लेकिन अत्यधिक उपयोग के कारण बच्चों के लिए एकाग्रता, मानसिक स्वास्थ्य और आत्महत्या की प्रवृत्ति के मामले में समस्याएं पैदा हो सकती हैं, जैसा कि कुछ राज्यों में प्रदर्शित किया गया है। एक साल पहले कई राज्यों ने अवसर आधारित खेलों की तुलना में कौशल आधारित खेलों के लिए कम कराधान के लिए तर्क दिया था।
लेकिन दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इसलिए दोनों खेलों पर अट्ठाईस फीसद जीएसटी लगाया जाना चाहिए। लेकिन भारत का आनलाइन गेमिंग उद्योग कौशल की आवश्यकता वाले खेलों और भाग्य या अवसर के आधार वाले खेलों के बीच अंतर नहीं करता है। आनलाइन गेम की प्रकृति पर स्पष्टता की कमी के कारण नीति तैयार करना और भी कठिन हो जाता है। इसलिए आनलाइन गेमिंग क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देने के लिए जीएसटी परिषद से नीति स्तर की स्पष्टता समय की आवश्यकता है। अगर इस चमकते उद्योग को अपनी वास्तविक क्षमता को प्राप्त करना है, तो अनिश्चितताओं से रहित एक मजबूत नियामक और कानूनी वातावरण सुनिश्चित करने की जरूरत है।
हालांकि विशेषज्ञ एक स्व-नियामक संगठन (एसआरओ) की आवश्यकता का समर्थन करते हैं, जिसे कंपनियों को उपयोगकर्ताओं को धोखाधड़ी, दुर्व्यवहार, आयु रेटिंग से बचने की खातिर शिक्षित करने के लिए अपनाना चाहिए। नाबालिगों को केवल अपने माता-पिता की सहमति से अनुमति दी जाती है। ओटीपी सत्यापन आदि एक नोडल मंत्रालय के तहत आनलाइन गेम के नियमन को तैयार करना विवेकपूर्ण होगा। अन्यथा यह विश्वास और विश्वसनीयता नहीं पैदा कर सकता है।
भारत में यह अमेरिका और चीन के बाद सबसे तेजी से बढ़ते उद्योगों में से एक है। इसलिए सभी हितधारकों की सहमति से एक मजबूत विनियमन स्थापित करने की आवश्यकता है जो नागरिकों की जरूरतों और आकांक्षाओं को पूरा करता है और साथ ही इसके नकारात्मक प्रभावों पर अंकुश लगाने के लिए निगरानी की तत्काल आवश्यकता को भी पूरा करे।
विजय सिंह अधिकारी, नैनीताल, उत्तराखंड</p>
संविदा बनाम अधिकार
झारखंड उच्च न्यायालय ने राज्य की हेमंत सोरेन सरकार को दिशानिर्देश जारी करते हुए कहा है कि संविदा पर भर्ती सभी कर्मचारियों को बारह सप्ताह में नियमित कर दिया जाए, जिनकी नौकरी में दस साल पूरे हो चुके हैं। देश के सभी राज्यों में संविदा आधारित नौकरियां कर्मचारियों पर भारी पड़ रही हैं। कहीं पर वेतन नहीं मिल पा रहा है, तो कहीं पर उनका शोषण किया जाता है।
अधिकतर सरकारें भी अपनी रस्म अदायगी पूरी करती हैं। कर्मचारी आंदोलन होते हैं, लेकिन उनको डरा दिया जाता है। इस प्रकार देखा जाए तो झारखंड उच्च न्यायालय का निर्णय ऐतिहासिक है और राज्य सरकार को यह मानना होगा। आखिर दस वर्ष की अवधि के बाद भी अगर कर्मचारी नियमित नहीं होते हैं तो यह किसी भी सरकार की कार्यप्रणाली पर प्रश्न खड़े करता है।
दिल्ली में भी, विशेष कर सफाई कर्मचारियों का हमेशा आंदोलन देखने को मिलता है कि सफाई कर्मचारियों को पक्का नहीं किया जाता है, उनको वेतन नहीं मिलता है, इसलिए केंद्र सरकार को सभी राज्यों के साथ बैठकर एक समन्वय स्थापित कर संविदा कर्मचारियों की समस्याओं पर गंभीर चर्चा करते हुए एक कारगर योजना लागू करनी चाहिए, ताकि संविदा आधारित कर्मचारियों के वेतन संबंधी सभी विसंगतियों को दूर किया जाए और संविदा आधारित कर्मचारी भी सम्मानपूर्वक अपनी जिंदगी जी सकें।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली</p>
नकली का संजाल
‘नकली का मर्ज’ (संपादकीय, 23 दिसंबर) अत्यंत गंभीर और विचारोत्तेजक विषय है। संपादकीय में सही लिखा गया है कि तमाम तकनीकी सुविधाएं और गहन जांच पड़ताल के बावजूद नकली दवाओं के उत्पादन और बिक्री का आंकड़ा साल दर साल बढ़ता ही चला जाता है। सीधे शब्दों में कहें तो इसका अर्थ यह भी है की सरकार के तमाम अभियान, तमाम कोशिशें और इस संबंध में किए गए तमाम दावे अब तक खोखले ही साबित हुए हैं। पुलिस, जांच एजेंसियां और सरकार का प्रशासकीय अमला जितनी अधिक तीव्रता से नकली दवाओं के कारोबार को रोकने अथवा इसे समाप्त करने के प्रयास करते हैं, उसी तेजी से ये अपराधी उनसे बचने और उनको चकमा देने का रास्ता निकाल लेते हैं।
इसके अलावा नकली का मर्ज केवल दवाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि लगभग सभी उपभोक्ता सामग्री और खाद्य पदार्थों तक नकली का संजाल फैला हुआ है। त्योहारों के मौसम में नकली मावे और नकली मिठाइयों की बहार आ जाती है। भ्रामक प्रचार और विज्ञापनों के माध्यम से निर्दोष लोगों को ठगा जाता है। यह कोई दबी-छिपी बात नहीं है, बल्कि सब कुछ सरेआम होता है, किया जाता है और सबकी जानकारी में है।
फिर भी यह अत्यंत दुर्भाग्यजनक और पीड़ादायक सच्चाई है कि इस अपराध पर समुचित या संतोषजनक रूप से पाबंदी नहीं लगाई जा सकी है। दूसरा कटु सत्य यह भी है कि नकली का कारोबार कोई नया नहीं है, बल्कि बरसों पुराना है। माना जा सकता है कि व्यापारियों की असली कमाई इसी प्रकार के धंधे से होती है। एक नंबर का धंधा तो सिर्फ पेट भरने तक सीमित है।
असली मुद्दा यह है कि नकली का कारोबार एक गंभीरतम अपराध है और इस अपराध के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। नकली पर प्रभावी प्रतिबंध के लिए विभिन्न सरकारों को दृढ़ इच्छाशक्ति दिखानी होगी और साथ ही विभिन्न जांच एजेंसियों को उच्च स्तरीय निष्ठा, ईमानदारी तथा नैतिक आचरण का प्रदर्शन करना होगा, वरना सब कुछ यों ही चलता रहेगा।
इशरत अली कादरी, खानूगांव, भोपाल
सतर्कता जरूरी
भारत में कोरोना ने जिस तरह तहलका मचाया था, वह किसी से छिपा नहीं है। पूर्णबंदी, बेरोजगारी, पैसों की किल्लत और भुखमरी से सब परेशान थे। नौकरियां न होने के वजह से लोग पलायन के लिए मजबूर हो गए थे। लाखों की आबादी सड़कों पर आ गई थी। फिर वैसी ही आशंका डरा रही है। इस मसले पर सिर्फ बैठकों से काम नहीं चलेगा। अच्छी प्रणाली और अच्छी परियोजनाओं के साथ सरकार को आगे आना पड़ेगा। साथ ही लोगों को भी एहतियात बरतनी होगी।
रोहित पांडेय, नई दिल्ली