राष्ट्रवाद की कोई सार्वभौमिक सर्वसम्मति से निर्धारित परिभाषा नहीं की जा सकती है। पर समेकित रूप से राष्ट्रवाद एक सामूहिक मातृभूमि के लिए गहरी आस्था का नाम है, जहां नागरिक खुद को एक साझा इतिहास, परंपरा, संस्कृति और भाषा आदि के आधार पर एकत्र मानते हैं। एक होने की भावना अन्य सभी कारकों से अधिक प्रभावशाली और राष्ट्रीय निष्ठा सभी अस्मिताओं से ऊपर होती है। देश के विकास, समृद्धि और आर्थिक क्षेत्र की तथा सामरिक विदेशी शक्ति के विरुद्ध मातृभूमि की रक्षा भी राष्ट्रवाद का एक प्रमुख घटक माना जाता है। पर राष्ट्रवाद को किसी भी स्थिति में धर्म या जाति से कतई न जोड़ा जाए। राष्ट्रवाद सार्वभौमिक रूप से जातीय संगठन और धर्म से ऊपर होता है।

राष्ट्रवाद या राष्ट्रप्रेम के अंतर्गत किसी व्यक्ति विशेष के प्रति आस्था समाहित नहीं होती। राष्ट्रीयता की भावना में देश के प्रति लगन भक्ति और समर्पण ही राष्ट्रवाद को जन्म देता है। अनेक विचारकों ने राष्ट्रवाद को राष्ट्र के अंदर राजनीतिक और आर्थिक संदर्भों से जोड़ा है। इतिहास के प्रमुख विचारक बेनेडिक्ट एंडरसन ने कहा है कि राष्ट्रवाद को राजनीतिक विचारधारा से जोड़ने के बजाय उसे सांस्कृतिक विचारधारा से जोड़ा जाना चाहिए। इसे सामूहिक जन के एकीकरण और राष्ट्रीय चेतना के विकास को प्रबल करने की एक जन-धारा माना गया है।

राष्ट्रवाद की अवधारणा स्वतंत्रता के पूर्व स्वतंत्रता के लिए सभी वर्गों के एकजुट हो जाने, आपस में सहयोग कर राष्ट्र की अस्मिता को जीवित या पुनर्जीवित करने की कोशिशों ने राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रवाद को जन्म दिया है। राष्ट्र के रूप में भारत विविध भाषाओं, अनेक धर्मों, जातियों और प्रांतों का समूह है। भारत में राष्ट्र की अपनी एक विशिष्ट अवधारणा विकसित हुई, जिसमें बहुजातीयता, धर्मनिरपेक्षता और सहिष्णुता जैसे मूल्यों को सहेज कर भारतीय राष्ट्रवाद को जन्म दिया गया, जो अत्यंत गौरवशाली एवं महत्त्वपूर्ण है।

भारत एक स्वतंत्र लोकतांत्रिक देश है। राष्ट्रवाद पर राष्ट्रप्रेम भारत के संदर्भ में और गहरा और महत्त्वपूर्ण इसलिए भी है कि भारत में विभिन्न समुदाय, जाति, धर्म और बोली के लोग निवास करते हैं। दूसरी ओर, भारत के परंपरागत दुश्मन भी युद्ध के लिए घात लगाए बैठे रहते हैं। ऐसे में भारत को विशाल जनसंख्या और देश के अंदर फैले बहुत बड़े भूभाग की रक्षा के लिए राष्ट्रवाद जैसी अवधारणा को मजबूत किए जाने की अत्यंत आवश्यकता है। ऐसे में भारत के लिए राष्ट्रवाद एक अमोघ अस्त्र की तरह आमजन को एक सूत्र में बांधे रखने, देश के प्रति निष्ठा रखने और विपरीत परिस्थितियों में एकजुट होने की प्रेरणा देने के लिए राष्ट्रवाद और राष्ट्रप्रेम की बहुत ज्यादा आवश्यकता होगी। यों भारत का इतिहास अनेक महापुरुषों, बड़े-बड़े सम्राटों और योद्धाओं की राष्ट्रभक्ति से परिपूर्ण है।

पूंजीवाद, मार्क्सवाद और राष्ट्रप्रेम के प्रति पश्चिम के विद्वानों की राय और अवधारणाएं अलग-अलग हैं। यूरोपीय विचारकों के अनुसार राष्ट्रप्रेम के कई ऋणात्मक पहलू भी है। भारत के संदर्भ में राष्ट्रवाद, राष्ट्रप्रेम को सकारात्मक रूप से लेना चाहिए, पर राष्ट्रप्रेम की अवधारणा में राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में शासकीय हठधर्मिता को न मानना लोकतांत्रिक संगठन में राष्ट्र का विरोध नहीं माना जाना चाहिए। तभी राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रवाद की अवधारणा को सामूहिक रूप से बल मिलेगा और जनतांत्रिक संगठन भविष्य में लंबे समय तक जीवित रह सकता है।
’संजीव ठाकुर, रायपुर, छत्तीसगढ़

मुफ्त की राजनीति

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पंजाब दौरे के दौरान यह घोषणा की कि पंजाब में अगर ‘आप’ की सरकार बनती है तो मुफ्त बिजली देंगे और पुराना बिल माफ करेंगे। पूर्व में दिल्ली में भी उन्होंने मुफ्त बिजली, पानी, राशन की घोषणा कर वोट हासिल किए थे। ऐसी मुफ्त सुविधाएं देने वालों से पूछा जाना चाहिए कि यह सुविधा मुफ्त कैसे कही जाएगी। क्या अरविंद केजरीवाल के पास ऐसा कोई फामूर्ला है, जिसके जरिए वे बिजली उत्पादन और वितरण की व्यवस्था मुफ्त में कर सकें। अगर ऐसा नहीं है तो मुफ्त बिजली देकर अन्य मदों में कर लगा कर भरपाई की जाएगी!

स्वस्थ लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनाव-पूर्व मतदाता को लोकलुभावन घोषणाओं और लालच में फंसा कर वोट हासिल करना कहां तक उचित कहा जा सकता है। ऐसी घोषणाएं कमोबेश सभी राजनीतिक दल करते हैं। राजनीतिक दलों और उनके नेतृत्व को अपनी विचारधारा, ठोस नीतियों और कार्यक्रमों के साथ चुनाव मैदान में उतरना चाहिए। यों जितनी भी इस तरह की मुफ्त सुविधाएं दी गई हैं या दी जा रही है, उसका आखिरी भार तो आम जनता पर ही पड़ना है। सरकारी खजाने में आम जनता का कर का पैसा ही जमा होता है, न कि किसी नेता या राजनीतिक दल का। हमारे देश में ये नेतागण लोकलुभावन घोषणाएं तो ऐसे करते हैं, जैसे सभी सुविधाएं अपने घरेलू खजाने से देने जा रहे हैं। आम मतदाता को भी अपने बुद्धि-विवेक का उपयोग कर मतदान करना चाहिए। साथ ही आम जन को ललचाने वाली घोषणाओं पर चुनाव आयोग के साथ ही माननीय शीर्ष न्यायालयों को स्वत: संज्ञान लेकर रोक लगाना चाहिए।
’प्रदीप उपाध्याय, मेंढकी रोड, देवास,मप्र