प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना का प्रमुख उद्देश्य युवाओं के अंदर कौशल विकसित कर उन्हें बाजार की मांग के अनुरूप रोजगारपरक बनाना है, ताकि वे बेहतर रोजगार प्राप्त कर या अपना व्यवसाय शुरू करके दूसरों को रोजगार देने योग्य बन सकें। इसकी शुरुआत कौशल विकास मंत्रालय के अंतर्गत कौशल भारत मिशन के तहत पहली बार वर्ष 2015 में की गई। इसमें 19.85 लाख उम्मीदवारों ने प्रशिक्षण लिया, जिसमें से लगभग 2.62 लाख यानी 13.23 प्रतिशत लोग रोजगार प्राप्त कर सके, जबकि सरकार का लक्ष्य 2022 तक चालीस करोड़ युवाओं को इसका लाभ पहुंचाना था।
इस योजना का द्वितीय चरण 2016-2020 के मध्य रहा, जिसका लक्ष्य एक करोड़ युवाओं को रोजगारपरक बनाना था, जिसमें जून 2019 तक लगभग 52.12 लाख अभ्यर्थियों ने प्रशिक्षण लेकर सर्टिफिकेट हासिल किया तथा उसमें से 12.60 लाख यानी लगभग 24.18 प्रतिशत ही रोजगार प्राप्त कर सके।
इस योजना को वर्ष 2020-21 में तृतीय चरण के लिए फिर से लागू किया गया, जिसमें जनवरी 2021 तक 46.27 लाख प्रशिक्षुओं ने अल्पकालिक प्रशिक्षण में भाग लिया। उनमें से भी मात्र उन्नीस लाख प्रशिक्षु रोजगार हासिल कर सके। ये आंकड़े स्पष्ट दर्शाते हैं कि अब भी हम उस लक्ष्य को हासिल कर पाने से काफी दूर हैं, जिसे ध्यान में रख कर इस योजना की शुरुआत की गई थी।
कौशल विकास योजना का लाभ लोगों तक न पहुंच पाना वाकई चिंता का विषय है। ऐसे में इस योजना को विद्यालय तथा महाविद्यालय स्तर से ही लागू करने के बारे में विचार करना होगा। अगर हमारे युवा डिग्री लेकर भी बेरोजगार बैठे हैं तो कहीं न कहीं यह हमारी शिक्षा व्यवस्था की विफलता है।
उच्च तकनीकी शिक्षण संस्थाएं तथा उनसे जुड़े विश्वविद्यालय भी अपने पाठ्यक्रमों में उन विषयों तथा ट्रेनिंग प्रोजेक्ट वर्क को दृढ़तापूर्वक शामिल करें, जो कि समय और बाजार की मांग के अनुरूप हों तथा जो विषय वर्तमान और भविष्य को ध्यान में रखते हुए अनुपयुक्त हों, उनको पाठ्यक्रम से हटाने की गुंजाइश भी रखनी होगी। योग्य, अनुभवी तथा कुशल प्रशिक्षकों की भर्ती इसमें अहम भूमिका निभा सकती है। सरकार को इस बात का ध्यान रखना होगा कि इस योजना का लाभ सिर्फ पूंजीपति उद्योगपतियों तक ही सिमट कर न रह जाए।
ऋषभ मिश्रा, कानपुर</p>
शहर की हवा
प्रदूषण का स्तर शहरों में दिन पर दिन बढ़ रहा है, जो सबके लिए चिंता का विषय है। राजधानी दिल्ली में प्रदूषण के स्तर को देखते हुए सरकार सख्त हो गई है। अब कोई भी शख्स खुले में कूड़ा जलाते हुए पकड़ा जाएगा, तो उस पर जुर्माना लगाया जाएगा। दिल्ली की सड़कों के किनारे हर दिन टायर, पालिथीन आदि जैसी चीजें जलाई जाती दिख सकती हैं, जिनसे निकलने वाला काला धुआं संपूर्ण पर्यावरण को बड़े स्तर पर प्रदूषित करता है। यह मानव स्वास्थ्य के लिए भी बेहद हानिकारक है।
गौरतलब है कि वायु प्रदूषण की वजह से 2020 में देश के पांच शहरों में 1.19 लाख से ज्यादा लोगों ने जान गंवाई।आवश्यकता है हम सभी को पर्यावरण के प्रति जागरूक होने और सरकार के साथ कदम बढ़ाते हुए अपना योगदान देने की।
दिव्यांशु राठौर, दिल्ली विश्वविद्यालय