एक कथा-वाचक कथा कह रहा था और श्रोताओं में उसकी पत्नी भी शामिल थी। कथा के दौरान वह बोल गया, ‘बैंगन बे-गुण होता है, इस कारण उसे नहीं खाना चाहिए।’ कथा समाप्त हुई, श्रोता अपने-अपने घर लौटे, कथा-वाचक भी घर लौटा, लेकिन उसकी पत्नी उसके पहले ही लौट गई थी। पति ने पत्नी से खाना मांगा, पत्नी ने सब्जी-रहित खाना परोस दिया। खाने की थाली देख कथा-वाचक आग-बबूला हो गया, ‘क्या बदतमीजी है! सब्जी क्यों नहीं बनाई?’ पत्नी ने जवाब दिया, ‘कैसे बनाती, घर में केवल बैंगन है और आप ही तो बोल रहे थे कि बैंगन बे-गुण होता है इसलिए उसे नहीं खाना चाहिए।’ तब कथा-वाचक ने उसे समझाया, ‘अरी नादान, मैं अपने लिए थोड़े ही कह रहा था! मैं तो दूसरों के लिए उपदेश झाड़ रहा था…।’

कुछ इसी तर्ज पर आपने देश में संविधान, कानून और अदालत दूसरों के लिए हैं, गांधी परिवार के लिए नहीं! तभी तो एक विशुद्ध अदालती मामले (नेशनल हेरल्ड) को लेकर सोनिया-राहुल और कांग्रेस पार्टी संसद न चलने देने पर अड़े रहे, जबकि अदालती मामले अदालत में ही निपटाए जाने चाहिए। अगर इन लोगों ने कुछ गलत नहीं किया है तो सुब्रह्मण्यम स्वामी को अदालत में गलत साबित करें और उन्हें कानून के मुताबिक सजा दिलाएं। संसद में या सड़क पर हंगामा करने से न तो अदालत डरेगी और न ही स्वामी। इंदिरा गांधी की बहू को तो अपनी सास की तरह अदालत का सम्मान करना सीखना चाहिए। इस उक्ति को कि- आप चाहे जितने भी बड़े क्यों न हों, कानून आप से ऊपर है- झुठलाना देश के लिए अहितकर साबित होगा।

विचाराधीन मामले में जिन लोगों को न्यायपालिका द्वारा समन भेजा गया है, उसके लिए न तो भाजपा (याचिकाकर्ता को छोड़ कर), न भाजपा सरकार, न प्रधानमंत्री और न ही संसद जिम्मेवार है। फिर प्रधानमंत्री कार्यालय को जिम्मेवार ठहराने की क्या तुक? क्या हर बात के लिए नरेंद्र मोदी जिम्मेवार हैं? (माधवेंद्र तिवारी, छपरा)
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दूरगामी लाभ
भारत अगर नया साल मनाने की भेड़चाल से बचा होता तो पठानकोट में आतंकी वारदात होना असंभव नहीं तो थोड़ा कठिन अवश्य होता। 31 दिसंबर की आधी रात आइपीएस अधिकारी सरकारी गाड़ी लेकर निश्चित रूप से सरकारी काम पर नहीं था। सरकारी गाड़ी और संसाधनों का दुरुपयोग रोकने की शिक्षा अगर यह वारदात व्यवस्था और व्यवस्थापकों को दे सके तो देश को दूरगामी लाभ होंगे। (शंकर नारायण पाणिग्रही, नई दिल्ली)

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जवाब की जरूरत
पठानकोट में तीन दिन तक आतंकियों से मुठभेड़ चली जिसमें सात जवान शहीद हो गए। ये सभी आतंकवादी पाकिस्तान से व्यास नदी की सहायक नदियों के रास्ते भारत में घुसे थे और वारदात को अंजाम दिया। पाकिस्तान की इस हरकत का मुंहतोड़ जवाब देने की जरूरत है। आखिर कब तक हमारे देश के वीर जवान अपनी शहादत देते रहेंगे? इसके पहले भी पाक सैनिकों द्वारा सीमा पर लगातार संघर्ष विराम का उल्लंघन किया जाता रहा है। वे कभी हमारे जवानों का सर काट लेते हैं, कभी चरमपंथियों को सहयोग करते हैं। 27 जुलाई 2015 को पंजाब के गुरदासपुर के हमले में जिस प्रकार आतंकी सेना की वर्दी में थे उसी प्रकार पठानकोट में भी वे सेना की वर्दी पहने हुए थे। सेना की वर्दी में घात करने वाले इन नर पिशाचों से निपटने के लिए हमें चौतरफा सतर्क रहने की जरूरत है। (प्रताप तिवारी, सारठ, झारखंड)
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सत्ता के सगे
जब भी कोई पार्टी विपक्ष में होती है तो उसे देश में सिर्फ गरीब, मजदूर, किसान और दुखी लोग ही दिखाई देते हैं। वही पार्टी जब सत्ता में आ जाती है तो उसे व्यापारी, उद्योगपति और कथित बड़े लोगों के अलावा कुछ और दिखाई ही नहीं देता है। देश का सच यही है कि जो सत्ता में रहता है वह गरीब और किसान विरोधी होता ही है। जब विपक्ष को सत्ता मिल जाती है तो वह भी गरीब और किसान विरोधी हो जाता है। फिर कल तक जो सत्ता में थे वे गरीबों और किसानों के हक में नारे लगाने लगते हैं। यानी हर दौर में विपक्ष के हाथ में सबसे ताकतवर हथियार किसान-मजदूर, या कहें हाशिये पर पड़े लोगों के हक में नारे लगाना ही होता है और सत्ता में आने के बाद उसे विदेशी निवेश से लेकर कारपोरेट घराने, उद्योगपति और पूंजीपति ही नजर आते हैं।
आखिर यह कैसी विडंबना है लोकतंत्र के शुभचिंतकों की! बौद्धिक और नीतिगत अवधारणाओं पर अमल आखिर वैकल्पिक क्यों होता जा रहा है? (प्रेरित कुमार, नई दिल्ली)
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खतरे की दस्तक
जलवायु पर विनाशकारी असर डालने वाली समस्या ग्लोबल वार्मिंग अन्य तमाम गंभीर चुनौतियों के अलावा भारत में खाद्यान्न संकट पैदा कर सकती है। वैश्विक तापमान में वृद्धि से समुद्र का जलस्तर ऊंचा उठना तो तय ही है। साथ ही तूफानों की प्रहार क्षमता और गति भी बीस फीसद बढ़ सकती है। इस तरह के तूफान दक्षिण भारतीय तटों के लिए विनाशकारी साबित हो सकते हंै। मानसूनी वर्षा का संतुलन भी बिगड़ सकता है। बढ़ते वैश्विक तापमान के कारण हिमनद पिघलने से नेपाल की बीस और भूटान की चौबीस झीलों का पानी उफान पर है। भविष्य में इन्हीं चौवालीस हिमनदों से निकला पानी नेपाल और भूटान के साथ ही भारत के पूर्वाेत्तर और अन्य पड़ोसी देशों में भीषण बाढ़ का संकट पैदा कर सकता है।

यह परिवर्तन मानव और पृथ्वी, दोनों के लिए खतरनाक है। जलवायु में हो रहे परिवर्तन के चलते दुनिया भर में पक्षियों की 72 प्रतिशत प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा भी मंडरा रहा है। दिसंबर में पेरू की राजधानी लीमा में जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में 190 देशों के प्रतिनिधियों ने कार्बन उत्सर्जन कम करने पर विचार-विमर्श किया। सम्मेलन में सभी देशों ने कार्बन उत्सर्जन में कटौती के राष्ट्रीय संकल्प के मसौदे पर सहमति जताई। इससे आशा की जानी चाहिए कि भविष्य में दुनिया के ये सभी देश ग्लोबल वार्मिंग के खतरे को कम करने के लिए सार्थक कदम उठाएंगे। (रमेश शर्मा, केशवपुरम, दिल्ली)