सरकार ने कुछ जरूरी चीजों मसलन, दुग्ध उत्पाद, आटा, दाल, पेपर आदि को जीएसटी के अंतर्गत लाकर या कुछ वस्तुओं की पुरानी जीएसटी दरें बढ़ा कर आमजन पर महंगाई का बोझ बढ़ा दिया है। जब सरकार ने जीएसटी प्रणाली को देश में आरंभ किया था, तब उम्मीद थी कि एक देश एक टैक्स आमजन को महंगाई से राहत दिलाएगा, लेकिन अब तो उल्टी गंगा बहने लगी है।
लगता है, केंद्र सरकार ने जीएसटी लागू करने का फैसला बिना किसी तैयारी और उतावलेपन में लिया, क्योंकि थोड़े-थोड़े अंतराल पर इसके नियम बदलने पड़ते हैं। सरकार ने आमजन के रोजमर्रा इस्तेमाल होने वाली चीजों पर जीएसटी बार-बार घटा कर बेशक आम जनता को राहत देने की कोशिश भी की थी, लेकिन सवाल है कि क्या सरकार को पहले नहीं पता था कि इन चीजों पर जीएसटी ज्यादा लगाने से आमजन पर महंगाई की मार पड़ेगी? बार-बार जीएसटी में बदलाव करने से क्या उपभोक्ता और छोटे-बडे दुकानदार असमंजस में नहीं घिरे होंगे?
आज रोजमर्रा में प्रयोग होने वाली चीजों की कीमतें, सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती जा रही हैं, इन बढती कीमतों को नियंत्रित करने के लिए केंद्र सरकार को कुछ प्रयास करने चाहिए, तभी आएंगे मध्यम और गरीब परिवार के अच्छे दिन। केंद्र और राज्य सरकारों को आमजन की रोजमर्रा इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं और खाने-पीने की चीजों के दाम कम करने के उपाय एकजुट होकर करने चाहिए। न कि इस मुद्दे पर भी राजनीति की रोटियां सेंकने की कोशिश करनी चाहिए।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
संतुलन का अभाव
एक छात्र के लिए सबसे अच्छी गुरु और मित्र पुस्तकें ही होती हैं। पुस्तकें ही हैं, जिनके माध्यम से एक छात्र ज्ञान की गंगा में डुबकी लगाता है, नए -नए विचार मन-मस्तिष्क में आते हैं, कल्पनाशीलता और सृजनात्मक क्षमता में वृद्धि होती है, लेकिन महामारी में हुई बंदी के बाद तो आनलाइन कक्षाओं की बाढ़-सी आ गई। एक से बढ़ कर एक कोचिंग संस्थानों ने इस दौरान आनलाइन माध्यम से अपनी भूमिका निभाई, लेकिन इसके दूसरे पहलू पर किसी का ध्यान नहीं गया कि पहले जो बच्चे किताबों के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करते थे, वह अब नहीं दिखाई दे रहा।
हर कोचिंग संस्थान अब विडियो लेक्चर अपने बच्चों को दे रहा है और पीडीएफ में नोट्स भी, जिसका दुष्परिणाम यह हो रहा कि बच्चे अब नोट्स नहीं बनाते, और यही नहीं, अब तो ऐसे एप्लीकेशन भी आ गए हैं कि आपको अपने मस्तिष्क के साथ अभ्यास ही नहीं करना पड़ता। अगर कोई गणित का सवाल आपको नहीं आ रहा, तो स्कैन कर लीजिए, वह अपने आप हल हो जाएगा।
यह बच्चों को मानसिक रूप से आलसी बना रहा है। पाठ्य पुस्तक का जमाना ही जैसे नहीं रहा। माता-पिता भी मजबूरी में मोबाइल दे देते हैं, हमें इस मुद्दे पर विचार-विमर्श करना होगा। छोटी उम्र से ही बच्चे का स्क्रीन टाइम बढ़ना नई-नई बीमारियों को जन्म देगा, उनका किताबों से मोहभंग होगा, बच्चे ही नहीं, आज तो युवा वर्ग भी किताबों से दूर रहने लगा है। हेडफोन लगा कर विडियो लेक्चर देखना उसकी पढ़ाई का माध्यम बन गया है। आनलाइन लेक्चर बुरा नहीं है, बशर्ते पुस्तक पढ़ने और लेक्चर देखने में संतुलन बना रहे।
मंगल सिंह, आजमगढ़