बल विधेयक के मसले पर जो घटित हुआ, वह किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता। चूंकि करोड़ों लोगों की निगाहें इनके क्रियाकलाप को देखती हैं, इसलिए लोकतंत्र के प्रति सामान्य जनों में एक नकारात्मक छवि उभरेगी। बुद्ध और महावीर का देश, शांति और अहिंसा में विश्वास करने वाले प्रदेश में इस तरह की हिंसक वारदात का स्थान कदापि नहीं हो सकता।
दुनिया के प्राचीनतम लोकतांत्रिक व्यवस्था वाला प्रदेश जहां वैशाली के लिच्छवी गणतंत्र पर आज भी पूरी दुनिया का लोकतंत्र गर्व करता है, उसी प्रदेश के लोकतंत्र के सर्वोच्च मंदिर में विपक्षी पार्टियों के विधायकों पर की गई कार्रवाई को किसी भी लिहाज से उचित नहीं कहा जा सकता। कोई भी कानून विधि की प्रक्रिया के तहत विचार-विमर्श के बाद बनाया जाता है। प्रस्तावित विधेयक पर लंबी बहस हो सकती थी, अपना-अपना तर्क रखा जा सकता था। फिर लोकतंत्र में ऐसी नौबत अगर आती है तो यह शर्मनाक है।
कोई विधायक सत्ताधारी पार्टी में हो या विपक्ष में, वे व्यवस्थापिका के अंग होते हैं और व्यवस्थापिका कानून का निर्माण करती है। किसी भी विधि का निर्माण इसी व्यवस्थापिका द्वारा होती है। नीतीश कुमार को अब तक सुशासन बाबू के तौर पर बताया जाता रहा है। लेकिन विधानसभा में विधायकों पर पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई नीतीश कुमार के कार्यकाल में एक अफसोसनाक अध्याय जोड़ेगी। इस तरह की कोई भी घटना सामान्य रूप से ही घट कर इतिहास का हिस्सा हो जाती है, मगर उसका परिणाम और प्रभाव दूर-दूर तक दिखता है।
’मिथिलेश कुमार, भागलपुर, बिहार</p>
अब आगे
वैश्विक महामारी कोरोना ने संपूर्ण देश की अर्थव्यवस्था को बेपटरी कर दिया। समूची दुनिया के साथ-साथ खासतौर पर हमारे देश में सबसे सख्त पूर्णबंदी का निर्णय इतिहास में हमेशा अपनी गवाही देता रहेगा। हालांकि वैक्सीन की संभावना के बाद से धीरे-धीरे सभी कार्यों को सामान्य करने का कार्य किया गया। लेकिन महामारी का सामना करने के लिए लगाई गई पूर्णबंदी की वजह से जिसकी मार सबसे गहरी पड़ी वह है गरीबी और बेरोजगारी।
जिस देश में गरीबी, बेरोजगारी और भुखमरी कम करने में दशकों लग गए, उस गर्त मे जाने में महज कुछ महीने लगे। राष्ट्रीय बेरोजगारी दर, जो 8.35 फीसद थी, वह बढ़ कर 23.5 फीसद पर पहुंच गई। सीएमआईई के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों मे बेरोजगारी दर 10.5 फीसद से 22.5 फीसद हो गई। विश्व बैंक ब्लॉग में प्रकाशित एक लेख ‘कोरोना के वैश्विक स्तर पर नकारात्मक प्रभाव’ में बताया गया कि लगभग इकहत्तर मिलियन लोग गरीबी के गर्त में जाएंगे, जिसका आंकड़ा करीब सौ मिलियन भी हो सकता है। पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था मे 5.2 फीसद की गिरावट आएगी।
ऐसे में फिर से जरूरत है कि सरकारी क्या ऐसे कदम उठाती है जिससे गरीबों को खत्म करने के बजाय ‘गरीबी हटाओ’ का नारा साकार हो सके। मनुष्यता को बचाने के लिए इस नारे पर काम करने की जरूरत है। ऐसे मे गरीबों के लिए दो जून की रोटी और छोटा-सा रोजगार ही जान है तो वह जहान के मंत्र को साकार कर सकता है। वादे और दावे से हट कर जमीनी हकीकत को पहचानने की जरूरत है और साथ ही गंभीरता से काम करने की भी।
’अमन जायसवाल, दिल्ली विवि, दिल्ली