प्रधानमंत्री ने छप्पनवें पुलिस महानिदेशक और महानिरीक्षक सम्मेलन में पुलिस व्यवस्था को तकनीक से जोड़ कर और ज्यादा मजबूत करने के लिए केंद्रीय गृहमंत्री के नेतृत्व में एक उच्च स्तरीय पुलिस तकनीक मिशन गठित करने का निर्देश दिया है। ताकि उस तकनीक के सहारे आम आदमी के साथ पुलिस कर्मियों की रोजमर्रा की दिक्कतों से सफलता पूर्वक निपटा जा सके। भारत में पुलिस सुधार की मांग बहुत पहले से चली आ रही है। अंग्रेजों ने यहां पुलिस की रचना अपनी उपनिवेशवादी आवश्यकताओं को ध्यान में रख कर की थी। मगर आज के तकनीकी युग में बहुत-सी ऐसी चीजें हैं, जिनसे पुलिस व्यवस्था को आधुनिक रूप दिया जा सकता है।
प्रधानमंत्री की पहल पुलिस को तकनीकी रूप से सुदृढ़, अत्याधुनिक, सरल, सुव्यवस्थित करने की है। लेकिन पुलिस व्यवस्था में सिर्फ तकनीकी कुशलता अपेक्षित नहीं है। तकनीक के साथ कार्मिक कुशलता, व्यवहार कुशलता, संगठनात्मक कुशलता की भी आवश्यकता है। सबसे बड़ी बात, ट्रांसफर-पोस्टिंग में होने वाले खेल, उसके राजनीतिक यंत्र की तरह इस्तेमाल पर रोक लगाए जाने की आवश्यकता है। इसके साथ पुलिस के मानवीय चेहरे को निखारने की भी आवश्यकता है। यह काम अधिकारी अपने स्तर से भी कर सकते हैं।
’युवराज पल्लव, हापुड़
किसान का हाल
सरकार ने तीनों कृषि कानून वापस ले लिए। इस पर समर्थक और विरोधी अपनी-अपनी राय जाहिर कर रहे हैं। पर सच तो यह है कि ये कानून इतने जटिल और पेचीदा हैं कि अब भी लोगों की समझ से बाहर हैं। सरकार इन कानूनों को जनसामान्य तक नहीं ले जा पाई और न ही समझा पाई, पर विपक्ष ने भी इसे पूरी तरह समझाने की जगह उलझाने और आंदोलन बनाने में ज्यादा रुचि दिखाई। खैर, कोई कानून अगर देश और जनता के हित में न हो तो उसे वापस लेना ही चाहिए। पर सवाल यह है कि जब इसे वापस लेना ही था तो फिर इतनी देरी क्यों?
अपने देश में किसान को अन्नदाता कहा जाता है, पर वास्तविकता कुछ और है। इस देश में जहां किसान की मासिक आय मात्र 6426 रुपए है, वहीं कोई सातवां वेतनमान लेकर सत्तर लाख रुपए मासिक वेतन उठाता है, तो यह असमानता कहां खत्म हो पाएगी? गौरतलब है कि सरकार ने 2013 के बाद किसानों की वास्तविक आय से संबंधित सर्वे दिखाना बंद कर दिया। केंद्रीय कृषि मंत्रालय के राष्ट्रीय सैंपल सर्वे संगठन 2012-13 में अंतिम कृषक आय का सर्वे किया था। एक तरफ आप कहते हैं 2022 तक किसानों की आय दुगनी कर देंगे, पर धरातल पर ऐसा कुछ होता दिखता नहीं है।
’देवानंद राय, दिल्ली</p>
मेहनत रंग लाई
कोरोना टीकाकरण के मामले में भारतीय शोधकर्ताओं ने जो मेहनत की, वह रंग ला रही है। आत्मनिर्भर भारत के दोनों टीकों को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मान्यता दे दी है। इस उपलब्धि से देश तो गौरवान्वित हुआ ही, हमारी आर्थिक स्थिति भी मजबूत होगी। इस दिशा में प्रयास सराहनीय है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारतीय उत्पाद कोवैक्सीन और कोविशील्ड को मान्यता दी है। मान्यता का असर यह हुआ कि दुनिया के एक सौ दस देशों ने इसे अपने यहां उपयोग के लिए मंजूरी दे दी। दोनों को लेकर हमारे देश में भी लोगों में उत्साह और विश्वास मजबूत हुआ है। दवाओं के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता आर्थिक स्थिति सुधारने में भी सहायक सिद्ध होगी।
’अमृतलाल मारू ‘रवि’, धार, मप्र